दिल्ली में अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार कौन, सियासत के फेर में उलझा मसला

नई दिल्ली । लोकसभा में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (विशेष प्रावधान) कानून (संशोधन) बिल 2017 पास हो गया है। इसके साथ ही 1 जून 2014 तक के अवैध निर्माण को 31 दिसंबर 2020 तक तोड़फोड़ से राहत मिल गई है, लेकिन अनधिकृत कॉलोनी शहरीकृत गांव की सघन आबादी क्षेत्र में एक जून 2014 के बाद हुए निर्माण पर सीलिंग और हथौड़ा चलने की तलवार लटक गई है।

अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार कौन

पूर्व केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री अजय माकन ने लोकसभा में पेश बिल में निर्माण की तारीख एक जून 2014 से बढ़ाकर एक जून 2017 तक करने की मांग की थी, लेकिन उसे शामिल नहीं किया गया। अवैध निर्माणों को सील करने व तोड़फोड़ की कार्रवाई का खौफ दिल्ली वालों में हमेशा बना रहता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर दिल्ली में धड़ल्ले से हो रहे अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार कौन है?

वोट की राजनीति

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गत कुछ दिनों से दिल्ली के रिहायशी इलाकों में चल रहे अवैध व्यापारिक प्रतिष्ठानों को सील करने का कार्य चल रहा है। दुकानदार रोजगार खोने के डर से विरोध पर उतारू हैं और हमेशा की तरह इस पर राजनीति शुरू हो चुकी है। जब तक तोड़फोड़ व सीलिंग शुरू नहीं होती तब तक तो नगर निगम व सरकार में शीर्ष पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि आंख मूंदे रहते हैं लेकिन जब हाहाकार मच जाता है तो सड़क पर जनता का पक्ष लेकर वोट की राजनीति करने लगते हैं।

नक्शा पास करने के नाम पर खानापूर्ति

रिहायशी और व्यावसायिक इलाकों में किसी भी तरह के निर्माण के नक्शा को पास करने का अधिकार नगर निगम के पास है। लेकिन, नक्शा पास करने के नाम पर बस खानापूर्ति की जाती है। पॉश इलाके से लेकर अनधिकृत कॉलोनियो में गत एक दशक के दौरान जितने निर्माण हुए हैं, उनमें अधिकांश अवैध है। अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक सब जानते हुए भी मौन रहते हैं।

बड़े पैमाने पर हुए अवैध निर्माण

दिल्ली में बेतहाशा अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई न होने से कानून का डर समाप्त हो गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में निर्मित करीब 44 लाख आवासीय व व्यावसायिक इकाइयों में से केवल दो लाख के ही नक्शे पास हैं। इतने बड़े पैमाने पर हुए अवैध निर्माण हो गए और किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई।

तीन सदस्यीय निगरानी समिति पुनर्नियुक्त

सुप्रीम कोर्ट ने सीलिंग की कार्रवाई की देखरेख के लिए 15 दिसंबर को चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजी राव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय निगरानी समिति पुनर्नियुक्त की। वर्तमान में अगर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली के नगर निगमों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उचित पक्ष रखा होता और आवश्यक कार्रवाई की होती तो वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समाप्त की गई निगरानी समिति को पुनर्जीवित करने की नौबत नहीं आती।

सुप्रीम कोर्ट में ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा

12 जनवरी 2018 को इस मामले की अगली सुनवाई होगी, यदि दिल्ली वालों को सीलिंग से राहत देनी है तो केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय व तीनों नगर निगमों को सुप्रीम कोर्ट में ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा। दिल्ली हाई कोर्ट में डेढ़ से दो लाख अवैध निर्माण होने का हलफनामा दिल्ली के तीनों निगम पहले ही दे चुके हैं और उनके विरुद्ध कानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर दिखा कार्रवाई न किए जाने के प्रति अदालत अपनी नाराजगी प्रकट कर चुका है।

जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई

हालांकि अप्रैल 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सीबीआइ जांच कर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे परंतु समय के साथ जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई। हालांकि भाजपा शासित निगम पदाधिकारियों ने समय-समय पर कनवर्जन शुल्क जमा न कराने वाली इकाइयों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी के बयान तो दिए पर कार्रवाई के प्रति संजीदगी नहीं दिखाई।

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