युवाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, । पूरे विश्व में ‘विश्व सामाजिक न्याय दिवस’ या सामाजिक न्याय समानता हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना तथा गरीबी, लैंगिक समानता, बेरोजगारी, मानव अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और सतत विकास जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा कर समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करना।परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जब हम न्याय तथा ंसामाजिक न्याय की बात करते हैं तो वह केवल मानव या प्राणियों तक सीमित नहीं है बल्कि उसमें सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड समाहित है इसलिये न्याय की अवधारणा भी सार्वभौमिक होनी चाहिये। सबके हित के लिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अतंदृष्टि और सुषुप्त चेतना को जाग्रत करना होगा। उन्होंने कहा कि दया, करूणा और प्रेम जीवन के वह पिलर है जिसके माध्यम से न्याय की स्थापना की जा सकती है। धरती पर रहने वाले हर प्राणी को स्वतंत्रता और भय से मुक्त वातावरण चाहिए साथ ही ऐसा वातावरण दूसरों के लिये भी निर्मित करने की जरूरत है क्योंकि हमारा पूरा समाज समावेशी, अन्योन्याश्रित और सार्वभौमिक हितों के लिये जुड़ा हुआ है। 21 वीं सदी में समाज का कोई भी व्यक्ति अपने न्याय के अधिकार से वंचित न रहे। न्याय से वंचित होना अर्थात अन्याय का सामना करना, ऐसे में लोगों को गरीबी, सामाजिक असुरक्षा और असमानता का सामना करना पड़ता है। मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि ‘जहां भी अन्याय होता है वहां हमेशा न्याय को खतरा होता है’ इसलिये यह जरूरी है कि विकास हो परन्तु किसी के अधिकारों का हनन न हो। न्याय के अभाव में मानवता को अनावश्यक समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसलिए जीवन में मानवीय मूल्यों को बनायें रखना जरूरी है। स्वामी ने कहा कि भारतीय समाज को विशेष कर युवाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का पालन करने की भी आवश्यकता है और इसके लिये प्रत्येक व्यक्ति की सुषुप्त चेतना को जाग्रत करना नितांत आवश्यक है। सुषुप्त चेतना के जाग्रत होने से न केवल अपने अधिकारों की जानकारी होगी बल्कि कर्तव्य पालन का भी अहसास होता है जिसके माध्यम से समाज में व्याप्त हिंसा, शोषण और अन्याय को भी कम किया जा सकता है इसलिये आईये न्यायपूर्ण व्यवहार के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें।