पाक चुनाव में महिला उम्मीदवारों की हुंकार

पाकिस्तान के चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या ने चुनावी माहौल को पूरी तरह से रोचक बना दिया है। पाकिस्तानी आम चुनाव के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब महिला उम्मीदवार बड़ी संख्या में भाग ले रही हैं। दस दिन बाद यानी पच्चीस जुलाई को पाकिस्तान के सभी प्रांतीय और 272 संसदीय सीटों पर एक साथ मतदान होना है। महिला उम्मीदवारों की बढ़ी भागीदारी का एक कारण यह भी है कि इस बार बड़े नेता चुनाव से बाहर हैं। भ्रष्टाचार में संलिप्तता के चलते पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) प्रमुख नवाज शरीफ के चुनाव लड़ने पर रोक लग गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रह चुके परवेज मुशर्रफ जैसे नेता भी इस बार के आम चुनाव से नदारद हैं। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, चुनावी बुखार बढ़ता जा रहा है। पूरा पाकिस्तान चुनावी रंग में रंगा हुआ है। हर चुनावी रैली में महिलाएं प्रचार कर रही हैं। पुरुषों के मुकाबले उनकी रैलियों में भीड़ भी ज्यादा जुट रही है। ऐसा लगता है कि भुट्टों के बाद पाक सियासत में महिलाओं ने शून्यता को अब भरने का मन बना लिया हो।
ऐसा भी नहीं रहा है कि पाकिस्तानी सियासत में महिलाओं का दखल न रहा हो। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की कभी तूती बोलती थी। कभी मुल्क की राजनीति उनकी मुट्ठी में होती थी लेकिन सन् 2007 में बेनजीर भुट्टो की रावलपिंडी में एक चुनावी सभा में हत्या हो जाने के बाद वहां की राजनीति में महिला सियासत में खालीपन आ गया था लेकिन वह भरपाई आज की महिलाएं कर रही हैं। भारत के नक्शेकदम पाकिस्तान में भी पिछले कुछ सालों से वहां की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। दो साल पहले मुल्क में हुए निकाय चुनाव में भी काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। निकाय चुनाव की जीत ने पाकिस्तानी महिलाओं में जोश भर दिया है। यही वजह है कि इस बार के आम चुनाव में पहली बार बड़ी संख्या में महिला प्रत्याशी मैदान हैं। पाकिस्तानी नेशनल असेंबली की 272 सामान्य सीटों पर 171 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं।
एक समय था जब पाकिस्तानी सियासत में महिलाओं का दखल अछूत माना जाता था लेकिन आतंक पोषित देश में इस बार के चुनाव में जिस तरह से महिलाओं ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया है वो वाकई में काबिले तारीफ से कम नहीं है। ये उन इस्लामिक देशों के लिए बेहतरीन उदाहरण साबित हो सकता है, जहां महिलाएं आज भी वहां की राजनीति से खुद को दूर रखती हैं। पाक के संसदीय चुनाव में बॉलीवुड कलाकार शाहरूख की चचेरी बहन नूरजहां भी इसलिए चुनावी अखाड़े में हैं। सूत्र बतातें हैं उनके चुनाव प्रचार में शाहरूख खान भी पहुंचने वाले हैं। नूर खैबर पख्तूनख्वा की असेंबली सीट पीके-77 से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनके अलावा एक महिला उम्मीदवार ऐसी सीट से चुनाव लड़ रही हैं जहां कभी महिलाओं को मतदान करने की भी इजाजत नहीं थी। उस महिला उम्मीदवार का नाम हमीदा रशीद है। वह पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी से चुनाव लड़ रही हैं।
किसी एक पार्टी से नहीं बल्कि इस बार चुनाव लड़ रही सभी पार्टियों ने महिलाओं को टिकट दिया है। इसे बदलाव की बयार ही कहेंगे कि सिंध सीट से हिंदू महिला उम्मीदवार भी चुनाव में ताल ठोक रही हैं। मौजूदा 2018 के आम चुनाव में इस बार 105 महिला उम्मीदवार विभिन्न दलों से उम्मीदवार बनाई गई हैं, जबकि सत्तर महिला प्रत्याशी बतौर निर्दलीय चुनावी अखाड़े में हैं। सबसे अव्वल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी है जिसने सबसे ज्यादा उन्नीस महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतारा है। इनमें ग्यारह पंजाब से, पांच सिंध से और खैबर पख्तूनख्वा से तीन महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। पाकिस्तान का लोकतंत्र मुल्क गठन के बाद से ही संगीनों के साये में कैद रहा है। पर, अब हालात बदलते दिखाई देने लगे हैं। पाकिस्तान के सियासतमंद महिला सशक्तिकरण से वाकिफ हो चुके हैं। उनको भी लगने लगा है कि बिना महिलाओं के अब उनकी नैया पार नहीं होने वाली।
पाकिस्तान के मौजूदा संसदीय चुनाव में अपनी भागीदारी के जरिए वहां की महिलाएं बंदिशों की बेड़ियां तोड़ने का काम कर रही हैं। चुनाव लड़ रहीं 171 महिला उम्मीदवारों में अगर पचास प्रतिशत भी जीत दर्ज कर लेती हैं तो पाकिस्तान में अलग फिजा बहेगी। पाकिस्तान के पुरूष राजनेताओं की मूल समस्या भारत को लेकर रही है। उन्होंने हमेशा दोनों मुल्कों की अवाम के भीतर नफरत और जहर भरने का काम किया है। पाकिस्तान में महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है, तब सिर्फ राजनीतिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है पर सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती। ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान में महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है। उन्हें सिर्फ पुरुषों से ही नहीं बल्कि जातीय संरचना में भी सबसे पीछे रखा गया है। इन परिस्थितियों में उन्हें राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त करने की बात अबतक बेमानी रही। यह बात दीगर है कि भले ही पाकिस्तानी महिलाओं को कई कानूनी अधिकार मिल चुके हों, लेकिन जबतक वह राजनीतिक रूप से सशक्त नहीं होंगी, उनका कल्याण नहीं होने वाला।

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