आज है हलछठ व्रत, जानें इसका महत्व और पूजा विधि

आज हलछठ है। इसे हलषष्टी, ललई छठ और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। संतान की इच्छुक एवं संतानवती महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए। महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। आज बलराम जयंती भी है। हरछठ व्रत बलराम जी की तरह बलशाली पुत्र की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। हरछठ व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। बलराम को हलधर के नाम से भीम जाना जाता है और इसी वजह से इस दिन को हलषष्टी भी कहा जाता है। बलराम जयंती होने के चलते इस दिन किसान समुदाय के लोग खेती के पवित्र उपकरण जैसे मूसल और फावड़ा की पूजा करते हैं जिनका उपयोग भगवान बलराम ने किया था। इस दिन माताएं महुआ पेड़ की डाली का दातून कर स्नान कर व्रत धारण करती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती हैं। भैंस के दूध की चाय पीती हैं। तालाब के पार में बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों तथा कांस के फूल को लगाकर सजाते हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मूर्ति की पूजा करते हैं। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाते हैं तथा हलषष्ठी माता की छह कहानी सुनते हैं। इस पूजन की सामग्री में पचहर चांउर (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौनों जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।

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