श्रद्धालुओं के लिए अब कठिन नहीं होगी उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा

उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा को जाने वाले श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों के लिए खुशी का प्रसंग है कि हर मौसम में उत्तराखंड के चारधमों को सड़क मार्ग से जोड़ने की केंद्र सरकार के महत्वकांशी “चारधाम हाईवे प्रोजेक्ट” को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी प्रदान कर दी है। सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिलने से इस परियोजना के निर्माण का मार्ग प्रशस्त एवं सुनिश्चित हो गया है। राजमार्ग के बनने से चारधाम यात्रा सुगम हो जाएगी। श्रद्धालु चारों धामों के कम समय मे सुगमतापूर्वक दर्शन कर सकेंगे। वर्ष भर कोई भी मौसम बाधक नहीं बनेगा।सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए नई समिति का गठन किया है। जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन एवं सूर्यकांत की पीठ ने उच्च स्तरीय समिति का गठन कर राष्ट्रीय हरित अभिकरण के 26 सितंबर 2018 के आदेश में संशोधन कर समिति के प्रमुख प्रो. रवि चोपड़ा को बनाया है जो जस्टिस यूसी ध्यानी का स्थान लेंगे और समिति के चेयरमैन होंगे। पीठ ने समिति में अहमदाबाद स्थित भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग से भोंतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, देहरादून के भारतीय वन्य जीव संस्थान, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के देहरादून स्तिथ क्षेत्रीय कार्यालय एवं सीमा सड़क मामलों से सम्बंधित रक्षा मंत्रालय के निदेशक स्तर के प्रतिनिधि को शामिल करने के निर्देश दिए हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को इस समिति का गठन 22 अगस्त 2019 तक करने को पीठ ने निर्देश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि इस परियोजना को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा 26 सितंबर 2018 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी।परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 475.11 हेक्टर वन भूमि के उपयोग की स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई है।चारधाम महामार्ग (एक्सप्रेसवे ) उत्तराखंड राज्य में एक प्रस्तावित एक हाईवे परियोजना है, जिसके अंतर्गत राज्य में स्थित चारधाम तीर्थस्थलों को एक्सप्रेस राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से जोड़ा जायेगा। इस योजना को चारधाम मार्ग का पुनरुद्धार भी कहा जा रहा है। केंद्र की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत चीन सीमा और चारधामों तक पहुंचने वाली सड़कों को विश्व स्तर का बनाया जाएगा।इस परियोजना की कुल लागत 12000 हज़ारकरोड़ रुपये रखी गई है जिसमें 900 किमी दो लेन राष्ट्रीय राजमार्ग सड़क बनाई जाएगी। बनने वाले राजमार्ग की चौड़ाई कम से कम 10 से 15 मीटर होगी। राजमार्ग पर यातायात में सुगमता के लिए सुरंग, बायपास, पुल, सब-वे आदि होंगे। चारधाम रूट के साथ-साथ विभिन्न सुविधाओं और सार्वजनिक सुविधाओं का भी निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा यहां पार्किंग के लिए रिक्त स्थान और आपातकालीन निकास के लिए हेलीपैड भी बनाए जाएंगे। एक टीम को भूस्खलन वाले संवेदनशील क्षेत्र की पहचान करने के लिए लगाया जाएगा। ये टीम इन क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने के लिए यहां के डिजाइन को लेकर सुझाव देगी। केंद्रीय मंत्री गडकरी की माने तो इस परियोजना के निर्माण कार्य में जिस तरह की अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है उससे यह नया हाईवे सभी मौसमों में चालू रहेगा और प्राकृतिक आपदाओं या भूस्खलन की घटना का हाईवे पर कोई असर नहीं हो सकेगा। यही नहीं ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय राजमार्गो के किनारे यात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं को मुहैया कराया जाएगा। उनका दावा है कि यह परियोजना नदियों को आपस में जोड़ने की योजना के बाद एक बड़ी और महत्वपूर्ण साबित होगी।

परियोजना कार्यो को 7 पैकेज में विभक्त किया गया है जिसमे 9 गंतव्य होंगे और इसका विस्तार तनकपुर से पिथौरागढ़ तक किया जाएगा। यात्रा मार्ग ऋषिकेश से आरम्भ होंगे, और चारों धामों तक जाएंगे। एक मार्ग ऋषिकेश से यमुनोत्री तक होगा। जिसमें राष्ट्रीय राज मार्ग 94 धरासू तक 144 किमी एवं धरासू से यमुनोत्री तक 95 किलो किमी कुल 239 किमी का होगा। दूसरा मार्ग ऋषिकेशदृगंगोत्री तक होगा। यह मार्ग ऋषिकेश से धरासू तक 144 किमी, धरासू से 124 किमी होगा। इस मार्ग की कुल लंबाई 268 किमी होगी। तीसरा मार्ग ऋषिकेश से केदारनाथ तक होगा। राष्ट्रीय राज मार्ग 58 ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक 140 किमी, रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड तक 76 किमी राष्ट्रीय राज मार्ग 109 को जोड़ेगा। इस मार्ग की कुल लंबाई 253 किमी होगी। चौथा मार्ग ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक होगा। यह रुद्रप्रयाग तक 140 किमी एवं रुद्रप्रयाग से माना तक 140 किमी कुल 280 किमी लंबा होगा।
परियोजना मार्ग में 2 सुरंगे, 132 पुल जिसमे 25 बड़े और 107 छोटे पुल होंगे, 3 फ्लाई ओवर ब्रिज, 3596 घुमाव (कलवर्ट), 13 बाईपास रोड, 18 सुविधा केंद्र एवं 154 बस स्टैंड एवं 7 ट्रक स्थल बनाये जाएंगे। प्रोजेक्ट में पागलगढ़ एवं लांबा गढ़ जैसे संभावित लैंडस्लाइड 38 लैंडस्लाइड स्थलों पर सॉयल लिलिंग, गेलियन वाल एवं स्क्वायर मेस वेजिटेशन आदि उपाय किये जायेंगे। परियोजना में 4 वायाडक्ट का निर्माण किया जायेगा। इसमें मरीन पॉइंट वायडक्ट एवं सोनगंगा अलकनंदा नदी के पानी से सोनगंगा 775 मीटर लंबी माउंटेन वायाडक्ट से राजमार्ग 25 मीटर ऊंचा पहुँचा जाएगा। परियोजना में भूमि अधिग्रहण एवं प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास का प्रावधान भी किया गया है। दुर्घटनाओं में कमी आएगी एवं हज़ारों युवाओं को रोजगार मिलेगा।
परियोजना के प्रथम चरण में तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के 17 प्रस्तावों के काम की मंजूरी मिलने के बाद निविदा प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी हैं ताकि शुरु में आने वाली दिक्कतों को दूर किया जा सके।  अभी तक इस परियोजना के जारी निर्माण कार्यो पर 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। इस परियोजना के पूरा होने पर चारोधामों की दूरी सुरंगों एवम छोटे रास्तों से 813 किमी से घट कर 389 किमी रह जाएगी। यात्रा के समय मे 30 से 40 प्रतिशत की कमी आएगी। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 अगस्त 2016 को इस परियोजना का विधिवत शिलान्यास किया था।
ये हैं चारधाम: 
यमुनोत्री
ऋषिकेश से 239 किमी दूर चारधाम का पहला पड़ाव बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर पर पवित्र यमुनोत्री का मंदिर स्थित है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद यमुनोत्री पहुंचते हैं। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दि में करवाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्य की बेटी थी और यम उनका बेटा था। यही वजह है कि यम अपने बहन यमुना में श्रद्धापूर्वक स्‍नान किए हुए लोगों के साथ सख्‍ती नहीं बरतता है। यमुना का उदगम स्‍थल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4,429मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यमुनोत्री ग्‍लेशियर।
यमुनोत्री मंदिर के समीप कई गर्म पानी के सोते हैं, इनमें से सूर्य कुंड प्रसिद्ध है। कहा जाता है अपनी बेटी को आर्शीवाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया। सूर्य कुंड के नजदीक ही एक शिला है जिसको ‘दिव्‍य शिला’ के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री यमुना जी की पूजा करने से पहले इस दिव्‍य शिला का पूजन करते हैं। इसके समीप ही ‘जमुना बाई कुंड’ है, जिसका निर्माण आज से कोई सौ साल पहले हुआ था। इस कुंड का पानी हल्‍का गर्म होता है जिसमें पूजा के पहले पवित्र स्‍नान किया जाता है। यमुनोत्री के पुजारी और पंडा पूजा करने के लिए गांव खरसाला से आते हैं जो जानकी बाई चट्टी के पास है। यमुनोत्री मंदिर नवंबर से मई तक खराब मौसम की वजह से बंद रहता है। मंदिर के खुलने का समय: मंदिर अक्षय तृतीया (मई) को खुलता है और यम द्वितीया या भाई दूज या दीवाली के दो दिन बाद (नवंबर) को बंद होता है। मंदिर सु‍बह 6 बजे से लेकर शाम 8 बजे तक खुला रहता है। आरती सु‍बह में 6:30 बजे और शाम में 7:30 बजे होती है।
 
गंगोत्री
ऋषिकेश से 269 किमी दूरी पर गंगोत्री धाम स्थित है। यह समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री भारत के पवित्र और आध्‍यात्मिक रूप से महत्‍वपूर्ण नदी गंगा का उद्गगम स्‍थल भी है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी रखा गया। कथाओं में यह भी कहा गया है कि राजा भागीरथ ने ही तपस्‍या करके गंगा को पृथ्‍वी पर लाए थे। गंगा नदी गोमुख से निकलती है।

पौराणिक कथानक के अनुसार सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्‍वमेध यज्ञ कराने का फैसला किया। इसमें इनका घोड़ा जहां-जहां गया उनके 60,000 बेटों ने उन जगहों को अपने आधिपत्‍य में लेता गया। इससे देवताओं के राजा इंद्र चिंतित हो गए। ऐसे में उन्‍होंने इस घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के बेटों ने मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख पहुंचा। उन्‍होंने राजा सगर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख में तब्‍दील हो गए। राजा सगर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और उन्‍होंने राजा सगर को कहा कि अगर स्‍वर्ग में प्रवाहित होने वाली नदी पृथ्‍वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्‍पर्श इस राख से हो जाए तो उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। लेकिन राजा सगर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सगर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर लाने में सफलता प्राप्‍त की। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्‍पर्श से राजा सगर के पुत्र जीवित हुए।
ऐसा माना जाता है कि 18 वीं शताबदी में गोरखा कैप्‍टन अमर सिंह थापा ने आदि शंकराचार्य के सम्‍मान में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया था। यह मंदिर भागीरथी नदी के बाएं किनारे पर स्थित सफेद पत्‍थरों से निर्मित है। इसकी ऊंचाई लगभग 20 फीट है। मंदिर बनने के बाद राजा माधोसिंह ने 1935 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया। फलस्‍वरूप मंदिर की बनावट में राजस्‍थानी शैली की झलक देखने को मिलती है। मंदिर के समीप ‘भागीरथ शिला’ है जिसपर बैठकर उन्‍होंने गंगा को पृथ्‍वी पर लाने के लिए कठोर तपस्‍या की थी। इस मंदिर में देवी गंगा के अलावा यमुना, भगवान शिव, देवी सरस्‍वती, अन्‍नपुर्णा और महादुर्गा की भी पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग चंद्र पंचांग के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिण्‍ड दान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना और पूजा आदि करने के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्‍नान आदि के लिए जाते हैं। तीर्थयात्री भागीरथी नदी के पवित्र जल को अपने साथ घर ले जाते हैं। इस जल को पवित्र माना जाता है तथा शुभ कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। गंगोत्री से लिया गया गंगा जल केदारनाथ और रामेश्‍वरम के मंदिरों में भी अर्पित किया जाता है। मंदिर गर्मियों सुबह 6.15 से 2 बजे दोपहर तक और अपराह्न 3 से 9.30 तक एवं सर्दियों में प्रातः 6.45 से 2 बजे दोपहर तक और अपराह्न 3 से 7 बजे तक दर्शनार्थ खुला रहता है।
तीर्थयात्री प्राय: गनगनानी के रास्‍ते गंगोत्री जाते हैं। यह वही मार्ग है जिसपर पराशर मुनि का आश्रम था जहां वे गर्म पानी के सोते में स्‍नान करते थे। गंगा के पृथ्‍वी आगमन पर (गंगा सप्‍तमी) वैसाख (अप्रैल) में विशेष श्रृंगार का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस दिन भगवान शिव ने भागीरथी नदी को भागीरथ को प्र‍स्‍तुत किया था उस दिन को (ज्‍येष्‍ठ, मई) गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा जन्‍माष्‍टमी, विजयादशमी और दीपावली को भी गंगोत्री में विशेष रूप से मनाया जाता है।
मंदिर मई में अक्षय तृतीया को खुलता है और यमा द्वितीया को बंद होता है। मंदिर की गतिविधि तड़के चार बजे से शुरू हो जाती है। सबसे पहले ‘उठन’ (जागना) और ‘श्रृंगार’ की विधि होती है जो आम लोगों के लिए खुला नहीं होता है। सुबह 6 बजे की मंगल आरती भी बंद दरवाजे में की जाती है। 9 बजे मंदिर के पट को ‘राजभोग’ के लिए 10 मिनट तक बंद रखा जाता है। सायं 6.30 बजे श्रृंगार हेतु पट को 10 मिनट के लिए एक बार फिर बंद कर दिया जाता है। इसके उपरांत शाम 8 बजे राजभोग के लिए मंदिर के द्वार को 5 मिनट तक बंद रखा जाता है। ऐसे तो संध्‍या आरती शाम को 7.45 बजे होती है लेकिन सर्दियों में 7 बजे ही आरती करा दी जाती है। तीर्थयात्रियों के लिए राजभोग, जो मीठे चावल से बना होता है जो निर्धारित शुल्क पर उपलब्‍ध रहता है।
 
बद्रीनाथ
ऋषिकेश से 280 किमी दूरी पर बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वतों के मध्‍य स्थित है, जो समुद्र तल से 3,233 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी इस मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है। ऐसी मान्‍यता है कि भगवान विष्‍णु इस स्‍थान ध्‍यानमग्‍न रहते हैं। लक्ष्‍मीनारायण को छाया प्रदान करने के लिए देवी लक्ष्‍मी ने बैर के पेड़ का रूप धारण किया। लेकिन वर्तमान में बैर का पेड़ तो बहुत कम मात्रा में देखने को मिलता है लेकिन बद्रीनारायण अभी भी ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। नारद जो इन दोनों के अनन्‍य भक्‍त हैं उनकी आराधना भी यहां की जाती है।
वर्तमान मंदिर का निर्माण आज से ठीक दो शताब्‍दी पहले गढ़वाल राजा के द्वारा किया गया था। यह मंदिर शंकुधारी शैली में बना हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 15 मीटर है। जिसके शिखर पर गुंबज है। इस मंदिर में 15 मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में विष्‍णु के साथ नर और नारायण ध्‍यान की स्थिति में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था जिसका पुनरूद्धार बाद में आदि शंकराचार्य ने 8वीं सदी में किया। इस मंदिर में नर और नारायण के अलावा लक्ष्‍मी, शिव-पार्व‍ती और गणेश की मूर्तियां भी हैं।
सिंह द्वार मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगता है। मंदिर के तीन भाग गर्भगृह, दर्शन मंडप (पूजा करने का स्‍थान) और सभा गृह (जहां श्रद्धालु एकत्रित होते हैं) हैं। वेदों और ग्रंथों में बद्रीनाथ के संबंध में कहा गया है कि, ‘स्‍वर्ग और पृथ्‍वी पर अनेक पवित्र स्‍थान हैं, लेकिन बद्रीनाथ इन सभी में अग्रगण्य है।’ पौराणिक कथाओं में यह उल्लिखित है कि पीडि़त मानवता को बचाने के लिए जब देवी गंगा ने पृथ्‍वी पर आना स्‍वीकार किया तो हलचल मच गई, क्‍योंकि पृथ्‍वी गंगा के प्रवाह को सहन करने में असमर्थ थी। फलत: गंगा ने खुद को 13 भागों में विभाजित कर लिया। इन्‍हीं में से अलकनंदा भी एक है जो बाद में भगवान विष्‍णु का निवास स्‍थान बना जिसको बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ ‘पंच बद्री’ में एक है।
केदारनाथ
ऋषिकेश से 254 किमी दूरी पर केदारनाथ समुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के उद्गगम स्‍थल के समीप है। यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्‍योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। केदारनाथ मंदिर न केवल आध्‍यात्‍म के दृष्टिकोण से वरन स्‍थापत्‍य कला में भी अन्‍य मंदिरों से भिन्‍न है। यह मंदिर कात्‍युरी शैली में बना हुआ है। यह पहाड़ी के चोटि पर स्थित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्‍थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। इसका छत लकड़ी का बना हुआ है जिसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी का विशालकाय मूर्ति बना हुआ है।
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों गर्भगृह, दर्शन मंडप, यह वह स्‍थान है जहां पर दर्शानार्थी एक बड़े से हॉल में खड़ा होकर पूजा करते हैं एवं सभा मण्‍डप जहां सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं विभक्त किया गया हैं। तीर्थयात्री यहां भगवान शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्‍णु और लक्ष्‍मी, कृष्‍ण, कुंति, द्रौपदि, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।
केदारनाथ मंदिर के खुलने का समय निर्धारित नहीं रहता है। हर साल शिवरात्री की तिथि के अनुसार पंच पुरोहित के द्वारा उखीमठ में इस बात का फैसला किया जाता है कि मंदिर कब खुलेगी। मंदिर यम द्वितीया या भाई दूज के दिन बंद हो जाता है। सर्दियों में मंदिर का द्वार बंद हो जाने के बाद वहां कोई नहीं रहता है। पंडे गुप्‍तकाशी में और रावल उखीमठ में निवास करते हैं। मंदिर 6 बजे पूर्वाह्न से दो बजे अपराह्न तक खुला रहता है। पुन: पांच से लेकर आठ बजे सायं तक मंदिर खुला रहता है।
केदारनाथ में विशेष पूजा का भी आयोजन किया जाता है। यह अमूमन सुबह चार से छह बजे तक होती है। लेकिन ज्‍यादा भीड़ होने पर आधी रात के बाद भी विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। दर्शानार्थी 20 वर्षों में एक बार होने वाले विशेष पूजा के लिए भी अपनी व्‍यवस्‍था करवा सकते हैं। इसके लिए उनको भारतीय स्‍टेट बैंक, उखीमठ के नाम से अपेक्षित ड्राफ्ट गौरी माई मंदिर, उखीमठ, जिला-रूद्रप्रयाग, उत्‍तरांचल के नाम पर पोस्‍ट करना होता है।
वायुपुराण के अनुसार भगवान विष्‍णु मानव जाति की भलाई के लिए पृथ्वी पर निवास करने आए। उन्‍होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का निवास था। लेकिन उन्‍होंने नारायण के लिए इस स्‍थान का त्‍याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। इसलिए पंच केदार यात्रा में केदारनाथ को अहम स्‍थान प्राप्‍त है। साथ ही केदारनाथ त्‍याग की भावना को भी दर्शाता है। यह वही जगह है जहां आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में समाधि में लीन हुए थे। इससे पहले उन्‍होंने वीर शैव को केदारनाथ का रावल (मुख्‍य पुरोहित) नियुक्‍त किया था। वर्तमान में केदारनाथ मंदिर 337 वें नंबर के रावल द्वारा उखीमठ, जहां सर्दियों में भगवान शिव को ले जाया जाता है, से संचालित हो रहा है। इसके अलावा गुप्‍तकाशी के आसपास निवास करनेवाले पंडित भी इस मंदिर के काम-काज को देखते हैं।

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