सावधान! देहरादून पहुंचे प्लास्टिक के चावल, ऐसे करें पहचान

देहरादून : अभी तक सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगहों पर खाने में प्लास्टिक के चावल के प्रयोग की खबरें ही सुनी जा रही थी, लेकिन अब भोजन के नाम पर प्लास्टिक परोसने का धंधा दून भी पहुंच गया है। वायरल हुए एक रेस्टोरेंट के वीडियो ने इसे साबित कर दिया। अब सवाल ये है कि आखिर दून में प्लास्टिक का चावल कहां से सप्लाई किया जा रहा है। यह जानना और लोगों की सेहत खराब कर रहे इस काले धंधे पर लगाम लगाना फिलहाल खाद्य सुरक्षा विभाग से लेकर प्रशासन के लिए चुनौती से कम नहीं है।

सच तो ये है कि इस धंधे के पनपने की असली वजह विभागीय अधिकारी हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारियों को वैसे तो नियमित रूप से चेकिंग अभियान चलाकर इस धंधे पर लगाम लगानी चाहिए, लेकिन हकीकत ये है कि अफसर साल में सिर्फ दो बार होली व दीपावली पर ही सड़कों पर नजर आते हैं और तब भी कार्रवाई सिर्फ मिठाई की दुकानों तक सिमट जाती है। जबकि, बाजार में चल रहे लोगों की सेहत बिगाडऩे के धंधे से अफसर बेखबर हैं।

हर दिन 500 कुंतल की खपत

दून के बाजार की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा चावल की सप्लाई हरियाणा से होती है। इसके अलावा रुद्रपुर मंडी, काशीपुर व दिल्ली से भी बड़ी मात्रा में चावल सप्लाई होता है। व्यापारियों की मानें तो शहर में प्रतिदिन 500 कुंतल चावल की खपत होती है।

क्या दून में सक्रिय है गिरोह

सवाल ये है कि क्या ये चावल दून में ही किसी गिरोह द्वारा तैयार किया जा रहा है या फिर कहीं बाहर से इसकी आपूर्ति हो रही है। यही नहीं, प्रशासन के लिए सवाल ये भी है कि आखिर सामान्य और प्लास्टिक के चावल के दाम में कितना अंतर है, जिस कारण असली के बजाए खाने में लोगों को प्लास्टिक से बने चावल परोसे जा रहे हैं। प्लास्टिक के चावल की ऐसे करें पहचान 

  • चमक: जब आप चावल को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे प्लास्टिक का चावल असली चावल की तुलना में ज्यादा चमकदार नजर आता है।
  • आकार: यदि दो तरह के नकली चावलों को एक साथ मिलाकर देखेंगे तो सारे चावलों की मोटाई और आकार एक जैसा ही दिखाई देगा।
  • वजन: नकली चावल का वजन असली की तुलना में कम होता है, इसीलिए तौलने पर नकली चावल की मात्रा अधिक होगी।
  • भूसी: नकली चावल बिल्कुल साफ सुथरा होगा, जबकि असली चावल में कहीं न कहीं धान की भूसी मिल ही जाएगी।
  • खुशबू: चावल को पकाते वक्त उसे सूंघ कर देखें। प्लास्टिक चावल पकते वक्त, बिल्कुल प्लास्टिक की तरह महकते हैं।
  • कच्चापन: प्लास्टिक का चावल काफी देर तक पकाने के बाद भी ठीक से नहीं पकता, जबकि असली चावल अच्छी तरह से पक जाता है।
  • मांड: प्लास्टिक चावल को पकाने के बाद, बचे हुए उसके पानी यानी मांड पर सफेद रंग की परत जम जाती है। यदि इस मांड को कुछ देर तक धूप में रखा जाए तो यह पूरी तरह से प्लास्टिक बन जाता है, जिसे जलाया भी जा सकता है। यह एक बेहतर तरीका है, प्लास्टिक चावल को पहचानने का।

प्लास्टिक चावल पानी में नहीं तैरता

वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीन पंवार का कहना है कि भिगोते वक्त ध्यान रखें, प्लास्टिक चावल पानी में नहीं तैरता क्योंकि यह सौ फीसद प्लास्टिक नहीं होता, इसमें आलू और शकरकंद भी मिला होता है। जबकि कुछ असली चावल पानी में तैरते हैं।

प्लास्टिक चावल से कैंसर होने का भी खतरा

वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीन पंवार का कहना है कि प्लास्टिक का चावल शरीर हजम नहीं कर पाता, यह चावल व्यक्ति की आंतों में जम जाता है। इससे आंतों की सूजन, रुकावट व इंफेक्शन होने का खतरा बन जाता है। साथ ही, नियमित रूप से इस चावल के इस्तेमाल से कैंसर होने का भी खतरा बन जाता है।

जिला आपूर्ति अधिकारी विपिन कुमार का कहना है कि विभाग सिर्फ सरकारी खरीद की आपूर्ति देखता है। यह मामला चावल की क्वालिटी से जुड़ा है। ऐसे मामले में खाद्य सुरक्षा विभाग कार्रवाई करता है।

 

News Source: jagran.com

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