त्रिवेंद्र ने पार की जंगल की बाधा

देहरादून । विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगल और विकास में सामंजस्य किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। योजना छोटी हो अथवा बड़ी, उसके लिए वन भूमि हस्तांतरण और वित्तीय संसाधन जुटाने को पापड़ बेलने पड़ते हैं। इस लिहाज से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जंगल से जुड़ी बड़ी बाधा पार कर ली है। वह है उत्तराखंड प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) के 265 करोड़ के अतिरिक्त बजट के लिए केंद्र को सहमत करना। अब जल्द ही यह राशि जारी होने से सरकार वन विभाग के माध्यम से 10 हजार वन प्रहरियों की तैनाती कर सकेगी तो जगलों में गर्मियों में लगने वाली आग से निबटने को अभी से तैयारियों में जुटेगी। साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने को कदम उठाने, रेसक्यू सेंटर बनाने और हरिद्वार कुंभ में अखाड़ों को जरूरत के अनुसार अस्थायी तौर पर वन भूमि की राह में दिक्कतें नहीं आएंगी।
उत्तराखंड के जंगलों में बाघों व हाथियों के बढ़ते कुनबे ने भले ही देश-दुनिया का ध्यान खींचा हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर चर्चा के केंद्र में तो गुलदार के हमले ही हैं। पहाड़ी क्षेत्र हो या मैदानी, सभी जगह गुलदारों के खौफ ने आमजन की दिनचर्या को गहरे तक प्रभावित किया है। लगभग दो माह के अंतराल में ही गुलदार 12 व्यक्तियों की जान ले चुके हैं। ऐसा नहीं कि गुलदार के हमले एकाएक बढ़े हों, यह सिलसिला तो अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर से ही चला आ रहा है, मगर कभी भी यह मसला सरकार व वन महकमे के कोर एजेंडे में नहीं रहा। अब जबकि, पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो गुलदारों के व्यवहार में आ रहे बदलाव का अध्ययन शुरू किया गया है। गुलदार के कोर एजेंडे में शामिल होने से अब आने वाले दिनों में इस समस्या के निदान को प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।

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