जेलों की हालत सुधारने की है जरूरत

हमारे देश में जेलों की स्थिति दयनीय है। अधिकांश जेलों का वातावरण भी प्रदूषित व अस्वास्थ्यकर है जिसकी वजह से कैदी प्रायः बीमार पड़ जाते हैं। कोई कैदी बीमार पड़ जाये तो डाक्टर के बिजिटिंग दिवस पर ही उनकी जांच हो पाती है। जहां डाक्टर हैं वे भी गंभीर रोगों का इलाज नहीं कर पाते। कैदियों को अच्छा व पोषणयुक्त खाना नहीं मिलता। जेलों के बैरकों में कैदियों को ठूंस-ठूंस कर भर दिया जाता है। जेलों में क्षमता से कई गुना कैदी हैं। जेलें कैदियों को उनके दण्ड की सजा दिलाने के साथ-साथ उनमें सुधार लाने के लिए हैं ताकि वे जेल से बाहर आकर समाज में सम्मान से जीवन यापन कर सकें। जेलों में कैदियों से अमानवीय व्यवहार किया जाता है। कई कैदियों को निर्दयता से पीटा जाता है, कैदी अमानवीय व अस्वास्थ्यप्रद माहौल में उग्र हो जाते हैं और जेलों में बंदी रक्षकों से उलझ जाते हैं। जेलों में हंगामा हो जाता है बड़ी मुश्किल से कैदियों के आक्रोश को शांत किया जाता है।
जेलों की अमानवीय दशा पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चिंता प्रकट की है और उसने कैदियों की दुर्दशा को अमानवीय कहा है और टिप्पणी दी है कि कैदी मानव हैं जानवर नहीं। जेलों में नियत संख्या से अधिक कैदी है। कहीं क्षमता से छह गुना अधिक कैदी है। देश की 1300 जेलों में निर्धारित संख्या से कहीं ज्यादा कैदी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी की है और व्यवस्था में सुधार पर बल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य व केन्द्र सरकारों को जेलों की दशा सुधारने का निर्देश दिया है। इसकी खास वजह यह है कि देश में जेलों की संख्या कम है, कैदियों की संख्या अधिक। देश की आबादी बढ़ी है साथ ही अपराध भी। रोजाना नये अपराधी जेल भेजे जाते हैं। राजनीतिक कैदी भी आते हैं। जेल के अधिकारी भी असहाय हैं। उन्हें कैदियों को बैरकों में ठूंसना पड़ता है। जेल में कर्मचारियों की संख्या कम है। बंदीरक्षक कम, कैदी अधिक हैं। एक-एक बंदीरक्षक के जिम्मे कई कैदी हैं।
सुप्रीम कोर्ट में बताया गया है कि देश में तमाम श्रेणियों के 77230 पद खाली हैं। 3 दिसम्बर 2017 तक इनमें से सिर्फ 24588 लोग कार्य कर रहे थे। राज्य सरकारों ने कर्मचारियों की नई नियुक्तियां नहीं की है। राज्य सरकारों ने नई जेलें बनाने की दिशा में खास रूचि नहीं दिखाई है। कई जेलें बन रही है। बंदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नई जेलों का निर्माण अतिशीघ्र किया जाना चाहिए। इधर, जेल के अधिकारियों का कहना है कि नई जेलें बनायी जा रही है लेकिन शासन के पास बजट नहीं है। कई जगहों पर जेलों के निर्माण के लिए जमीन नहीं है। ऐसी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश के बाद नई जेल भवनों के निर्माण की दिशा में तेजी आयेगी। खुली जेलों से भी समस्या का हल निकल सकता है। खुली जेलें स्वास्थ्यप्रद होती है। कैदी यहां खुली हवा में सांस लेने के साथ-साथ कृषि, गोपालन, लघु उद्यम व कृषि कार्य कर अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। खुली जेलें कैदियों के सुधार की अच्छी जेलें है। जिन कैदियों का जेलों में रिकार्ड व व्यवहार अच्छा रहा हो, उन्हें इन जेलों में भेजा जा सकता है। कई कैदी निर्धारित दण्ड से अधिक सजा काट रहे हैं। कई कैदी छोटे-छोटे अपराधों के लिए सजा काट रहे हैं, जिनकी जमानत संभव है, उनकी जमानत नहीं हो पाती क्योंकि उनकी जमानत देने वाला कोई नहीं। उन्हें वकील नहीं मिल पाता। सरकारी वकील की सहायता लेने की उन्हें समझ नहीं। विधिक सेवा के वालंटियर भी उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं, कई कैदी सजा काटने के बाद रिहायी का इंतजार पर रहे हैं। अदालतों में केसों के अंबार है। केसों की सुनवाई में देरी होती है। कैदी सजा काटने के बाद भी जेलों में रहने को बाध्य है, तो यह घोर अमानवीय है। ऐसे केसों का शीघ्र निस्तारण जरूरी है, ताकि कैदी जेल से रिहा होकर समाज की खुली हवा में सांस ले व एक सम्मान का जीवन शुरू करे। अगर कैदी किसी हुनर में माहिर हो तो वह उस काम को कर जीविकोपार्जन कर सकता है और दोबारा अपराध की ओर वह मुंह नहीं करेगा।
जेल के भीतर कैदी बंदीरक्षकों व जेल कर्मचारियों के भेदभाव के शिकार भी होते हैं। कई कैदी जेल कर्मचारियों के संरक्षण में सुख-सुविधाओं का उपभोग कर रहे है। कैदियों को चिकित्सा सुविधायें भी अच्छी नहीं मिल पाती हैं, जबकि जेल में बंद बाहुबलियों को टीवी व मोबाइल की सुविधा मिल रही है। इससे दूसरे कैदियों में आक्रोश फूटता है तो कैदी जेलकर्मियों पर टूट पड़ते हैं। कैदियों के साथ जेल मैनुअल के मुताबिक व्यवहार होने चाहिए। अपराधियों को सुधारने की कोशिश तभी कामयाब हो सकती हैं जब कैदियों के साथ अच्छा
बर्ताव होगा। उनका शोषण व उत्पीड़न नहीं होगा। तब कैदी सजा काट कर जेल से छूटेंगे तो अच्छे इंसान बनेंगे और समाज के निर्माण में सहयोग करेंगे।

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