कश्मीर में इस वर्ष 100 से ज्यादा युवक आतंकी संगठनों में शामिल

श्रीनगर : ऑपरेशन ऑल आउट में 205 आतंकियों की मौत और आतंकी फंडिंग के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की कार्रवाई भी स्थानीय युवकों की आतंकी संगठनों में लगातार बढ़ रही भर्ती रोक नहीं पाई है। इस वर्ष कश्मीर में 100 से ज्यादा स्थानीय युवक विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं जो बीते सात वर्षो में सबसे ज्यादा है।

सूत्रों की मानें तो 2016 में जब पूरे कश्मीर में कानून व्यवस्था का संकट पैदा था तो गली-मुहल्लों में हो रहे राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों में आतंकी खुलेआम नजर आते थे। तब 88 स्थानीय युवक ही आतंकी बने थे। 2017 में पहली जनवरी से नवंबर के समाप्त होने तक 117 स्थानीय युवक आतंकी बने हैं। सात युवक दिसंबर के दौरान आतंकी संगठनों में शािमल हुए हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, अनंतनाग से 12, पुलवामा से 45, शोपियां से 24 और कुलगाम से 10 युवकों ने आतंकी संगठनों का दामन थामा है। उत्तरी कश्मीर के जिला कुपवाड़ा से चार, बारामुला व सोपोर से छह युवक आतंकी बने हैं। बांडीपोर के सात युवकों ने आतंक की राह पकड़ी है। श्रीनगर जिले से पांच युवक घरों से गायब होकर आतंकियों से जुड़े हैं। बड़गाम जिले में चार युवक आतंकी बने हैं। 2010 से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा वर्ष 2017 आतंकी संगठनों के लिए सबसे ज्यादा उपजाऊ रहा है। उन्हें नए लड़कों की पौध तैयार करने में कोई दिक्कत नहीं हुई है। 2010 में 54 और 2011 में 23 स्थानीय युवक आतंकी बने थे। 2012 में 21 और 2013 में 16 युवकों ने आतंक की राह पकड़ी थी। 2014 में स्थानीय युवकों के आतंकी संगठनों में भर्ती होने की प्रक्रिया तेज हो गई। 2014 में 53 स्थानीय लड़के आतंकी बने थे। 2015 में 66 स्थानीय युवक विभिन्न आतंकी संगठनों का हिस्सा बने।

उधर राज्य के पुलिस महानिदेशक डॉ. एसपी वैद दावा करते हैं कि इस साल कश्मीर में आतंकवाद का रास्ता चुनने वाले स्थानीय युवकों की संख्या 100 से कहीं कम है। वहीं 80 युवकों को आतंकी बनने से रोका गया है। आठ से 10 युवकों ने बंदूक को नमस्ते कर मुख्यधारा की राह पकड़ी है। राज्य पुलिस के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पुलिस सिर्फ उन्हीं मामलों का संज्ञान लेती है, जिनमें किसी युवक के घर से गायब होने पर उसके परिजन पुलिस में शिकायत करते हैं। उस शिकायत की छानबीन में अगर युवक के आतंकी बनने का पता चले तो मान लिया जाता है कि वह आतंकी है। कई ऐसे मां-बाप भी हैं, जो अपने बच्चों के आतंकी बनने पर भी पुलिस में रिपोर्ट नहीं करते।

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