जख्म :केदारनाथ आपदा:आठ साल बाद भी अपनों को तलाश रहे हम

देहरादून  । उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में आज से ठीक आठ साल पहले का वो दिन याद कर सभी के होश उड़ जाते हैं। दर्शन को केदारनाथ जा रहे देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने आपदा का वो मंजर देखा था, जो आज भी उनके रौंगेटे खड़ा कर देता है। ग्लेशियर टूटने से ऊफनाई मंदाकिनी नदी ने हर जगह तबाही और तबाही ही मचाई थी। केदारनाथ आपदा में कई श्रद्धालुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, तो चार हजार से अधिक तीर्थ यात्रियों का कुछ भी नहीं पता चला। सूत्रों की मानें तो आपदा के आठ साल गुजर जाने के बाद भी केदारघाटी में अब भी कई शव दफन हैं। केदारनाथ आपदा के दौरान लापता हुए लोगों के मृत शरीर, नर कंकाल खोजने के लिए सोनप्रयाग से पुलिस और एसडीआरएफ की 10 टीमें भी पिछले साल भी खोजबीन के लिए निकली थीं। आपदा से हुए नुकसान को भरपाई के लिए सरकार ने केदारघाटी के पुनर्निर्माण के लिए मास्ट प्लान बनाया है, जिसपर तेज गति से काम हो रहा है। वर्ष 2013 की प्राकृतिक आपदा में तहसनहस हुआ भगवान शिव का धाम केदारनाथ नए रंग-रूप में उभर रहा है।  पिछले आठ सालों के अंदर ही केदारपुरी में सुरक्षा-सौंदर्य से जुड़े निर्माण कार्यों की वजह से केदारपुरी की भव्यता बढ़ी है। कोरोना के हालात सामान्य होने के बाद जब यात्रा दोबारा शुरू होगी, तब शिव के भक्तों को अपने आराध्य का धाम और भी वैभवशाली रूप में नजर आएगा। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत रुचि से केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण को लाभ मिला है। ठीक सात साल पहले वर्ष 2013 में 16-17 जून की रात बारिश और बाढ़ ने केदारनाथ की तस्वीर बिगाड़ दी थी। सात साल के प्रयासों की वजह से तस्वीर में दोबारा से केदारधाम की भव्यता के नए रंग निखरने लगे हैं।  केदारघाटी में आपदा से टूटे पुलों के निर्माण में एमपी लेड से करीब 25 से 30 करोड़ खर्च किए गए है। इसमें माई की मंडी, सिल्ली, विजयनगर, चन्द्रापुरी, कालीमठ, रैलगांव प्रमुख पुल है। अन्य कई छोटे पुलों का निर्माण और मरम्मत का काम हुआ है।

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