विवाह के मौके पर नवदंपती रोपते हैं परिणय पौधा

हल्‍द्वानी : बेटी की डोली विदा करते हुए माता-पिता का दिल खुशी और संतोष से भर उठता है। वहीं, विरह की पीड़ा भी उन्हें व्याकुल कर देती है। बिटिया जिस आंगन में पली-बढ़ी, विदा होने से पहले बाबुल के उसी आंगन में एक नन्हा सा पौधा रोप जाती है। ताकि बाबुल का आंगन उसके बिना सूना सा न लगे। लाडो का लगाया ये नन्हा पौधा बाबुल के लिए मानो अनमोल धरोहर बन जाता है।

इस पौधे की देखरेख माता-पिता उसी तरह से करते हैं, जैसे उन्होंने बेटी को पाला था। पांच साल पूर्व कुमाऊं में इस छोटी सी मुहिम की शुरुआत करने वाले अध्यापक मोहन चंद्र पाठक ने तब यह सोचा भी नहीं था कि उनकी पहल परंपरा का रूप ले लेगी। आज यह एक सुंदर और सार्थक परंपरा बन चुकी है।

यहां जिस भी घर से बिटिया की डोली उठती है, बेटी घर-आंगन को स्मृति के तौर पर एक पौधा देकर जाती है। सात फेरे लेने के बाद बिटिया-दामाद के हाथों से पौधा रोपा जाता है। विवाह के निमंत्रण कार्ड पर भी इसे एक विशेष मांगलिक बेला के रूप में अंकित किया जाने लगा है। मोहन पाठक अब तक 400 नवदंपतियों को इस मुहिम से जोड़ चुके  हैं। इतने ही पौधे बाबुल के आंगन में खिलखिला रहे हैं।

परिणय पौधा : 

राजकीय हाईस्कूल नैनी सैनी (पिथौरागढ़) में प्रधानाचार्य के पद पर तैनात मोहन चंद्र पाठक ने वर्ष 2012 में चम्पावत जिले के लोहाघाट से इस रस्म की शुरुआत की थी। इसे नाम दिया गया परिणय पौधा। विवाह की सभी रस्में पूरी होने के बाद बारातियों की मौजूदगी में जब दूल्हा-दुल्हन ने पौधा रोपा तो हर कोई हैरान था, मगर जब लोगों को इसके मायने पता चले तो सभी ने इसे सराहा। इसके बाद एक व्यक्ति से दूसरे तक यह बात पहुंचती गई।

धीरे-धीरे इसे विवाह की एक विशेष रस्म के रूप में स्वीकार किया जाने लगा। पाठक ने लोहाघाट के बाद कुमाऊं के पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिले में इस परंपरा का बीजारोपण किया। लोग इससे प्रभावित हुए। बिटिया की याद के रूप में हर आंगन में पौधा दिखने लगा। नवदंपतियों ने जिन 400 पौधों को अब तक रोपा है, उनमें से अधिकांश अब पेड़ बनकर फल और छाया दे

रहे हैं।

दे रहे पर्यावरण संरक्षण की सीख :

पेशे से मोहन पाठक शिक्षक हैं। लेकिन उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को भी शिक्षा का हिस्सा बना लिया है। शादियों के सीजन में वह खुद लोगों के घरों में जाते हैं। उन्हें प्रेरित करते हैं और खुद भी आयोजन में शामिल होते हैं। मकसद यह है कि जिस पौधे को बेटी रोपकर पीहर के लिए प्रस्थान करे, उसे माता-पिता संतान की तरह प्यार करें और एक पौधा बड़ा होकर पेड़ बने तो यह बाकियों के लिए प्रेरणा बने।

मोहन पाठक कहते हैं कि अब लोग खुद-ब-खुद इसमें रुचि ले रहे हैं। बिटिया की शादी के खास मौके को और खास बनाने के लिए पौधरोपण करवाने लगे हैं। पाठक की यह मुहिम सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है। उन्होंने विद्यालय में प्रवेश लेने वाले हर छात्र को भी एक पौधा लगाने और उसकी देखरेख करने की जिम्मेदारी सौंपी है। अपने स्कूल में हर दिन वह हर उस पौधे को देखते हैं, जिन्हें विद्यार्थियों ने रोपा है।रक्षाबंधन पर पेड़ों पर राखी बांधी जाती है। दीपावली पर दीये जलाए जाते हैं और होली में इन पर रंग लगाए जाते हैं।

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