पितृ विसर्जन पर श्रद्धालुओं ने किया गंगा स्नान, वापस लौटेंगे पितर

हरिद्वार : प्रतिप्रदा श्राद्ध के साथ शुरू हुए 15 दिनों के श्राद्ध पक्ष पितृ मोक्ष अमावस्या के साथ  बुधवार को समाप्त हो रहा है। इसके साथ ही यमराज से 15 दिनों की  मुक्ति पा  धरती पर आए पितरों की वापसी भी  हो जाएगी। गुरुवार  21 सितंबर से  नवरात्र आरंभ हो जाएंगे  और 9 दिनों तक देवी की स्तुति होगी। तत्पश्चात  दसवें दिन  दशहरा होगा। पितृ विसर्जन के दिन आज हरिद्वार, ऋषिकेश के गंगा घाटों में स्नान करने वालों का भी तांता लगा रहा।

अश्विन कृष्ण अमावस्या का श्राद्ध पक्ष में  बड़ा ही महत्व है। इस दिन  सभी ज्ञान और अज्ञात  पितरों  अपने पूर्वजों  की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म  कर्मकांड  कराए जाते हैं। धर्म नगरी में  इसके लिए  मंगलवार रात से ही  भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी।

इस दिन का धर्म नगरी में  कितना महत्व है। इसका सहज अंदाजा  इस बात से ही लगाया जा सकता है की  प्रशासन ने आज के दिन  जिले में सार्वजनिक अवकाश  घोषित कर दिया है | व्यवस्था बनाए रखने के लिए  पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। तमाम जगहों पर  रास्ते  डाइवर्ट किए गए हैं तो  कई सड़कों पर  वाहनों के  आवागमन पर  रोक लगी हुई है। यहां तक कि दो पहिया वाहन भी नहीं चलने दिए जा रहे हैं।   आज के दिन नारायणी शिला कुशावर्त घाट हर की पैड़ी आदि इलाकों में भारी भीड़ उमड़ी हुई है।

अल सुबह से ही लोगों ने अपने दिवंगतों के निमित्त नारायणी शिला, कुशावर्त घाट पर कर्मकांड संपन्न कराएं। इसके साथ ही ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा दी। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना।

हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्रि्वन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं, ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

ज्योतिषाचार्य पंडित शक्तिधर शास्त्री ने बताया कि ब्रह्मपुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि से ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है।

पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। बताया कि पूर्णिमा श्राद्ध के साथ ही पितृ पक्ष शुरू हो गए थे। इसके बाद से ही पंद्रह दिनों तक पितर धरती पर थे, जिनकी आज वापसी हो रही है।

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