खुद को दें दूसरा चांस

ये कदम उठाने से पहले खुद को दें दूसरा चांस प्यार में नाकामी हो या मिली हो किसी बात पर हार, आत्महत्या से भी बढ़कर दूसरा और समझदारी भरा कदम भी है आपके पास… सीमा पढने में हमेशा से होशियार थी। पर जब उसका बैकिंग एक्जाम का रिजल्ट आया तो उसे एक पल का यकीन नहीं हुआ कि वो एक्जाम क्लियर नहीं कर पाई है। पापा की उम्मीदें उस पर मां का आखिरी बार एक्जाम देने का अल्टीमेटम, वो यह समझ नहीं पा रही थी कि आगे क्या होगा? और जो पहला उपाय उसके दिमाग में आया वह था आत्महत्या! बात चाहे परीक्षा में फेल होने की हो या प्यार में हारने की, आज युवाओं को किसी भी तरह की परेशानी से दो चार होते ही आत्महत्या का ही ख्याल सबसे पहले आता है। मानसिक रूप से अस्थिर होना आम बात हो गई है। पर उन्हें यह समझना चाहिए कि केवल जीवन समाप्त कर देना ही हर बात का हल नहीं है।
समय रहते हो जाएं सतर्क
युवावस्था सपनों के खाद-पानी पर पकती है और सपने भी सारे सोने के! वे सपने हर तरह के होते हैं जीवन के, कॅरियर के, मनुहार के, परीक्षा में सबसे अव्वल आने के और प्यार में सफलता-विफलता के भी। पर बात अगर परिणाम की करें तो इस सबके चलते देश की नई पीढ़ी में तनाव और अवसाद किस कदर बढ़ रहा है, इसका स्पष्ट
संकेत राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा किशोर और युवा शामिल हैं। दक्षिण एशिया में आत्महत्याओं के मामले में भारत पहले स्थान पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आत्महत्या करने वालों से ज्यादातर की उम्र 44 साल से कम है।
छूट रही है समय की डोर
नई पीढ़ी की आत्महत्याओं से उपजी चिंता के कारण और समाधान को लेकर साइकोलॉजी का अध्ययन कर चुकीं पर्सनालिटी डेवलपमेंट ट्रेनर निकिता खरबंदा बताती हैं, श्आजकल जितने केस आते हैं, उनमें से ज्यादातर यूथ सिर्फ अपना कोई काम या बात मनवाने की जिद के कारण सुसाइड अटेंप्ट करते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे कारण होते हैं जिनका कोई समाधान नहीं है। लोग सिर्फ उन बातों को अपनाना नहीं चाहते, जैसे ब्रेकअप या किसी अपने की मृत्यु। ऐसे में हमारा सबसे पहला काम होता है कि वह व्यक्ति इस बात को समझे कि आत्महत्या किसी चीज का उपाय नहीं है। आत्महत्या की कल्पना करना और उसे व्यवहार में उतारना मानसिक आपातकाल की बहुत ही गंभीर स्थिति है। ऐसे में हमारी सबसे पहली सलाह परिवारवालों को होती है कि वे अपने बच्चों को पूरा समय दें। ओवर एक्सपोजर एवं इंटरनेट की पहुंच ने हम सबको आपस में दूर कर दिया है कि हम अपनी समस्या को सुलझाने के लिए बात करने के बजाय इंटरनेट की मदद लेते हैं। जहां उन्हें समस्या का सही उपाय नहीं मिलता और वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
इन बातों का रखें ख्याल
यदि आपका बच्चा कहीं फेल होकर डिप्रेशन में है और अटपटी बातें करता हो, तो मतलब साफ है कि उसे मनोचिकित्सक की जरूरत होती है। ऐसे में उस लगातार तब तक निगरानी रखनी चाहिए, जब तक वह सुरक्षित हालत में न पहुंच जाएं। अच्छा म्यूजिक सुनें। अच्छा म्यूजिक दर्द में 21 फीसदी और डिप्रेशन में 25 फीसदी तक कमी ला सकता है। दिनचर्या ठीक रखें, नशे के सेवन से बचें, एक्सरसाइज करें। माता-पिता बच्चों से बातें करें उनके मन की बात को ध्यान से सुनें और उनको हर तरह से समझाने की कोशिश करें।
क्या है वजह
विकास की चकाचौंध और आगे बढने की अंधी प्रतिस्पर्धा के बीच हमारे परिवार, समाज और शासन में नई पीढ़ी को सहारा देने की शक्ति क्षीण हो रही है। कुछ स्पष्ट कारणों जैसे तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग इत्यादि के अलावा वैज्ञानिक इसके पीछे सोशल, साइकोलॉजिकल, बायोलॉजिकल एवं जेनेटिक कारण
मानते हैं। इस बारे मनोचिकित्सक डॉ. कलीम अहमद बताते हैं, श्जो लोग मानसिक रूप से परेशान होते हैं उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। कई बार यह आनुवाशिंक भी होता है। इसके अलावा युवावस्था संक्रमण काल है, जिसमें युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर से कॅरियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमेंट, भविष्य की पढ़ाई आदि। ऐसे में जब वह इस अवस्था में आता है कि उन्हें अपनी मर्जी का काम पूरा होता नहीं दिखता या भविष्य के प्रति अनिश्चितता बढ़ जाती है तब डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है। जो गंभीर अवस्था तक पहुंचने पर आत्महत्या के लिए भी प्रेरित कर देती है।

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