यूं ही नहीं हुआ आजमगढ़ से मुलायम सिंह का मोहभंग
लखनऊ । पारिवारिक कलह के बाद समाजवादी पार्टी को टूटने से बचाने में अहम भूमिका निभाने वाले बुजुर्ग समाजवादी मुलायम सिंह यादव ने अब आजमगढ़ की जगह मैनपुरी से चुनाव लड़ने का फैसला किया है तो इसके निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं। हमेशा सियासी नजरिए से ही निर्णय करने वाले मुलायम का आजमगढ़ से मोहभंग यूं ही नहीं हुआ है। कई वजहें हैं जिन्होंने उन्हें ‘घर वापसी’ के लिए बाध्य किया और जो आगे चलकर समाजवादी राजनीति का अहम मोड़ साबित हो सकती हैं।
2014 में भाजपा की आंधी में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने आभामंडल में सपा के लिए दो सीटें मैनपुरी और आजमगढ़ खुद लड़कर जीतने में सफल रहे थे। आजमगढ़ में उन्होंने 58 फीसद मतदान में 35 फीसद मत हासिल कर भाजपा के बाहुबली रमाकांत यादव को हराया था। इसीलिए बाद में उन्होंने मैनपुरी की सीट छोड़ आजमगढ़ को अपनाने का फैसला किया।
यह निर्णय भी सियासी ही था और उनकी मंशा पूर्वांचल में पार्टी का दायरा बढ़ाने की थी। राजनीतिक समीकरणों के नजरिए से भी यह जिला मुफीद था। सपा के वरिष्ठ नेता राम अवध यादव बताते हैं कि समाजवादी राजनीति को यह जिला इसलिए भी भाता है क्योंकि यहां यादवों के लगभग 30 फीसद मत हैं, मुस्लिमों की भी बड़ी संख्या है। बाद में परिवार के कलह में उनकी यह मंशा पूरी न हो सकी और 2017 के चुनाव के पहले तक उनके करीबियों ने भी एक-एक कर उन्हें छोड़ना शुरू कर दिया।
यहां तक कि उनके खास पूर्व मंत्री दुर्गा यादव और बलराम यादव ने भी उनसे दूरी बनाते हुए अखिलेश से नजदीकी बढ़ाई तो मुलायम के लिए यह बड़े झटके से कम न था। इसके बाद से ही आजमगढ़ से मुलायम का लगाव कम होना शुरू हुआ। यहां तक कि वह 2017 के चुनाव में प्रचार के लिए भी आजमगढ़ नहीं गए। यह अलग बात है कि मजबूत वोट बैंक का आधार होने की वजह से भाजपा की प्रचंड आंधी में भी सपा यहां की दस सीटों में पांच सीटें जीतने में सफल रही थी।
पिछले विधानसभा चुनाव में सपा की करारी हार के बाद मुलायम जब डैमेज कंट्रोल में जुटे तो उनकी पहली प्राथमिकता अपने जड़ों को बचाने की रही। इसके लिए उन्होंने भाई शिवपाल सिंह की नाराजगी को दरकिनार करते हुए जहां अखिलेश की राह प्रशस्त करने में अहम भूमिका निभाई, वहीं अब उनका इरादा सपा का गढ़ माने जानेवाले इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फरुखाबाद आदि क्षेत्रों में पार्टी के वोटों को संगठित करने का है।
इसी वजह से उन्होंने अपने पुराने ठौर पर वापसी का फैसला किया है, जहां से अभी उनके भतीजे तेज प्रताप सिंह लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं।