मैक्स एक पायदान ओर उपर : किडनी ट्रांसप्लान्ट अब दून में

संदीप शर्मा ब्यूरों प्रमुख
मो 7500581414
देहरादून, । मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून अब से किडनी ट्रांसप्लान्ट (गुर्दा प्रत्यारोपण) की सुविधा भी उपलब्ध कराएगा। किडनी ट्रांसप्लन्ट प्रोग्राम का संचालन यूरोलोजिस्ट (ट्रांसप्लान्ट संर्जन्स) की टीम द्वारा किया जाएगा, जो ट्रांसप्लान्ट में बेहद अनुभवी चिकित्सक हैं। इस टीम में डॉ. वाहीद ज़मन, सीनियर कन्लटेन्ट यूरोलोजी एवं रीनल ट्रांसप्लान्टेशन, डॉ. (कर्नल) दारेश डोड्डामनी, सीनियर कन्सलटेन्ट एवं एचओडी यूरोलोजी, डॉ. दीपक गर्ग, कन्सलटेन्ट यूरोलोजी (ट्रांसप्लान्ट फिज़िशियन) डॉ पुनीत अरोड़ा, कन्सलटेन्ट एवं एचओडी नेफ्रोलोजी शामिल हैं।सुभाष रोड स्थितहोटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में नेफ्रोलोजिस्ट डॉ. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि तकरीबन 10 फीसदी आबादी क्रोनिक किडनी रोगों से पीड़ित है, जिसके कई कारण हो सकते हैं जैसे डायबिटीज़ (मधुमेह), हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप), पथरी और कुछ आनुवंशिंक बीमारियां आदि। बीमारी लगातार बढ़ती जाती है, जिसके चलते मरीज़ एंड स्टेज रीनल डीज़ीज़ (अंतिम अवस्था के गुर्दा रोग) की स्थिति तक पहुंच जाता है। जिसके बाद मरीज़ को जीवित रहने और गुणवत्तापूर्ण जिंदगी जीने के लिए आरआरटी (रीनल रीप्लेसमेन्ट थेरेपी) की ज़रूरत होती है। आरआरटी में रीनल ट्रांसप्लान्ट (सबसे अच्छा विकल्प), हीमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी) शामिल हैं। डॉ वाहीद ज़मान और डॉे. दरेश डोड्डामनी ने कहा कि सीकेडी (क्रोनिक गुर्दा रोग) आज महामारी का रूप ले चुका है, अस्वास्थ्यप्रद जीवनशैली के चलते इन मरीज़ों की संख्या दिन-बदिन बढ़ रही है। हर साल लगभग 2.5 लाख नए मरीज़ों को रीनल रीप्लेसमेन्ट थेरेपी की ज़रूरत होती है, जिनमें से 40-50,000 मरीज़ों को ही इलाज मिलता है और 1 फीसदी से कम मरीज़ों में ट्रांसप्लान्ट हो पाता है। जिसके कई कारण हैं जैसे जागरुकता की कमी, कम गुणवत्ता की स्वास्थ्यसेवाएं और डोनर्स का न मिलना। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि मैक्स अस्पताल में कामयाब ट्रांसप्लान्ट सर्जरियां अब नियमित रूप से की जा रही हैं। अंगदान के बारे में बात करते हुए डॉ दीपक गर्ग ने कहा, ‘‘जब भी किसी व्यक्ति को गुर्दा दान में देने के लिए कहा जाता है, व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को लेकर उलझन में पड़ जाता है। हमें समझना होगा कि एक किडनी (गुर्दा) दान में देने से व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, जीवन की गुणवत्ता या उम्र पर कोई असर नहीं पड़ता। आजकल डोनर की नेफ्रेक्टोमी लैप्रोस्कोपी से की जाती है, जिससे डोनर जल्दी ठीक होकर काम पर लौट सकता है। आमतौर पर डोनर को ऑपरेशन के 3 दिनों के अंदर छुट्टी मिल जाती है और इसके बाद वह रोज़मर्रा के सभी काम कर सकता है। उसे कोई अतिरिक्त सावधानियां बरतने की ज़रूरत नहीं होती। इस मौके पर डॉ संदीप सिंह तंवर, वाईस प्रेज़ीडेन्ट ऑपरेशन्स एण्ड युनिट हैड, मैक्स अस्पताल, देहरादून ने कहा, ‘‘देश का अग्रणी स्वास्थ्यसेवा प्रदाता होने के नाते मैक्स अस्पताल हमेशा से मरीज़ों को सर्वश्रेष्ठ सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत रहा है। यह प्रोग्राम किडनी रोगों के मरीज़ों को डायलिसिस के साथ-साथ अब हर तरह के इलाज मुहैया कराएगा। हमारे अनुभवी डॉक्टरों की टीम आधुनिक तकनीकों की मदद से मरीज़ों को आधुनिक सुविधाएं प्रदान करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *