चुनावी सड़क पर दौड़ने को तैयार साइकिल

देहरादून । उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद हुए चार विधानसभा चुनावों में खाता खोलने में नाकामयाब रही समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर सूबे में साइकिल दौड़ाने की मशक्कत शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले नई प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। हालांकि सपा के लिए यह बहुत आसान नहीं है, क्योंकि पिछले 20 सालों के दौरान में उसका जनाधार लगातार घटा है। उत्तराखंड में सपा की एकमात्र चुनावी उपलब्धि 16 साल पहले, वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट पर जीत रही है। तब सपा के राजेंद्र बाडी यहां से चुने गए थे।जब उत्तराखंड का अलग राज्य के रूप में गठन नहीं हुआ था, तब सपा की इस क्षेत्र में ठीकठाक पकड़ थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा के 1996 में हुए चुनाव में सपा ने वर्तमान उत्तराखंड के भौगोलिक क्षेत्र में आने वाली 22 सीटों पर चुनाव लड़ा और इनमें से तीन पर जीत हासिल की। महत्वपूर्ण बात यह कि सपा को यह कामयाबी वर्ष 1994 के अलग राज्य आंदोलन के बाद मिली। राज्य आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी। तत्कालीन सपा सरकार के आंदोलन के प्रति नजरिये के कारण उसकी छवि उत्तराखंड में खलनायक की बन गई थी।इसके बावजूद सपा के इस क्षेत्र में जनाधार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की पहली अंतरिम 30 सदस्यीय विधानसभा में सपा के तीन सदस्य थे। नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, उस वक्त उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले 30 सदस्यों को लेकर अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया था। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद सपा की किस्मत उसे दगा दे गई। वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में सपा ने राज्य विधानसभा की 70 में से 63 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन जीत एक को भी नहीं मिली। सपा के हिस्से कुल 6.27 प्रतिशत मत आए।वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में सपा ने 55 प्रत्याशी मैदान में उतारे, लेकिन नतीजा इस बार भी पहले जैसा ही रहा, यानी शून्य। इस विधानसभा चुनाव में सपा का मत प्रतिशत घटकर 4.96 तक पहुंच गया। वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में सपा के हिस्से केवल 1.45 प्रतिशत मत आए, जबकि उसने 45 सीटों पर चुनाव लड़ा। कोई सीट जीतने का तो सवाल ही नहीं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव सपा के लिए सबसे निराशाजनक साबित हुए। इस बार सपा ने केवल 25 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक सीट पर भी वह जीत दर्ज नहीं कर पाई। कम सीटों पर चुनाव लड़ा तो मत प्रतिशत घटना ही था। सपा को चैथे विधानसभा चुनाव में मिले महज 0.4 प्रतिशत मत।साफ नजर आता है कि उत्तराखंड में सपा की सियासी जमीन पिछले 20 वर्षों में लगातार सिमटी है। उत्तराखंड में दो-दो बार सत्ता पाने वाली भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा तीसरी बड़ी सियासी ताकत है। यह बात दीगर है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को भी एक सीट पर भी जीत हासिल नहीं हुई, लेकिन इससे पहले के तीन चुनाव में उसका प्रदर्शन संतोषजनक रहा था। अब आम आदमी पार्टी भी उत्तराखंड में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है।

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