क्या दीवाली और पटाखों का कोई जन्मजात संबंध है ?

जो लोग दीवाली का अर्थ सिर्फ पटाखे छुड़ाना समझते हैं, उन्हें इस साल निराशा होगी, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखेबाजी के खिलाफ अपना फैसला दिया है। दिल्ली की पुलिस ने मनों पटाखे जब्त किए हैं। इसके बावजूद लोग पटाखे छुड़ाने से बाज नहीं आएंगे। मैंने अब से 60-65 साल पहले ही दीवाली पर पटाखे छुड़ाना बंद कर दिया था लेकिन कई लोग दीवाली का दिन मेरे यहां ढेरों पटाखे भेज दिया करते थे और छुड़ानेवाले भी आ जाते थे लेकिन इस साल कमाल हुआ है। दर्जनों मित्र और रिश्तेदार तरह-तरह के कीमती उपहार लाए लेकिन एक भी पटाखा नहीं है। मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि इस साल मैंने संकल्प किया था कि ‘‘न तो छोड़ूंगा, न छोड़ने दूंगा।’’ यहां असली सवाल यह है कि हम पटाखे छुड़ाते ही क्यों हैं ? क्या दीवाली और पटाखों का कोई जन्मजात संबंध है ? नहीं, ऐसा नहीं है। अमेरिकी और चीनी लोगों के यहां दीवाली कोई नहीं मनाता (प्रवासी भारतीयों के सिवाय) लेकिन वहां गजब की पटाखेबाजी होती है। अब से लगभग 40 साल पहले 4 जुलाई के दिन मेरा अमेरिका के सिएटल में रहना हुआ। वह अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस होता है। सिएटल की झील के चारों तरफ और आसमान में रात के वक्त ऐसी पटाखेबाजी हुई कि मुझे लगा कि वह रात नहीं, दिन है। कहने का मतलब यह कि पटाखेबाजी मनुष्य स्वभाव की एक कमजोरी है, जिसे आप सारी दुनिया में देख सकते हैं। शोर मचाकर और अंधेरे में उजाला दिखाकर आप दुनिया को बताना चाहते हैं कि आप कितने खुश हैं। शोर ऐसा कि कान फट जाएं और उजाला ऐसा कि आंखें चौंधिया जाएं। इन दोनों से भी ज्यादा खतरनाक प्रदूषण है, जो प्राणलेवा है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने खतरनाक रसायनों से बननेवाले पटाखें पर रोक लगाई है। दूसरे शब्दों में पटाखेबाजी और दीवाली में कोई अनन्य या अन्योन्याश्रित संबंध नहीं है। क्या श्रीराम के बनवास से लौटने पर अयोध्या में पटाखे छोड़े गए थे ? दीवाली तो लक्ष्मीजी के स्वागत का त्यौहार है। इस पवित्र-वेला में हम पटाखों का प्रदूषण क्यों फैलाएं ? अपने कानों और फेफड़ों को तकलीफ में क्यों फंसाएं ? कार्तिक मास की अमावस के घनघोर अंधेरे में उजाले के लिए दीप जलाएं, बल्बों की माला सजाएं, सर्वत्र रोशनी फैलाएं लेकिन पटाखों का दमघोंटू धुआं क्यों फैलाएं ? दिवाली का दिन महावीर स्वामी और महर्षि दयानंद का स्वर्गारोहण दिवस है। उसकी गरिमा की रक्षा हम भारतीय नहीं करेंगे तो कौन करेगा ?

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