कभी वर्षा के लिए विख्यात देहरादून अब पानी के लिए तरस रहा

हमेशा ही परिवर्तन पर चिंताएं व्यक्त की जाती हैं और फिर जीवन धडल्ले से पुरानी पटरी पर लौट आता है। नदियों के मार्ग रोकने से निःसंदेह पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ा है। इस सर्वे से भी कमोवेश ऐसा ही नतीजा निकलकर आता है। आज पहाड़ों पर जल स्रोत सूख गये हैं, जमीन की नमी भी जाती रही। कतिनी ही वनस्पतियां सूख गईं हैं, कभी विशाल झरनों के लिए ख्याति प्राप्त यह राज्य अब झरनों को तरस रहा है। उच्च हिमालय को छोड़ दें तो अब देवभूमि झरनों से महरूम होने लगी है। प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने से पीने के पानी की भारी किल्लत हो गई है। पूरे पहाड़ पर तापमान में भीषण वृद्धि हो रही है जिससे वर्षा अनियमित हो गई है। कभी वर्षा के लिए विख्यात देहरादून अब पानी के लिए तरस रहा है। तो टिहरी के लगभग सभी क्षेत्रों में बादल छाये रहते हैं और बरसात नहीं होती है। इतना ही नहीं मनुष्य के जीवन में गम्भीर परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। अब मनुष्य ऐसी बीमारियों से ग्रस्त होने लगे हैं जिन बीमारियों के नाम कभी पहाड़ों पर सुने भी नहीं गये थे। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में भारी कमी आई है। किसान के लिए तो यह मौसम बुरी खबर लेकर आया है। फसलों का घनत्व कम हुआ है और पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। वन्य जीवों ने भी अपने परम्प्रागत निवासों को बदल दिया है। अब बरसात या तो होगी ही नहीं, यदि होगी तो इतनी भीषण होगी कि सब कुछ तहस-नहस करके रख देगी। पिछले कई वर्षों से उत्तराखण्ड ही नहीं वरन समूचे हिमालयी क्षेत्र में इस प्रकार की अनियमितता देखने को मिल रही है। जहां बड़े-बड़े डैम निर्मित हुए हैं, वहां पर इस तरह की समस्यायें सबसे अधिक पैदा हुई हैं। यह मामला चिंताजनक ही नहीं है बल्कि मनुष्य के साथ-साथ सम्पूर्ण जीवन को खतरे से बचाने का सवाल हम सबके सामने है। आज हम सब अपने छोटे-छोटे स्वार्थों में उलझे हुए हैं। समाज, देश और प्रकृति की चिंता शायद ही किसी को होगी। और इसीलिए समस्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। पर्यावरणविद् कितनी ही बार कह चुके हैं कि पूरे हिमालय का पर्यावरण बहुत तेजी से बदल रहा है। बदलते पर्यावरण के हिसाब से मनुष्यों का जीवन तो संकट में पड़ेगा ही लेकिन उससे पहले जुगली जानवरों को जीवन संकट में पड़ गया है। इसी कारण अब वन्य जीवों और मनुष्यों में पहाड़ के मौसम को सहने की क्षमता कम होती जा रही है। जल स्रोतों के सूखने से पहाड़ों से पलायन भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। जंगली जानवर अब गांवों और घरों तक आने लगे हैं।इस क्षेत्र में कोई कारगर कार्य योजना अभी तक नहीं बनाई है। वन विभाग के नियमों के चलते आम आदमी पर्यावरण संरक्षण से स्वयं अलग हो गया। इसका खामियाजा वनों को उठाना पड़ा। हालांकि आदमी ने भी इसकी बड़ी कीमत चुकाई है।

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