झारखंड में आदिवासी नेताओं को जोड़ा

रांची। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का रांची प्रवास उन्हें दो मोर्चो पर सफलता दे गया। पहला, उन्होंने आदिवासी नेताओं की अनदेखी की शिकायत दूर कर दी। दूसरी बात यह कि एक बार फिर आदिवासी वर्ग भाजपा के साथ जुड़ता दिखा। आदिवासी बुद्धिजीवियों से संवाद के लिए खुद मोर्चा संभाला तो सभी संभलकर बोलते दिखे। शाह की यह यात्रा उन नकारात्मक भावनाओं को भी कुचलने में सफल हुई, जिससे पार्टी को कहीं न कहीं नुकसान हो रहा था और यह है आदिवासी व गैर आदिवासी के बीच मतभेद की भावना। पत्थलगड़ी और भू-अधिग्रहण बिल का नाम लिए बगैर मंच से उन्होंने आदिवासी समाज को बरगलाने वाली ताकतों से बचकर रहने की सीख दी और इस सीख को आगे बढ़ाते दिखे कड़िया मुंडा। उन्होंने पत्थलगड़ी परंपरा को दिए गए नए स्वरूप को सिरे से खारिज कर दिया। मंच सजा तो कल्पनाओं के विपरीत दृश्य तैयार हुआ। मंच के केंद्र में रघुवर दास के साथ अमित शाह मौजूद थे तो उनसे बराबर दूरी पर दोनों ओर बैठे कड़िया मुंडा और अर्जुन मुंडा। दोनों का उत्साह देखकर लग रहा था कि कहीं-कहीं से मिल रहीं नकारात्मक सूचनाएं अब खत्म हो चुकी थीं।

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