इन सास-बहुओं में होती है पढ़ाई की लड़ाई

काशीपुर : काशीपुर की 80 वर्षीय दीपा और उनकी बहू चमनू की कहानी अब तक पेश की जाती रही इस रिश्ते की छवि से बिल्कुल जुदा है। लड़ाई यहां भी दोनों के बीच कांटे की है, लेकिन संपत्ति या चौका-बरतन की नहीं, बल्कि पढ़ाई की। दोनों ने यह तय कर लिया है कि हर हाल में उन्हें साक्षर बनना है।

कहानी दिलचस्प है। काशीपुर कस्बे की रहने वाली दीपा पत्नी स्व. आसाराम उम्र के आठवें दशक में प्रवेश कर चुकी हैं। परिवार में तीन बेटे रामकिशुन, दुष्यंत, मनोरी और एक बेटी अनीता है। सबसे बड़े बेटे रामकिशन की शादी चमनू के साथ हुई है, जबकि दुष्यंत की कंचन और मनोरी की शांति के साथ। बेटी अनीता की अभी शादी नहीं हुई है। दीपा समेत परिवार में किसी ने कभी भी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, लिहाजा उन्हें अक्षर का ज्ञान भी नहीं था।

करीब दो माह पूर्व दीपा अपनी बड़ी बहू चमनू का खाता खुलवाने के लिए बैंक गईं। वहां दस्तावेजों पर चमनू दस्तखत की बजाय अंगूठा लगा रही थी। चमनू को अंगूठा लगाते देख आसपास खड़े कुछ लोगों ने उस पर तंज कसते हुए कहा कि आज के जमाने में जिस बहू को दस्तखत करना भी नहीं आता, उस घर का क्या होगा? दीपा को यह बात चुभ गई। घर पहुंचते ही उसने तय किया कि बहू को साक्षर बनाना है।

उसने बहू के सामने अगले दिन गांव में साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत चल रहे लोक शिक्षा केंद्र में दाखिला कराने का प्रस्ताव रखा। बहू ने प्रस्ताव को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह उसके बस की बात नहीं। उसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। दीपा ने उसका हौसला बढ़ाने के लिए अगले दिन खुद ही लोक शिक्षा केंद्र में अपना दाखिला करा लिया। शुरू में तो बहू ने उसका मजाक उड़ाया, लेकिन कुछ ही दिन बाद जब 80 साल की दीपा को उसने अपना नाम, पता लिखते देखा तो साक्षर बनने के लिए उसके अंदर भी इच्छा हिलोरें मारने लगी।

उसने सास से लोक शिक्षा केंद्र में अपना भी दाखिला कराने का आग्रह किया। दीपा ने बहू का भी दाखिला करा दिया। फिर दोनों साथ में पढ़ाई करने लगीं। कुछ दिन तक सास-बहू को वहां पढ़ता देख दीपा की दो अन्य बहुओं एवं दीपा की पुत्री अनीता में भी शिक्षित होने की ललक जाग उठी। उन्होंने भी अपना दाखिला करा लिया। अब शुरू हो गई सास-बहू, ननद-भाभी और देवरानी-जेठानी के बीच पढ़ाई की लड़ाई। लड़ाई आपस में सर्वाधिक नंबर लाने की। पांचों ने साथ ही करीब दो माह तक पढ़ाई की।

पिछले दिनों इस कार्यक्रम के तहत बेसिक असेसमेंट लर्निंग परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसमें पांचों ने एक साथ परीक्षा दी। परीक्षा का परिणाम चार माह बाद आएगा। सफल होने पर पांचों को साक्षर होने का प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। सास-बहू और बेटी इतने पर ही रुकने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि वह आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी और बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगी, ताकि उनकी अगली पीढ़ी को अशिक्षित होने की वजह से कहीं शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े।

काशीपुर के धनौरी पट्टी दीपा का कहना है कि  शिक्षा का मूल्य समझती हूं, मगर निरक्षर होने के कारण बच्चों को नहीं पढ़ा सकी। पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती है, इसलिए लोक शिक्षा केंद्र में अपना, सभी बहुओं का और बेटी का पंजीयन कराया। अब हम पांचों को लिखने-पढ़ने में कोई असुविधा नहीं होती।

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