मानव रहित रेल फाटक क्यों

 

रेलतंत्र के दायित्व बोध अभाव ने कुशीनगर में 26 अप्रैल सुबह दर्जन भर से ज्यादा नौनिहालों की जिदंगी एक झटके में लील ली। हादसे का दोषी बस चालक को ठहराया जा रहा है लेकिन चालक की लापरवाही से कहीं ज्यादा मानवरहित रेलवे फाटक कसूरवार हैं, जिन्हें हटाने की जरूरत है, क्योंकि रेलवे के सत्तर प्रतिशत हादसे इनके कारण ही होते हैं। मानव रहित रेलवे फाटक आजादी के बाद से अबतक इंसानी कब्रगाह की भूमिका अदा करते आ रहे हैं। इन्हें हटाने के दावे तकरीबन हर रेल बजट में किए गए, लेकिन सभी दावे सिर्फ हवाई साबित हुए। भारत में मानव रहित रेलवे क्रासिंग इतने बड़े रेल तंत्र में किसी अभिशाप की तरह चिपक गये हैं, जो समय-समय पर अपना कहर बरपाते है। इस हादसे ने भदोही घटना की यादें ताजा कर दीं हैं।
हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों के परिजनों की दुनिया ही खत्म हो गई। घरों के आंगनों में गूंजने वाली किलकारी हमेशा के लिए शांत हो गईं। हादसे के बाद कोई भी कार्रवाई और कितना भी मुआवजा क्षति की भरपाई नहीं कर सकता। कुशीनगर जैसी घटना आज से करीब दो साल पहले उत्तर प्रदेश के ही भदोही जिले में भी घटी थी जिसमें दस स्कूली बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी, जबकि 12 बच्चे घायल हो गए थे। वह भी हादसा कुशीनगर की ही तरह एक मानव रहित रेल क्रॉसिंग पर एक स्कूली वैन के ट्रेन से टकराने से हुआ था। उसके कुछ माह पहले मऊ जिले में भी मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर बड़ी घटना घटी थी जिसमें भी करीब दर्जन भर से ज्यादा बच्चों की जिंदगी खत्म हो गई थी। उससे पहले तेलंगाना के मसाईपेट में भी इसी तरह की एक घटना में 19 बच्चों की मौत हो गई थी। मतलब यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। रेलतंत्र इन घटनाओं पर अंकुश लगाने में अभी तक पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है।
कुशीनगर हादसे ने मानवरहित रेलवे फाटकों के चलते पूरे रेलतंत्र की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। देखा जाए तो, पूरे हिंदुस्तान में मानवरहित रेलवे फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं के आंकड़े बेहद भयानक हैं। 2012 के आंकड़ों को देखें तो सरकारी कमेटी की रिपोर्ट कहती हैं कि हर साल 15 हजार से अधिक जानें लापरवाही की भेंट चढ़ जाती हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में रेलवे फाटकों पर सुरक्षा दिशानिर्देशों का मखौल उड़ाया जाता है। इसके लिए आम लोगों के साथ-साथ रेलवे के अधिकारी भी जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कमेटी द्वारा पहले दिए उन सुझावों को भी रेलवे ने नहीं माना, जो रेलवे फाटकों और पुल को पार करने के सुरक्षात्मक तरीकों को लेकर दिए गए थे। भारत में आज से आठ वर्ष पहले यानी 2010 में 15,993 मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग थीं।
2010-11 के रेल बजट में इन सभी को समाप्त कर देने का प्रस्ताव रखा गया था और इनकी जगह ओवरब्रिज, सबवे जैसे विकल्प तैयार करने की बात कही गई थी, किन्तु यह सब कागजों तक ही सीमित रहा। 2007-08 में रेलवे ने सुरक्षा मानकों के लिए 534 करोड़ की फंडिंग रिजर्व रखी थीं जो 2008-09 में बढ़कर 566 करोड़ हो गई। 2009 -10 में इस फंड में भरपूर इजाफा किया गया और रिजर्व फंड 901 करोड़ का कर दिया गया। सुरक्षा के लिए प्रस्तावित धन में तो बढ़ोत्तरी हुई, किंतु दुर्घटनाओं में कमी नहीं हुई। 2011 में रेलवे ट्रैकों पर 14,973 मौतें हुई थीं, जबकि 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर 16,336 हो गया. वहीं गत वर्ष 2013 में इस संख्या में और बढ़ोतरी हुई और रेलवे ट्रैकों पर मरने वालों की संख्या 19,997 पहुंच गई। रेलवे तंत्र की खामी किस तरह आम आदमियों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है, कुशीनगर हमारे लिए इसका ताजा उदाहरण है।
कुछ साल पहले भी उत्तर प्रदेश के कांशीराम नगर जिले में भयंकर घटना हुई थी जिसे याद कर आज भी रूंह कांप उठती है। बारातियों से भरी बस और रेलगाड़ी के बीच हुई भयंकर भिड़ंत में 38 लोगों की घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। उस दिल दहला देने वाले हादसे में करीब पचास से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी भी हुए थे। इन सारी बातों से बेखबर रेल प्रशासन मरने वालों और घायलों को मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। मगर मानवरहित क्रॉसिंग पर उसका ध्यान नहीं जाता। अब सोचने वाली बात यह है कि अगर रेलवे प्रशासन समय रहते मानवरहित क्रॉसिंग पर अपना ध्यान केंद्रित कर लेती तो शायद उत्तर प्रदेश के जिलों में रेलवे ट्रैक पर होने वाली घटनाओं में मारे गए लोगों की कब्र कम से कम ट्रैक पर तो नहीं बनती।
उत्तर प्रदेश में रेलवे क्रॉसिंगों की संख्या सबसे ज्यादा है जहां आए दिन घटनाएं होती ही रहती हैं। इसके अलावा देश के दूसरे हिस्सों में रेलवे फाटकों के चलते हादसों में लगातार इजाफा हो रहा है। 4 फरवरी 2005- नागपुर में शादी समारोह से लौट रहे ट्रैक्टर को तेज रफ्तार रेलगाड़ी ने टक्कर मार दी थी। उस हादसे में 52 लोगों की मौत हो गई थी। वह हादसा भी मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर हुआ था। 1 दिसंबर 2006-बिहार के भागलपुर जिले में 150 वर्ष पुराने एक पुल का हिस्सा गिर गया, जिससे पुल के ऊपर से जा रही रेलगाड़ी हादसे का शिकार हो गई। इस हादसे में 35 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी जबकि 20 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। 16 अप्रैल 2006- तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में थिरुमतपुर के पास मानवरहित क्रॉसिंग पर हुए हादसे में 12 लोगों की मौत हो गई थी। 23 फरवरी 2009- उड़ीसा के धांगीरा इलाके में एक वैन और रेलगाड़ी की टक्कर होने से 14 लोगों की मौत हो गई। सभी एक शादी समारोह से लौट रहे थे और मानवरहित क्रॉसिंग पर वैन अचानक खराब होकर बंद हो गई थी।
14 नवंबर 2009- जयपुर से दिल्ली जा रही मांडूरी एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से 7 लोगों की मौत हो गई थी। 21 अक्टूबर 2009- उत्तर प्रदेश के बंजाना में गोवा एक्सप्रेस और मेवाड़ एक्सप्रेस के बीच टक्कर हो जाने से उसमें सवार कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई। 9 मार्च 2010- उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में उटारीपुरा के निकट एक मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर एक ट्रैक्टर-ट्रॉली और रेलगाड़ी के बीच टक्कर हो जाने से कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई। 19 जुलाई 2010- पश्चिम बंगाल के सैथिया में वनांचल एक्सप्रेस और उत्तरबंग एक्सप्रेस के बीच टक्कर हो जाने से कम से कम 56 लोगों की मौत हो गई। 3 जून 2010- तमिलनाडु में एक मिनी बस और रेलगाड़ी के बीच टक्कर हो जाने से 5 लोगों की मौत हो गई। 20 सितंबर 2010- एक रेलगाड़ी और एक मालगाड़ी के बीच टक्कर हो जाने से कम से कम 21 लोगों की मौत हो गई और 53 घायल हो गए। वह हादसा
मध्यप्रदेश के भदरवाह रेलवे स्टेशन पर हुआ था। 22 मई 2010- बिहार के मधुबनी जिले में एक मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर हुए रेल हादसे में कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई।
कुशीनगर और पूर्व की भयंकर घटनाओं के बाद रेलवे प्रशासन को सबक लेना चाहए। साथ ही मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग को लेकर रेल विभाग को ठोस नीति अपनाने की जरूरत है, इसके साथ ही सभी मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग को बंद कर उनका विकल्प तलाशने की जरूरत है। हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने सभी रेल फाटकों को हटाने के निर्देश दिए हैं और इस दिशा में इन घटनाओं के बाद काम भी शुरू कर दिया गया। कुशीनगर की घटना के बाद रेलमंत्री ने तुरंत वरिष्ठ अध्किरियों के साथ बात करके सभी फाटकों को हटाने का मसौदा तैयार करने को कहा है।

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