देश भर में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

,नई दिल्ली। संशोधित नागरिकता कानून के समर्थन में भारत और विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के करीब 1,100 शिक्षाविदों और शोध विशेषज्ञों ने शनिवार को एक बयान जारी किया है। बयान में हस्ताक्षर करने वालों में राज्यसभा के सदस्य स्वपन दासगुप्ता, आईआईएम शिलांग के प्रमुख शिशिर बजोरिया, नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति सुनैना सिंह, जेएनयू के डीन (एसएलएल और सीएस) ऐनुल हसन, इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कन्फ्लिक्ट स्टडीज में सीनियर फेलो अजिभीत अय्यर मित्रा और पत्रकार कंचन गुप्ता शामिल हैं।

यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश भर में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र भी इन प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं। अपने बयान में इन शिक्षाविदों ने समाज के प्रत्येक वर्ग से, “संयम बरतने और दुष्प्रचार, सांप्रदायिकता एवं अराजकता के जाल में नहीं फंसने” की अपील की है।

बयान में कहा गया, ”हम बेहद गुस्से के साथ इस बात की ओर भी ध्यान दिलाना चाहते हैं कि जानबूझ कर तनाव एवं भय की अफवाह फैला कर देश में डर एवं उन्माद का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे देश के कई हिस्सों में हिंसा हो रही है। इस बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं ने, ”भुलाए गए अल्पसंख्यकों के साथ खड़े होने और भारत के सभ्यतागत स्वभाव को बरकरार रखने तथा, ”धार्मिक प्रताड़ना के कारण भाग कर आने वालों को शरण देने के लिए संसद को बधाई भी दी।

इसमें कहा गया कि यह कानून पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले अल्पसंख्यकों को शरण देने की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करता है। बयान में कहा गया कि 1950 के लियाकत नेहरू संधि की विफलता के बाद से, कांग्रेस, माकपा जैसे राजनीतिक दलों के कई नेताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की मांग की है। इनमें से ज्यादातर दलित समुदाय से हैं।

इसमें कहा गया, ”हम इस बात से संतुष्ट हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों की चिंताओं को सुना गया और उचित ढंग से उनका समाधान किया गया। हमारा मानना है कि सीएए पूरी तरह भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुरूप है क्योंकि यह किसी भी देश के किसी भी धर्म के किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता पाने से नहीं रोकता है।

बयान में कहा गया कि न ही यह किसी भी तरीके से नागरिकता की शर्तों को बदलता है, यह महज तीन विशेष देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भाग कर आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को खास परिस्थितियों में उनकी समस्या का त्वरित विशेष समाधान करता है। इसमें कहा गया, ”यह इन तीन देशों के किसी भी धर्म या वर्ग के लोगों या अहमदी, हजारा, बलोच किसी को भी नियमित प्रक्रिया के जरिए नागरिकता लेने से नहीं रोकता है।

दो सप्ताह पहले 1,000 वैज्ञानिकों और विद्वानों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर कर संशोधित नागरिक कानून के मौजूदा रूप को वापस लेने की मांग की थी। इसके बाद 600 कलाकारों, लेखकों, शिक्षाविदों, पूर्व न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों ने इस कानून को ”भेदभावपूर्ण, विभाजक बताते हुए इसे वापस लेने की अपील की थी।

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