दस चट्टियों से पूर्ण होती है यमुनोत्री यात्रा, जानिए महत्व..
उत्तरकाशी : चारधाम यात्रा में चट्टियों का बड़ा महत्व रहा है। जब सड़कें नहीं थी, तब ये चट्टियां ही पैदल यात्रियों का ठौर हुआ करती थीं। लेकिन, जैसे-जैसे धामों तक सड़कें पहुंचीं, लोग इन चट्टियों को भूलते चले गए।
बदरीनाथ, केदारनाथ व गंगोत्री जाने वाले यात्रियों को तो शायद ही अब चट्टियों के बारे में जानकारी हो। लेकिन, यमुनोत्री जाने वाले यात्री आज भी तीन चट्टियों पर ठहराव करते हैं।
यमुनोत्री धाम चारधाम यात्रा का पहला धाम माना जाता है। इसलिए अधिकांश यात्री यमुनोत्री धाम होते हुए ही गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के लिए प्रस्थान करते हैं।
यमुनोत्री धाम के लिए जमुना चट्टी से लेकर गरुड़ चट्टी तक दस चट्टियां (पड़ाव) हैं। जब सड़क केवल जमुना चट्टी तक ही थी, तब इन पड़ावों में यात्री रात्रि विश्राम करते थे। लेकिन, वर्तमान में दस में सात चट्टियां सड़क मार्ग से जुड़ चुकी हैं।
धाम का पहला पड़ाव बड़कोट से 17 किलोमीटर दूर जमुना चट्टी है। पहले यहीं तक सड़क मार्ग था। इसके बाद यमुना के किनारे-किनारे यमुनोत्री के लिए रास्ता जाता था। इस स्थान को पालीगाड के नाम से भी जानते हैं।
जमुना चट्टी के बाद स्याना और राना चट्टी आती हैं। राना चट्टी में राणा जाति के लोग रहते हैं। यहां से पांच किलोमीटर दूर हनुमान चट्टी और फिर चार किलोमीटर दूरी पर नारद चट्टी है। इसके बाद फूल चट्टी, कृष्णा चट्टी व जानकी चट्टी हैं। यहां से कैलास चट्टी व गरुड़ चट्टी होते हुए यमुनोत्री तक पैदल मार्ग है।
धाम के तीर्थ पुरोहित पवन उनियाल बताते हैं कि पुराने समय में सभी चट्टियों में यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनी हुई थी। अब इनकी जगह बाजार और होटलों ने ले ली है। हालांकि, सुखद यह है कि आज भी यात्री इन स्थानों पर रुककर चट्टियों के बारे में जानकारी जुटाते हैं।
प्रमुख चट्टियों का महत्व
हनुमान चट्टी: बड़कोट से 35 किलोमीटर दूर स्थित हनुमान चट्टी में हनुमान गंगा और यमुना का संगम होता है। यात्री यहां हनुमान गंगा में स्नान कर हनुमान शिला के दर्शन करते हैं। मान्यता है कि यहां हनुमानजी की प्यास बुझाने को श्रीराम ने एक जलधारा प्रकट की थी। इसलिए हनुमान नदी को लोग हनुमान धारा भी कहते हैं।
नारद चट्टी: हनुमान चट्टी से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान में देव ऋषि नारद ने तपस्या की थी। यहां गर्म पानी के कुंड और राधा-कृष्ण का मंदिर है। इसके अलावा नारद कुंड भी यहां है। नारद चट्टी के पास एक जलधारा यमुना में मिलती है, जिसे नारद गंगा कहा जाता है।
फूल चट्टी: नारद चट्टी से तीन किलोमीटर की दूरी पर फूल चट्टी पड़ती है। यहां हर मौसम में फूल खिले नजर आते हैं। यह दृश्य यात्रियों को आनंदित कर देता है। फूल चट्टी के निकट कुछ घाटियां भी हैं, जिनमें हिमालयी क्षेत्र के कई तरह के फूल मिलते हैं।
कृष्णा चट्टी: यमुना को भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी भी कहा गया है। इसलिए फूल चट्टी से चार किलोमीटर दूर यमुना के किनारे कृष्णा चट्टी पड़ती है। इसे कृष्णा पुरी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां पर यमुनाजी की पूजा करने से वही फल मिलता है, जो वृंदावन में पूजा का।
जानकी चट्टी: सड़क मार्ग का अंतिम पड़ाव जानकी चट्टी है। इसका जानकी नाम की किसी महिला यात्री के नाम से पड़ा। स्थानीय लोग कहते हैं कि जब सुविधाएं नहीं थी, तब जानकी नाम की महिला ने यहां धर्मशाला का निर्माण करवाया था। धर्मशाला के पास एक गर्म पानी का कुंड भी है, जिसे जानकी कुंड के नाम से जाना जाता है।
गरुड़ चट्टी: यह चट्टी यमुनोत्री धाम के निकट पड़ती है। यहां गरुड़ गंगा नाम से एक धारा यमुना में मिल रही है। गरुड़ को भगवान बदरी विशाल का वाहन माना गया है। मान्यता है कि भगवान बदरी विशाल गरुड़ पर सवार होकर इस धारा के रूप में यमुनोत्री पहुंचते हैं।