उत्तराखण्ड में खत्म नहीं हो रहा नए जिलों का इंतजार

देहरादून । नए जिलों का गठन सत्ता में आने वाली हर पार्टी की प्राथमिकता में शामिल रहा। राज्य गठन के बाद से आज तक एक अंतरिम समेत पांच सरकारें आ चुकी हैं। बावजूद इसके जिलों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ। नए जिले बनाने की घोषणा वर्ष 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी। उन्होंने कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट को नया जिला बनाने के लिए बाकायदा शासनादेश जारी करा दिया था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता से बेदखली के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। कांग्रेस सरकार ने इसके लिए एक नई समिति बनाई, जिसने पूर्व में निर्धारित मानकों को शिथिल करने का निर्णय लिया। जिलों का चयन भी हुआ, लेकिन आज तक इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया। अब सवा साल बाद चुनाव होने हैं, तो राजनीतिक पार्टियां इसे एक बार फिर मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
महिला उत्पीडन को रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। यह बात अलग है कि पीडि़त को आर्थिक सहायता देकर मरहम लगाने की व्यवस्था की गई है। ऐसा ही कुछ तेजाब की बिक्री का भी मामला है। महिलाओं की जिंदगी खराब करने वाले तेजाब की बिक्री को नियंत्रित करने की व्यवस्था सरकार ने की है, लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो रहा है। आज भी नुक्कड़ की दुकान पर यह जानलेवा पदार्थ मात्र 20 रुपये में उपलब्ध है। यह स्थिति तब है, जब पुलिस और महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग कई बार इसे नियंत्रित करने के आदेश दे चुके हैं। नियमानुसार दुकानदारों को इसे खरीदने वाले का नाम, पता, मोबाइल नंबर एक रजिस्टर में दर्ज करना होता है। खरीदने वाला दुकानदार को जानकारी देगा कि इसका इस्तेमाल किस रूप में किया जाएगा। शुरुआत में तो मानकों का सख्ती से पालन हुआ, लेकिन धीरे-धीरे व्यवस्था पूरी तरह दम तोड़ गई।

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