डिंपल यादव और प्रियंका गांधी यूपी में साबित हो सकती हैं स्टार प्रचारक
लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
इसे भी पढ़ें- यूपी चुनाव में भाजपा का इलेक्शन वॉर रूम बन सकता है गेम चेंजर
राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
Source: hindi.oneindia.com
लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
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राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
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राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
इसे भी पढ़ें- यूपी चुनाव में भाजपा का इलेक्शन वॉर रूम बन सकता है गेम चेंजर
राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
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राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
इसे भी पढ़ें- यूपी चुनाव में भाजपा का इलेक्शन वॉर रूम बन सकता है गेम चेंजर
राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
इसे भी पढ़ें- यूपी चुनाव में भाजपा का इलेक्शन वॉर रूम बन सकता है गेम चेंजर
राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
इसे भी पढ़ें- यूपी चुनाव में भाजपा का इलेक्शन वॉर रूम बन सकता है गेम चेंजर
राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
Source: hindi.oneindia.com
लखनऊ। यूपी चुनाव से पहले जहां एक तरफ यह संकेत मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं, सूत्रों की मानें तो दोनों ही पार्टियों की ओर से आज एक बैठक बुलाई गई है जिसमे सीटों के बंटवारे को लेकर बात होगी। सीटों के बंटवारे के साथ माना जा रहा है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों की ओर से डिंपल यादव और प्रियंका गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं। पार्टी में लंबे समय से इस बात की मांग की जा रही थी कि प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी के अलावा भी दूसरी जगहों से प्रचार के लिए मैदान में उतारा जाए। हालांकि सपा में डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में लाने की मांग थोड़ी देर बाद शुरु हुई लेकिन धीरे-धीरे रही सही लोग डिंपल यादव को कन्नौज से बाहर चुनाव प्रचार में आने के लिए मांग कर रहे हैं।
शुरुआती दौर में डिंपल के सामने थी बड़ी चुनौती
दोनों ही पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेता शीतकालीन सत्र में पहले ही मिल चुके हैं। हालांकि इस बात की कई वरिष्ठ नेताओं ने पुष्टि नहीं की है लेकिन यह इस बात को लेकर सहमत हैं कि आने वाले समय में दोनों ही नेताओं के बीच साझा बैठक हो सकती है। वर्ष 2009 तक डिंपल यादव को बतौर प्रचारक गंभीरता से नहीं लिया जाता था, उस वक्त वह फिरोजाबाद से उपचुनाव भी राज बब्बर के खिलाफ हार गई थीं। लेकिन जब 2012 में उन्हें जीत मिली तो उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ जीत हासिल करके अपनी कूबत को साबित किया। ऐसे में ना सिर्फ पार्टी के सदस्य बल्कि पार्टी के नेता भी उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में देखना चाहते हैं।
पार्टी के नेता हैं डिंपल के पक्ष में
आजमगढ़ के मेहनगर से सपा विधायक बृजलाल सोनकर का कहना है कि हम दोनों ही नेताओं को बतौर प्रचारक एक साथ देखने को लेकर उत्सुक हैं। एक तरफ जहां डिंपल यादव ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी परंपराओं को मानने वाले के तौर पर भी देखा जाता है। सोनकर का कहना है कि मेरी उम्र 65 वर्ष है और मैं अपनी बेटी और पोती-पोते को चुनाव प्रचार की इजाजत दुंगा अगर वह इसके लिए सक्षम हैं। डिंपल के अंदर मतदाताओं को आकर्षित करने की क्षमता है। मुमकिन है कि हमारी दादी और मां ने इस बारे में कभी सोचा भी ना हो, लेकिन अब समय बदल चुका है।
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राजनीतिक मंच पर बढ़ी साझेदारी
डिंपल यादव के करीबियों की कहना है कि उनकी भूमिका धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकदम से बदल गई है। 2014 में वह उस वक्त लोगों की नजर में आई जब उन्होंने संसद में महिला सशक्तिकरण पर अपना भाषण दिया था। यही नहीं सरकार के भीतर कई कार्यक्रमों में भी वह रुचि दिखाने लगी थी, पार्टी की ओर से महिलाओं, बच्चों, स्वास्थ्य के लिए होने वाले कामों में भी वह सक्रिय रहने लगी थी। गर्भवती महिलाओं के लिए शुरु की गई हौसला योजना, भुखमरी, सैनिटरी से जुड़ी दिशा योजना में भी डिंपल ने अहम भूमिका निभाई थी। इन योजनाओं की शुरुआत के समय वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी मौजूद थीं।
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