लघुकथा – मिसाल बनो मजबूरी नही,

किसी बड़े शहर की एक पूरी पॉश सोसाइटी को सरकारी सोसाइटी कहा जाता था।यहां पर रहने वाले सभी लोग अच्छी बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों पर काम करने वाले थे या सरकारी नौकरियों से रिटायर हुए व्यक्ति थे।जैसा कि सभी पॉश सोसाइटी में होता है।यहां भी सुबह अंधेरे ही छोटे-छोटे बच्चे जो कूड़ा चुनने वाले होते हैं,आ जाते थे और वहीं पर रहने वाले लोगों से भीख मांग कर अपना पेट भरते थे।सभी घरों से उन्हें कुछ ना कुछ खाने को मिल ही जाता है। लेकिन उस एरिया के सभी लोगों ने अक्सर ऐसा देखा कि वर्मा जी के यहां से कभी भी किसी बच्चे को कुछ भी नही दिया जाता है।अक्सर वह ऐसे बच्चों को देख कर भी अनदेखा कर देते हैं।सारे पड़ोस में इसी वजह से उनके लिए काफी बातें भी होती हैं।इतना पैसा होने के बावजूद भी किसी गरीब बच्चे को कुछ भी नहीं खिलाते।बस अपनी कोठी के सामने दूसरे प्लॉट को बनाने पर लगे पड़े हैं।किसी भी छोटे बच्चे की सहायता नही करते।इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए वर्मा जी ने अपने प्लॉट पर एक बिल्डिंग का भव्य निर्माण किया।   सारे पड़ोस के लोग भी अचंभित थे।क्योंकि अकेले रहने वाले वर्मा जी दो-दो मकानों का क्या करेंगे। वर्मा जी के दोनों बेटे विदेश में नौकरी करते हैं।पूरा मकान तैयार होने के बाद एक दिन सभी पड़ोस वालों ने देखा की वर्मा जी ने अपने दूसरे मकान में बच्चों के स्कूल की स्थापना की और स्कूल का नाम सबका स्कूल रखा।उन्होंने सभी पड़ोसियों को बुलाया और अपने स्कूल के बारे में कुछ बातें सभी के सामने रखी।वर्मा जी ने आसपास के सभी लोगों से कहा कि हम सभी व्यक्ति पैसों के मामले में संपन्न है।मैं सभी गरीब बच्चों के लिए जो सुबह कूड़ा उठाते हैं या और भी ऐसे गरीब बच्चे जो पढ़ नहीं पाते। उनके लिए इस स्कूल को बिल्कुल प्राइवेट स्कूल की तरह बनाना चाहता हूं।इसमें मुझे आप सभी का सहयोग चाहिए।यहां पर जो भी अध्यापक अध्यापिका पढ़ाने के लिए आएंगे।उन सभी की तनख्वाह की जिम्मेदारी अगर हम सभी लोग मिलकर ले लेंगे तो सभी बच्चो का भविष्य सुधर जाएगा।   मैं पूरी कोशिश करूंगा कि किसी भी तरीके से या तो खुद या आप लोगो की सहायता से कुछ फंड इकट्ठा करके इसे शुरू करूँ।वर्मा जी के इस प्रस्ताव से सभी लोग सहमत हो गए।अब सभी लोगों की गलतफहमी दूर हो चुकी थी।वर्मा जी ने आसपास के सभी लोगों के लिए एक बहुत बड़ी मिसाल( नज़ीर )प्रस्तुत की।देश की सभी गरीब बच्चों को भीख में खाना खिलाकर ही काम नहीं चलेगा।अगर उनकी गरीबी दूर करनी है तो उन्हें पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाना होगा कि वह आगे कभी भी भीख ना मांगे।वर्मा जी की बात से सभी सहमत थे और सभी ने इस स्कूल के लिए अपना-अपना जो भी सहयोग हो सकता था देकर शुरू किया।सबका स्कूल सब के सहयोग से  आगे बढ़ने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *