सर्दी खासी हो तो आजमाये अरदक को
मसाले के रूप में अदरक का प्रयोग लगभग पूरे संसार में किया जाता है। जिंजिबेरासी परिवार से संबंध रखने वाले अदरक का वनस्पतिक नाम जिंजिबेर ओफ्फिचिनाले रोस्को है। यह एक प्रकार का कंद देने वाला पौधा है जिसकी खेती कंकरीली दोमट मिट्टी में अच्छी होती है जहां पानी का ठहराव नहीं होता। अदरक को सुखाकर सोंठ बनाई जाती है इसका भी मसाले तथा औषधि के रूप में व्यापक प्रयोग होता है।
आयुर्वेद में अदरक को रूचिकारक, पाचक, स्निग्ध, उष्ण वीर्य, कफ तथा वातनाशक, कटु रस युक्त विपाक में मधुर, मलबंध दूर करने वाली, गले के लिए लाभकारी, श्वास, शूल, वमन, खांसी, हृदय रोग, बवासीर, तीक्ष्ण अफारा पेट की वायु, अग्निदीपक, रूक्ष तथा कफ को नष्ट करने वाली बताया गया है।
जुकाम में चाय में अदरक के साथ तुलसी के पत्ते तथा एक चुटकी नमक डालकर गुनगुनी अवस्था में पीने से लाभ मिलता है। गले में खराश होने या खांसी होने पर ताजा अदरक के टुकड़े को नमक लगाकर चूसने से आराम मिलता है। बुखार, फ्लू आदि में अदरक तथा सौंफ के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से शीघ्र पसीना आकर बुखार उतर जाता है। ऐसे में अदरक की चाय भी फायदेमंद होती है। गला पकने या इन्फ्लुएंजा होने पर पानी में अदरक का रस तथा नमक मिलाकर गरारे करने से शीघ्र लाभ मिलता है।
पेट संबंधी समस्याओं के निदान में भी अदरक बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। अफारे और अजीर्ण में सोंठ का चूर्ण, अजवायन, इलायची का चूर्ण लेकर मिलाकर पीस कर रख लें। दिन में प्रत्येक भोजन के बाद इसका सेवन करें। बच्चों के पेट में दर्द की शिकायत होने पर अदरक का रस दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए इससे गैस तथा अफारे की समस्या दूर हो जाती है। सोंठ और गुड़ की बनी गोलियों के नियमित सेवन से, आंव आने की समस्या का समाधान हो जाता है। आमाजीर्ण में भी सोंठ और गुड मिलाकर सेवन करना चाहिए इससे पाचक अग्नि ठीक हो जाती है। गजपिप्पली और सोंठ के चूर्ण का दूध के साथ सेवन पेट के विकारों के लिए एक आदर्श औषधि है।