उत्तराखंड की लुप्तप्राय आदिम जनजाति वनराजियों की कोरोना जांच और टीकाकरण स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन गया

पिथौरागढ़  । उत्तराखंड की लुप्तप्राय आदिम जनजाति वनराजियों की कोरोना जांच और टीकाकरण स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन गया है। जांच के लिए किमखोला गांव पहुंची टीम को वनराजियों ने खूब छकाया। टीम को देखकर वनराजि घरों से निकलकर जंगल की तरफ भाग गए। व्यवहार से बेहद शर्मीले होने के साथ ही भाषा और संवाद शैली भिन्न होने के कारण भी वनराजियों को समझाना मुश्किल हो रहा है।  भारत-नेपाल सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले में डीडीहाट, कनालीछीना और धारचूला के नौ गांवों में रहते हैं। इनकी जनसंख्या महज 601 है। बीती 25 मई को किमखोला गांव में 45 साल की फुना देवी की सांस लेने में तकलीफ के चलते मौत हो गई थी। उनमें जुकान और बुखार के साथ कोरोना के सभी लक्षण थे।इसके बाद भी वनराजियों ने कोरोना का सैंपल दिये बिना ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया। मामला कोरोना संदिग्ध होने पर स्वास्थ्य विभाग को वनराजियों के गांवों में चिकित्सा शिविर लगाने की याद आई। सीएचसी धारचूला के चिकित्साधिकारी डॉ.गिरीश रिंगवाल टीम के साथ किमखोला गांव पहुंचे। बताते हैं कि गांव में मेडिकल टीम के आने की खबर लगते ही वनराजि अपने घरों से जंगल की तरफ भाग गए। डॉ. रिंगवाल ने बताया कि गांव के पूर्व प्रधान एवं वनराजियों के बीच काम कर रही अर्पण संस्था के सदस्यों को उन्हें मनाने का जिम्मा सौंपा गया। दो घंटे से ज्यादा इंतजार बाद कुछ लोग आए। अर्पण संस्था की सचिव रेणु ठाकुर ने बताया कि आगे भी वे स्वास्थ्य विभाग को सहयोग करेंगे।वनराजियों के गांव में टीम पहुंचने पर लोग भाग गए।  पूर्व ग्राम प्रधान और अन्य की मदद से लोगों को जांच के लिए समझाकर लाया जा सका। इनकी भाषा समझ में नहीं आने से हमें दिक्कत हुई।

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