मध्य प्रदेश में बसपा दिखाएगी दम

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव इस बार एक पर एक अर्थात् कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नहीं होंगे। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपना दमखम दिखाएगी। कांग्रेस ने चुनाव पूर्व और चुनाव बाद समझौते का असमंजस पैदा किया है लेकिन बसपा के नेता चुनाव से पहले ही सब कुछ स्पष्ट चाहते हैं। आगामी पांच अगस्त को बसपा के मध्य प्रदेश प्रभारी राम अचल राजभर और उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद डा. अशोक सिद्धार्थ गठबंधन की संभावनाओं को तलाशने के लिए भोपाल में बैठक करेंगे। दोनों नेता बसपा के प्रदेश पदाधिकारियों से फीड बैक लेंगे। इसकी रिपोर्ट बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती को दी जाएगी और वही अंतिम फैसला करेंगी। कांग्रेस की तरफ से यह जिम्मेदारी कमलनाथ को सौंपी जा सकती है।इस प्रकार मध्य प्रदेश में बसपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन होना है अथवा नहीं, इस पर अगस्त में फैसला हो जाएगा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के नेता नहीं चाहते हैं कि किसी पार्टी से गठबंधन किया जाए। विपक्षी दलों की 2019 के चुनाव को लेकर जो रणनीति बन रही है, उनके अनुसार भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन बनेगा। इस गठबंधन में कौन सा फार्मूला लागू किया जाएगा, इस पर सहमति नहीं बनी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा का मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है लेकिन बसपा ने भी इन राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रखी है। छत्तीसगढ़ से तो बसपा की राजनीतिक शुरुआत ही हुई थी। उस समय छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था। इसलिए बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस से सौदेबाजी का व्यूह रचा है। बसपा ने प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने की तैयारी कर ली है। बिंध्य, बुंदेलखण्ड, ग्वालियर और चम्बल क्षेत्र से बसपा विशेष जोर लगाये हैं। बसपा का वोट बैंक इन्हीं क्षेत्रों में ज्यादा है। बसपा के पार्टी पदाधिकारियों का मानना है कि 25 से 30 सीटों पर गठबंधन करने से कांग्रेस को फायदा हो सकता है। बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने अपने तेवर भी कड़े कर दिये हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता बसपा-कांग्रेस गठबंधन की बात कह रहे हैं तो इसे समझ लेना चाहिए कि गठबंधन की बात कांग्रेस की तरफ से ही की जा रही है कांग्रेस ही गठबंधन के लिए सम्पर्क कर रही है। बसपा प्रमुख ने कहा है कि बसपा को सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन होगा।
मध्य प्रदेश में बसपा प्रभारी राम अचल राजभर का कहना है कि पार्टी प्रत्याशियों की सूची सितम्बर-अक्टूबर में जारी कर दी जाएगी। पहले यह भी देखा जाएगा कि प्रतिद्वन्द्वी दल ने किस प्रत्याशी को उतारा है, उसी के हिसाब से बसपा प्रत्याशी उतारा जाएगा। बसपा के मौजूदा विधायकों को टिकट दिया जाएगा। पिछले चुनाव में बसपा के चार प्रत्याशी चुनाव जीते थे। इसके अलावा राज्य की 11 ऐसी सीटें रहीं जहां बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा था। बसपा के हिसाब से अमर पाटन, भिंड, देव तालाब, महाराजपुर मुरेना, पन्ना, रामपुर बघेला, रींवा, सेमरिया, श्योपुर और सुआवली सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे हैं तो इन सीटों पर यदि कांग्रेस का प्रत्याशी विजयी नहीं रहा है तो बसपा को टिकट मिलना चाहिए। बसपा ने मध्य प्रदेश में 1998 से ही
धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करायी थी। 1998 में बसपा ने 11 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और 11 पर उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे। बसपा को 16 लाख से ऊपर मत मिले थे। इसके बाद 2003 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा के वोटों में तो बढ़ोत्तरी हुई लेकिन उसे विधायक सिर्फ 2 मिल पाये। बसपा के प्रत्याशी 16 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे। यह भाजपा की सरकार का समय शुरू हुआ था और मतदाता कांग्रेस और बसपा में बंट गये थे। यही स्थिति 2008 में भी हुई। बसपा को 2003 में 18.52 लाख वोट मिले थे और दो विधायक, जबकि 2008 में 22.52 लाख मत मिले और 07 विधयाक। इसके बाद 2013 में तो बसपा का मत प्रतिशत भी कम हो गया और विधायक भी। बसपा को 21.27 लाख मत मिले और चार विधायक।
इस प्रकार मध्य प्रदेश में बसपा को भी गठबंधन की जरूरत है लेकिन सुश्री मायावती अपनी कमजोरी को प्रकट नहीं करना चाहती हैं। बसपा के वरिष्ठ नेताओं की सक्रियता महाकौशल, बिंध्य, बुंंदेलखण्ड और उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्रों में बढ़ा दी गयी है। कांग्रेस भी 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बसपा से गठबंधन कर सकती है, जैसा कि अभी हाल ही राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बताने के बाद यूटर्न लिया गया है।

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