हरीश रावत का पहाड़ विरोधी होना रहा हार का कारण, आने वाले सीएम को रखना होगा पर्वतीय क्षेत्र का ध्यान, वरना होगी कांग्रेस की तरह दुर्गति

ऋषिकेश।  राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से चनाव हारे। बीजेपी के यतिस्वरानंद ने शिकस्त दे दी, साथ ही हरीश रावत किच्छा सीट भी हार गए हैं।

हरीश रावत को न तो मोदी ने हराया और न ही मतदाताओं ने हराया। हरीश रावत के साथ साथ पूरी कांग्रेस को उत्तराखंड में डूबने का कारण हरीश रावत का पहाड़ विरोधी होना रहा है , साथ ही अति आत्मविश्वास और घमण्ड भी कांग्रेस की हार का कारण रहा है। पिछली सभी सरकारों की तुलना में हरीश रावत सरकार ने पहाड़ी जनपदों और पहाड़ के लोंगो को दोयम दर्जे से आंकलन किया, और गलत सलाहकारों को तवज्जो दी।
यहां तक की पहाड़ की संस्कृति को बचाने के लिए या उसका विकास करने के लिए भी सलाहकार दूसरे राज्य के व्यक्ति को बना दिया, पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के विकास के लिए युवा कल्याण विकास की जिम्मेदारी भी किसी ऐंसे व्यक्ति को दी जिसको पहाड़ों के बारे में कोई भी जानकारी नही थी। ऐंसे ही कितने कार्य हरीश रावत ने किये जो उत्तराखंड के निवासियों के हित में नही थे। यही एक मौका जनता के पास था जिसको जनता ने हरीश रावत कम्पनी के खिलाफ मत देकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। जिस हरीश रावत को जमीनी नेता बोला जाता था उसी को गलत नीतियों के कारण जनता ने जमीन में बिठा दिया। किसी सीएम की इससे बड़ी नाकामी क्या हो सकती है कि वो खुद दो दो सीटों पर चुनाव लडे और बुरी गत से हार जाय।
फिलहाल हरीश रावत का तो उत्तराखंड की सत्ता से जाना तय हो गया है लेकिन आने वाली सरकार के मुखिया के लिए भी एक चुनौती होगी कि पहाड़ के विकास की ओर भी ध्यान किस तरह देता है या हरीश रावत की तरह ही अपने चाण बाणो से घिरकर योजना बनाता है।

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