योगी की कड़ी कार्रवाईः यूपी में भ्रष्टाचार के दोषी वरिष्ठ पीसीएस अफसर बर्खास्त
लखनऊ । नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए योगी सरकार ने सोमवार को बड़ा फैसला किया। भ्रष्टाचार की जांच में दोषी पाये जाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक वरिष्ठ पीसीएस अफसर को बर्खास्त जबकि दूसरे को निलंबित कर दिया। किसी पीसीएस अधिकारी को बर्खास्त करने की यह अपनी तरह की पहली कार्रवाई मानी जा रही है।
मुख्यमंत्री ने दो अलग-अलग मामलों में कार्रवाई करते हुए अपर आयुक्त मेरठ रणधीर सिंह दुहण को बर्खास्त किया, जबकि नोएडा (गौतमबुद्धनगर) के एडीएम घनश्याम सिंह को निलंबित कर दिया है। 1991 बैच के रणधीर सिंह दुहण फरवरी, 2018 में सेवा निवृत्त होने वाले थे, जबकि 1997 बैच के घनश्याम सिंह जून, 2026 में सेवानिवृत्त होंगे। इन कड़े फैसलों से योगी ने संदेश दिया है कि सरकार भ्रष्टाचारियों को कतई नहीं बख्शेगी। इन अधिकारियों की कारगुजारियों की फाइल काफी समय से चल रही थी लेकिन, अपने रसूख के बल पर ये अब तक खुद को बचाने में कामयाब थे।
दुहण ने शत्रु संपत्ति को किया नीलाम
रणधीर सिंह दुहण 2012-13 में शामली में अपर जिलाधिकारी थे। उन्होंने शत्रु संपत्ति की 27 हेक्टेयर जमीन बिना अधिकार नीलाम कर दी। सहारनपुर के तत्कालीन कमिश्नर तनवीर जफर अली से इसकी जांच कराई गई। कमिश्नर की जांच में दुहण पर लगे सभी आरोप सही पाये गये। अपर मुख्य सचिव नियुक्ति दीपक त्रिवेदी ने बताया कि दरअसल, दुहण शत्रु संपत्ति की जमीनों के निस्तारण के लिए न तो अधिकृत थे और न ही कोई अधिनियम प्रभावी था फिर भी उन्होंने इसका निस्तारण किया। यह आरोप सिद्ध होने की वजह से ही उन्हें निलंबित किया गया है।
कुछ दिन पहले ही पदावनत किये गये थे दुहण
दुहण को जून 2014 में निलंबित किया गया था पर कुछ समय बाद वह बहाल हो गए। आरोप है कि मामले को दबवाने की उन्होंने पुरजोर कोशिश की। योगी सरकार बनने के बाद उनकी फाइलें खुलीं तो फिर वह बच नहीं पाये। बताते हैं कि अभी कुछ समय पहले ही उन पर एक और विभागीय कार्यवाही की गई। उन्हें पीसीएस सेवा के सबसे लोअर (एसडीएम) पद पर पदावनत किया गया। उन्हें यह दंड ग्राम सभा की एक जमीन में हेराफेरी के चलते दिया गया।
एडीएम ने बेटे के नाम जमीन खरीद वसूला दस गुना मुआवजा
गौतमबुद्ध नगर में तैनात एडीएम घनश्याम सिंह पर गंभीर आरोप है। मेरठ-गाजियाबाद एक्सप्रेस-वे के लिए जमीन अधिग्रहण के दौरान उन्होंने अपने बेटे के नाम जमीन खरीदवाई। जमीन के घोषित मुआवजे में कमी बताकर उन्होंने डीएम कोर्ट में पैरवी की और दस गुना मुआवजा बढ़वाया। मेरठ के कमिश्नर प्रभात कुमार ने इसकी जांच कराई और आरोप सही पाये जाने पर उन्हें निलंबित करने की संस्तुति की। 2012 में यह जमीन खरीदी गई थी। तब प्रतिवर्ग मीटर 617 रुपये मुआवजे का रेट था। उन्होंने मुआवजा बढ़वा 6500 रुपये प्रति वर्ग मीटर तय करा दिया। आरोप सही पाये जाने पर मुख्यमंत्री ने घनश्याम सिंह को निलंबित करने के आदेश दिए।
ऐसे हुआ करोड़ों का खेल
तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्यापति) घनश्याम सिंह ने अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने के बाद गाजियाबाद और हापुड़ के क्षेत्र के गांव नाहल, कुशलिया व पटना में बेटे शिवांग राठौर के नाम से सात खसरों की 1.44655 हेक्टेयर जमीन खरीदी। खास बात यह है कि जमीन की खरीद दर सरकार से घोषित अवार्ड से ज्यादा रही। जमीन खरीदने के लिए जहां करीब पौने दो करोड़ रुपये खर्च किए गए, वहीं सरकार से तकरीबन साढ़े नौ करोड़ रुपये का मुआवजा वसूला गया। जांच में करीब साढ़े सात करोड़ रुपये का अनुचित लाभ लेने की बात सामने आई है।
तत्कालीन एडीएम एलए के राजदार अमीन संतोष कुमार की पत्नी लोकेश बेनीवाल, मामा रनवीर सिंह, मामा की पुत्रवधु दिव्या सिंह के नाम से 3.54 करोड़ रुपये में नाहल गांव के छह खसरों की 1.9491 हेक्टेयर जमीन खरीदकर सरकार से 14.91 करोड़ का मुआवजा वसूलकर 11.37 करोड़ रुपये की अनियमितता की गई। इतना ही नहीं गिरोह में शामिल दो अन्य लोगों इदरीश पुत्र यूसुफ व शाहिद पुत्र शमीम के नाम से रसलपुर सिकरोड़ में तीन खसरों की 0.73075 हेक्टेयर जमीन ढाई करोड़ में खरीदकर सरकार से पौने पांच करोड़ वसूले गए। जमीनों के बैनामों की जांच में गवाहों की एकरूपता सामने आई है।
News Source: jagran.com