जाति पर विकास को तरजीह दे रहे नीतीश
पटना । जातीय आधार पर मतदान के लिए बदनाम बिहार की राजनीति नए रास्ते पर चल पड़ी है। हालांकि, पक्ष-विपक्ष के नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला सुबह-शाम सरेआम जारी है, किंतु इसके बावजूद अब जातीय गठजोड़ का फार्मूला हाशिये पर है और समूहों को टारगेट करके मानव विकास के आधार पर राजनीति का ट्रेंड सेट किया जाने लगा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार के पिछले नौ महीने की कार्यशैली एवं गतिविधियों का अवलोकन करें तो सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध युद्ध और सात निश्चय के जरिए किसानों, आधी आबादी, विद्यार्थियों एवं बेरोजगारों के मुद्दों पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया है।
जातीय सम्मेलनों, आंदोलनों और वर्ग संघर्ष की पहचान वाले प्रदेश की सियासत में यह नई किस्म का बदलाव है। सत्ता पक्ष ने अगर इसे इसी तरह जारी रखा तो अगले कुछ वर्षों में वोट बैंक के मायने बदलना तय है। जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार के शब्दों में मुद्दों पर राजनीति करने वाली सरकार में यह अचानक बदलाव नहीं है। 2005 में जब पहली बार राज्य में नीतीश कुमार की सरकार बनी थी तो पंचायतों और नगर निकायों में आधी आबादी के लिए 50 फीसद आरक्षण देकर तय कर दिया गया था कि जातीय राजनीति के दिन अब लदने वाले हैं।