आपातकाल के बंदियों को लेकर भाजपा का कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ
देहरादून : राज्य में आपातकाल के दौरान बंदी रहे लोगों (लोकतंत्र सेनानी) को चिह्नित कर पेंशन दिए जाने का निर्णय लेकर भाजपा ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रखा है। इसके जरिये भाजपा ने लोकतंत्र के काले अध्याय की याद दिलाने के साथ ही कांग्रेस को निशाने पर भी लिया है। सरकार के इस कदम से प्रदेश कांग्रेस असहज है। वह सीधे तो इसका विरोध नहीं कर पा रही है लेकिन राज्य आंदोलनकारियों की पेंशन से इसकी तुलना करते हुए सरकार को जवाब देने का प्रयास कर रही है।
प्रदेश में भाजपा सरकार ने बीते वर्ष सत्ता में आने के तीन माह के भीतर ही आपातकाल के दौरान मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) और डीआरआइ (डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट) के तहत बंदियों को सम्मान स्वरूप पेंशन देने का निर्णय लिया था। दरअसल, आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी नीत कांग्रेस सरकार ने मीसा एक्ट के तहत कई लोगों को जेल भेजा था। तब भाजपा अस्तित्व में भी नहीं आई थी और जनसंघ के रूप में जनता पार्टी के साथ जुड़ी थी।
आपातकाल को विपक्षी दलों ने लोकतंत्र पर हमला करार दिया था। सबसे पहले उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान स्वरूप पेंशन देने का निर्णय लिया गया था। आपातकाल के 42 वर्ष बाद उत्तराखंड में भी इसे लागू करने का निर्णय लिया गया।
अब इसका बकायदा शासनादेश जारी हो चुका है। इन्हें लोकतंत्र सेनानी का नाम दिया गया है। प्रदेश सरकार ने पेंशन के लिए एक निर्धारित प्रारूप में आवेदन मांगा है। पेंशन का दावा करने वालों के लिए आपातकाल के दौरान एक माह की जेल और आंदोलन में शिरकत करने के दस्तावेज देने जरूरी हैं।
उत्तराखंड से पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्यप्रदेश में लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन दी जा रही है। इसके अलावा कुछ अन्य प्रदेश भी आपातकाल के दौरान बंदियों को सम्मान स्वरूप पेंशन देने की तैयारी कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को जून तक यह सारी प्रक्रिया पूर्ण करने को कहा है।
भाजपा सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों को लोकतंत्र के सच्चे सिपाही करार दिया है। स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यह कह चुके हैं कि इन लोगों ने लोकतंत्र के हत्यारों के खिलाफ जंग लड़ी है। इनको बर्बरतापूर्वक यातना दी गई। जिसके सामने यह पेंशन बहुत कम है।
वहीं, कांग्रेस सीधे प्रदेश सरकार के इस कदम का विरोध नहीं कर पाई है और न ही इस पर कोई जवाब दे पा रही है। हालांकि पार्टी के कुछ नेता राज्य आंदोलनकारियों की पेंशन से इनकी तुलना कर मुद्दे को उठाने देने का प्रयास कर रहे हैं।
स्वागत योग्य कदम
आपातकाल में मीसा एक्ट के तहत सहारनपुर जेल में बंदी रहे प्रेम बुड़ाकोटी के मुताबिक देश की आजादी के बाद यह लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला था। आने वाली पीढ़ी को लगना चाहिए कि तब लोग चुप नहीं बैठे थे और निरंकुशता के खिलाफ सत्याग्रह किया। सरकार का यह कदम स्वागतयोग्य है।