उत्तराखंड में नदियों के उद्धार का जरिया बनेंगे बायो टॉयलेट

रानीखेत, अल्मोड़ा : प्रदूषण से कराह रही महानदी गंगा व अन्य हिमालयी नदियों के उद्धार में जापानी तकनीक से निर्मित बायो टॉयलेट मददगार साबित होंगे। जापान में फूजी की पहाड़ी व वियतनाम में सफल प्रयोग के बाद जापानी बायो टॉयलेट का फार्मूला अब उत्तराखंड में भी आजमाया जाएगा। फिलहाल, शुरुआत कुमाऊं की पर्यटक नगरी रानीखेत से की जाएगी। खास बात यह भी कि इस तकनीक से मानव अपशिष्ट से जैविक खाद भी तैयार की जाएगी।

पर्यावरण व पानी बचाने की मुहिम में जुटी जापानी कंपनी सिवादेंको ने अपने देश में नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में इसी तकनीक से प्रभावी पहल की है। इस टॉयलेट का प्रयोग करने वाले शहर सीवरेज मुक्त हो जाएंगे। घंटा भर में मानव अपशिष्ट को जैविक खाद में बदलने वाले इस टॉयलेट के 70 प्रतिशत पार्टस भारत में बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को दिया गया है ताकि लागत मूल्य कम होने से सामान्य व्यक्ति भी खरीद सकेगा।

फिलहाल, बायो टॉयलेट की कीमत 30 हजार से 14 लाख रुपये तक है। मूल रूप से रानीखेत के नैनी निवासी एक जापानी कंपनी के प्रतिनिधि कमल सिंह अधिकारी ने बताया, मॉडल के रूप में तीन जैविक टॉयलेट यहां लगाएंगे। इसके लिए जमीन तलाश ली गई है।

बायो टॉयलेट के फायदे 

सीवरेज की जरूरत नहीं होगी। पिट गड्ढे नहीं बनेंगे तो पानी व भूमि भी प्रदूषित नहीं होगी। पानी की बचत भी होगी। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने सरीखी परियोजनाओं में भारी भरकम बजट से भी मुक्ति मिलेगी। अबुधाबी, दुबई, फिलीपींस आदि में मानव अपशिष्ट से तैयार जैविक खाद जापान से खरीदी जा रही है। इसकी कीमत 175 से 1400 रुपये प्रति किलो तक है।

ऐसे बनेगी जैविक खाद 

बायो टॉयलेट में लकड़ी का बुरादा व धान की भूसी पड़ी होती है। हीटर 50 डिग्री तक तापमान में बुरादे को जलाएगा जो मानव अपशिष्ट को भी जलाकर राख करेगा और खास उपकरण रोटरी की मदद से उसे जैविक खाद में बदलेगा। हीटर की गर्मी अपशिष्ट में मौजूद बैक्टीरिया व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को खत्म कर देती है। ऐसे में जो उर्वरक तैयार होता है वह साफ सुथरा व कीटाणु मुक्त होता है।

सौ किलो खाद की लागत सौ रुपये 

यह बायो टॉयलेट आय का जरिया भी है। खाद तैयार करने के लिए लकड़ी का बुरादा और चावल की भूसी (360 रुपया प्रति कुंतल) का इस्तेमाल होता है। सौ किलो जैविक खाद बनाने में बमुश्किल सौ रुपये की ही लागत आती है, जबकि तैयार उर्वरक तीन से चार हजार रुपये में बिक सकता है।

पानी की भी होगी बचत 

जापानी कंपनी सिवादेंको के प्रतिनिधि कमल सिंह अधिकारी के मुताबिक  जैव शौचालय पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें पानी की भी बचत है। जापान की पूरी माउंट फूजी पहाड़ी प्रदूषणमुक्त हो चुकी है। वियतनाम जैसा छोटा देश रेल, छोटे पानी के जहाज व पर्यटक स्थलों में इन्हें लगा चुका है। स्टार्ट अप इंडिया प्रोजेक्ट के अधिकारियों से उत्तराखंड में जैविक टॉयलेट लगाने की बात की गई है।

औपचारिक प्रस्ताव का इंतजार

अल्मोड़ा के जिलाधिकारी सविन बंसल के अनुसार निश्चित तौर पर यह पहल अच्छी है। हमें इस बारे में औपचारिक प्रस्ताव का इंतजार है। बायो टॉयलेट नदियों, स्रोतों को प्रदूषण मुक्त करने में मददगार साबित होंगे।

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