‘‘भारत में हर साल स्ट्रोक के लगभग 14 लाख नए मामले दर्ज किए जाते हैं’’ मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून के विशेषज्ञों ने कहा
ऋषिकेश, इ.वा.।‘स्ट्रोक भारत में मृत्यु एवं अपंगता का मुख्य कारण बन गया है। दुनिया भर में हर साल 20 मिलियन लोग स्ट्रोक की चपेट में आते हैं, 5 मिलियन लोग इसके कारण मृत्यु का शिकार हो जाते हैं और 5 मिलियन लोग अपंग हो जाते हैं। डॉ. दीपक गोयल, हैड, न्यूरोलोजी सर्विसेज़, डप्छक् मैक्स अस्पताल, देहरादून ने बताया, ‘‘ स्ट्रोक के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्ट्रोक के बाद समय बहुत मायने रखता है। स्ट्रोक के बाद हर सैकण्ड मस्तिष्क की 32,000 कोशिकाएं मरती हैं। ऐसे में मरीज़ को जल्द से जल्द निकटतम स्ट्रोक उपचार केन्द्र तक पहुँचाना बेहद अनिवार्य होता है। स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार हैं। अगर स्ट्रोक रक्त वाहिका में थक्का जमने के कारण होता है तो इसे इस्केमिक स्ट्रोक कहते हैं। जबकि रक्त वाहिका फटने के कारण होने वाला स्ट्रोक हेमरेज स्ट्रोक कहलाता है। भारत में होने वाले स्ट्रोक के 12 फीसदी मामले 40 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों में पाए जाते हैं। 50 फीसदी मामले मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉलेस्ट्रोल के कारण होते हैं जबकि शेष मामले किसी अन्य प्रकार के संक्रमण के कारण होते हैं। इन दिनों पहले वाले कारण (मधुमेह, उच्च रक्तचाप एवं कॉलेस्ट्रोल) अधिक आम हो गए हैं।’’
वे मरीज़ जो लक्षण शुरू होने के बाद 60 मिनट यानि ‘‘गोल्डन आवर’’ के अंदर अस्पताल पहुंच जाते हैं, उन्हें थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी देकर उनकी जान बचा ली जाती हैं। वहीं देर से पहुंचने वाले मरीज़ों के मामलों में जटिलताएं बढ़ने की संभावना कई गुना अधिक होती है।’’ इस अवसर पर डॉ विक्रम शर्मा, कन्सलटेन्ट-न्यूरोलोजी, मैक्स अस्पताल, देहरादून, ने कहा, ‘‘स्ट्रोक के केवल 3 फीसदी मरीज़ ही सही समय पर अस्पताल पहुंच पाते हैं और थक्का घोलने के लिए समय रहते थ्रोम्बो एम्बोलायटिक दवाएं देकर उनकी ज़िन्दगी बचा ली जाती है। शेष मरीज़ समय रहते सुपर स्पेशलटी अस्पताल न पहुँचने के कारण (साढ़े चार घण्टे के बाद) लकवे का शिकार हो जाते हैं और थक्का घोलने वाली दवाओं के द्वारा इनका उपचार सम्भव नहीं होता। ऐसे में लोगों को इस बीमारी के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है, सही उपचार एवं रोकथाम के उपाय समस्या के समाधान में मददगार हो सकते हैं।’’
उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून में स्ट्रोक एवं सीवीडी के लिए सभी प्रकार के नॉन-इनवेसिव एवं सर्जिकल उपचार एक ही छत के नीचे उपलब्ध हैं।’’चेहरे, भुजाओं, भाषा और समय आदि में होने वाले बदलाव कई बार इस बात का सूचक होते हैं कि व्यक्ति आने वाले समय में कभी भी स्ट्रोक का शिकार हो सकता है। चेहरे की अनियमितता जैसे चेहरे का एक ओर झुकाव, भुजा का एक ओर झुकाव, अस्पष्ट उच्चारण स्ट्रोक के कुछ सामान्य लक्षण हैं और समय पर उपचार द्वारा स्ट्रोक को रोका जा सकता है और मरीज़ को बदतर स्थिति में पहुंचने से बचाया जा सकता है। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि अधिकतर मामलों में स्ट्रोक की पहचान और मरीज़ को अस्पताल पहुँचाने में देरी की जाती है। मरीज़ के अस्पताल पहुँचने पर उसका सीटी स्कैन किया जाता है जो स्ट्रोक के प्रकार की पुष्टि करता है। इसके बाद उसे दवाओं का इन्जेक्शन दिया जाता है जो मस्तिष्क में जमे उस थक्के को घोल देती हैं, जिसके कारण मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति रुक गई हो। कई बार हीमेटोमा बन जाता है, जिसके कारण मस्तिष्क में दबाव बढ़ जाता है और स्ट्रोक बहुत बड़ा हो जाता है। ऐसे मामलों में हमें शल्यक्रिया (क्रेनिओटोमी) करनी पड़ती है और मरीज़ के जीवन को बचाने के लिए मस्तिष्क के मृत हो चुके हिस्से का उपचार करना होता है। स्ट्रोक के मरीज़ को हमेशा ऐसे केन्द्र में लेकर जाना चाहिए जहाँ न्यूरो मरीज़ों के इलाज के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध हों।