मैक्स अस्पताल उत्तराखण्ड के मरीजों के लिए बना जीवनदाता

ईवीएआर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल एब्डॉमिनल एवं थोरेसिक आयोर्टिक एन्यूरिज़्म के इलाज में किया जाता : सडाना

देहरादून, । मैक्स अस्पताल देहरादून अब मिनीमली इनवेसिव उपचार एंडोवैस्कुलर एब्डॉमिनल आर्योटिक एन्यूरिज़्म रिपेयर (ईवीएआर) को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। ईवीएआर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल एब्डॉमिनल एवं थोरेसिक आयोर्टिक एन्यूरिज़्म के इलाज में किया जाता है। एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म ऐसी स्थिति है जिसमें आर्योटा (महाधमनी) गुब्बारे की तरह फूल जाती है। आर्योटा हमारे शरीर की मुख्य धमनी (आर्टरी) है जो दिल से ऑक्सीजन युक्त खून लेकर शरीर के विभिन्न हिस्सों और दिमाग तक पहुंचाती है। एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म (एएए) मृत्यु का दसवां सबसे बड़ा कारण है, इसके 20 फीसदी से कम मरीज़ जीवित रह पाते हैं, यह अक्सर 50 से अधिक उम्र के उन लोगों को होती है जो बायपास सर्जरी करवा चुके हैं। लेकिन अल्ट्रासाउण्ड के द्वारा जल्दी निदान तथा ईवीएआर उपचार से मरीज़ को बचाया जा सकता है। यहां सुभाष रोड स्थित एक होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में डॉ. प्रीति शर्मा, प्रिंसिपल कन्सलटेन्ट, कार्डियोलोजी विभाग ने कहा कि हाल ही में हुए एक मामले में ‘‘मरीज की आर्योटा का सामान्य आकार 3 सेंटीमीटर होता है, लेकिन एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म में यह फूल जाती है। अगर यह फट जाए तो जानलेवा हो सकती है। इस तरह के मामलों का इलाज ओपन सर्जरी द्वारा किया जाता है, लेकिन इस तरह की सर्जरी बहुत ज़्यादा इनवेसिव होती है और मरीज़ को ठीक होने में दो सप्ताह से भी ज़्यादा लग जाते हैं। लेकिन इस मामले में हमने मिनीमली इनवेसिव तकनीक ईवीएआर की मदद से मरीज का इलाज किया। इस प्रक्रिया में एक विशेष डिवाइस- एंडोवैस्कुलर स्टेंट ग्राफ्ट को आर्योटा के क्षतिग्रस्त हिस्से तक डाला जाता है। इसमें सर्जिकल ओपनिंग की ज़रूरत नहीं होती और इसीलिए यह कम इनवेसिव प्रक्रिया है।’’स्टेंट ग्राफ्ट के बारे में बात करते हुए डॉ. पुनीश सडाना, सीनियर कन्सलटेन्ट, कार्डियोलोजी विभाग ने कहा, ‘‘एंडोवैस्कुलर स्टेंट ग्राफ्ट के द्वारा रक्त के प्रवाह के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाया जाता है। ताकि आर्योटा के फूले हुए हिस्से से रक्त का प्रवाह न हो। जिससे आर्योटा के फटने और हेमरेज के कारण मरीज़ की मृत्यु की संभावना खत्म हो जाती है।’’एएए से पीड़ित ज़्यादातर मरीज़ों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देती, अगर यह एन्यूरिज़्म तेज़ी से बढ़ जाए तो इसके अचानक फटने के कारण मरीज़ की मौत हो सकती है। ज़्यादातर मामलों में ये धीरे धीरे बढ़ते हैं, इसलिए आसान से अल्ट्रासाउण्ड द्वारा इनका निदान कर इलाज किया जा सकता है। एंडोवैस्कुलर स्टेंट ग्राफ्टिंग और ओपन सर्जरी ग्राफ्टिंग की तुलना करें तो दोनों प्रक्रियाएं एब्डॉमिनल आर्योटिक एन्यूरिज़्म के इलाज के लिए की जाती हैं। अंतर यह है कि एंडोवैस्कुलर रिपेयर प्रक्रिया में आर्योटा से कोई टिश्यू निकाले बिना स्टेंट ग्राफ्ट को एन्यूरिज़्म के अंदर डाला जाता है, इसमें ओपन सर्जरी की ज़रूरत नहीं होती।

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