…जब उमड़ पड़े थे आजादी के मतवाले, गूंज उठा था ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा

नई दिल्ली । आंखे धुंधली हो चली हैं, लेकिन तिरंगे को पहचान लेती हैं। कान अब भी इंकलाब जिंदाबाद का नाद सुनते हैं और शहीद हुए साथियों को याद कर दिल की धड़कन बढ़ जाती है। कुछ यही हालात हैं उस बुजुर्गवार के जिसके जवान हाथ तिरंगे को सबसे ऊंचा उठा कर चले और जिसके कर्मठ बदन पर गोरों के आक्रांत कर देने वाले जुल्म की कहानी उकेरी गई।

अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा गूंज उठा

स्वतंत्रता दिवस के आयोजन में कुछ दिन बाकी हैं और जब राष्ट्र एक बार फिर देशरंग में रंग रहा है तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 94 वर्षीय शौकत अली हाशमी उस दास्तान को याद फरमा रहे हैं। पुरानी दिल्ली के चितली कब्र, हवेली आजम खान निवासी हाशमी कहते हैं कि 8 अगस्त, 1942 को मुंबई (बंबई) में अखिल भारतीय कांग्रेस की ग्वालिया टैंक की बैठक में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा गूंज उठा। यह खबर देश में आग बनकर फैल गई। महात्मा गांधी के इस आह्वान के बाद दिल्ली में आजादी के मतवाले उमड़ पड़े थे।

झंडा सलामी के लिए निकले

घोषणा के बाद दिल्ली में हम लोग हकीम खलीलुर्रहमान के नेतृत्व में 9 अगस्त को झंडा सलामी के लिए निकले। दिल्ली गेट पर अंग्रेजों का कड़ा पहरा था। मैं डोली में झंडा लेकर बैठा था। जैसे ही डोली से निकलकर झंडा फहराने को उतरा एक अंग्रेज अधिकारी मेरी ओर लपका। हमारे साथी अमीर चंद ने उसके माथे पर बोतल मार दी। अफसर घायल हो गया और उसने तुरंत अमीर चंद को गोली मारकर शहीद कर दिया।

आंदोलन का स्वरूप हिंसात्मक हो गया 

गोलियों का शोर पुरानी दिल्ली के कई इलाकों में सुनाई देने लगा। आजादी के नारे लगने शुरू हो गए। 9 अगस्त को दिल्ली में कई लोग अंग्रेजों की गोली का शिकार हुए लेकिन सरकारी दस्तावेजों में उनके नाम नहीं हैं। सरकार ने जब आंदोलन को दबाने के लिए लाठी और बंदूक का सहारा लिया तो आंदोलन का स्वरूप हिंसात्मक हो गया था।

दिल्ली में पीली कोठी को जला दी गई

9 अगस्त को ही गांधी जी को पूना के आगा खां महल में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर ब्रिटिश सरकार ने इस संस्था की सम्पत्ति जब्त कर ली और जुलूसों को प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद दिल्ली में पीली कोठी को जला दी गई। हम लोग भी गिरफ्तारियां देने लगे। कैंप जेल बन गया था। मैं दो बार गिरफ्तार हुआ और जेल गया। हमें आज भी याद है कि करोल बाग के देव नगर 61 नंबर में हमारा छापा खाना था। हम रात में पोस्टर लगा देते थे और सुबह अंग्रेज सिपाही पोस्टर लगाने वालों को खोजते थे।

मुस्लिम लीग ने की आलोचना 

शौकत अली हाशमी बताते हैं कि हम दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे थे। एक तरफ अंग्रेजों से मुकाबला ले रहे थे और दूसरी तरफ मुस्लिम लीग से। मुस्लिम लीग के नेता इस आंदोलन की आलोचना करते हुए कह रहे थे कि इस आंदोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता नहीं, बल्कि भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना है, इस कारण यह आंदोलन मुसलमानों के लिए ठीक नहीं है। वह आंदोलन का समर्थन करने वाले मुसलमानों को जिन्ना का समर्थन करने के लिए कहते थे।

हाशमी के पास आजादी के संघर्ष से जुड़ी महात्मा गांधी, नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, अरुणा आसफ अली सहित कई नेताओं की दास्तानें हैं।

…अब दर्द भरी दास्तान बनी जिंदगी

आजादी का यह रणबांकुरा अपनी दास्तान रुंधे गले से सुनाता है। साथी शहीदों की याद में निकले आंसू अब रंग बदलकर गम के हो जाते हैं। हाशिम ने कहा कि हम अभी किराये के मकान में रहते हैं कई बार एक अदद मकान के लिए प्रधानमंत्री सहित अन्य अधिकारियों को लिख चुके हैं लेकिन अब तक भवन नहीं मिला है। राष्ट्रपति भवन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को वर्ष में कई बार बुलाता है। आज भी हम राष्ट्रपति भवन जाएंगे।

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