होनहार बिरवान के होत चीकने पात

योगी आदित्यनाथ की सरकार को अभी सवा साल ही पूरे हुए हैं और उद्यमियों ने निवेश करने की जिस तरह घोषणा की है उससे एक सकारात्मक बदलाव तो साफ दिखाई पड़ रहा है। योगी आदित्यनाथ का प्रारंभिक जीवन ही यह दर्शाता है कि उनकी क्षमता लोगों को बचपन से दिखाई पड़ती थी। हमारे यहां एक कहावत कही जाती है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात अर्थात जो पेड़ बहुत दिनों तक रहेगा और फल-फूल देगा उसके चिकने पत्ते ही यह आभास करा देते हैं। योगी आदित्यनाथ जब अजय सिंह विष्ट हुआ करते थे तभी उनकी प्रतिभा लोगों को सहज ही आकर्षित कर लेती थी। पहाड़ का प्राकृतिक वातावरण मन और मस्तिष्क पर भी अच्छा प्रभाव डालता है। मौजूदा समय का उत्तराखण्ड तब उत्तर प्रदेश का ही एक हिस्सा हुआ करता था। पौड़ी गढ़वाल जिला स्थित यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव में भी वैसा वातावरण और निर्मलता थी जैसी पहाड़ की नदियों और झरनों में हुआ करती है। इसी पंचुर गांव के गढ़वाली राजपूत परिवार में योगी आदित्यनाथ का जन्म हुआ था। गढ़वाल के फारेस्ट रेंजर आनंद सिंह विष्ट को तब कहां पता था कि उनके घर में गोरक्ष पीठ का
पीठाधीश्वर पल रहा है। आनंद विष्ट और सावित्री देवी के सात बच्चों में तीन बड़ी बहनों और एक बड़े भाई के बाद पांचवें क्रम में योगी आदित्यनाथ हैं। इनसे दो छोटे भाई भी हैं। बालक अजय विष्ट ने 1977 में टिहरी के राजा के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई शुरू की और 1987 में यहीं से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1989 में ऋषिकेश के श्री भरत मंदिर इंटर कालेज से इंटर मीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विद्यार्थी परिषद से जुड़ गये। अजय विष्ट ने 1992 में श्रीनगर के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में बीएससी की परीक्षा पास की। कोटद्वार में रहने के दौरान इनके कमरे से सामान चोरी हो गया था जिसमें अजय के प्रमाण पत्र भी थे। इसी कारण विज्ञान में स्नातकोत्तर करने का प्रयास गोरखपुर में असफल हो गया था। अजय सिंह विष्ट के लिए स्नातकोत्तर की शिक्षा से बढ़कर दायित्य तय हो रहा था। यह कार्य था राममंदिर आंदोलन का जिसे गोरक्ष पीठ प्रेरणा और प्रोत्साहन दे रही थी। उस समय गोरक्षा पीठ के महंत हुआ करते थे सांसद अवेद्यनाथ। अजय सिंह ने ऋषिकेश में विज्ञान स्नातकोत्तर में प्रवेश तो फिर से ले लिए लेकिन राममंदिर आंदोलन का प्रभाव और कुछ अन्य बातों से उनका ध्यान बट गया। गणित में एमएससी की पढ़ाई के दौरान ही 1993 में गुरु गोरखनाथ पर शोध करने वे गोरखपुर पहुंचे और गोरखपुर प्रवास के दौरान ही महंत अवेद्यनाथ के सम्पर्क में आए जो इनके पड़ोस के गांव के निवासी और परिवार के पुराने परिचित थे। महंत जी से प्रभावित हुए और महंत अवेद्यनाथ की शरण में जाकर दीक्षा ले ली। इस प्रकार 1964 में विज्ञान स्नातक अजय सिंह विष्ट योगी आदित्यनाथ बन गये।
महंत अवेधनाथ ने गोरखपुर मंदिर को हिन्दू गौरव का केन्द्र बनाया था और गोरखपीठ के पीठाधीश्वर होने के साथ ही गोरखपुर संसदीय सीट का भाजपा की तरफ से प्रतिनिधित्व भी करते थे। इस प्रकार महंत
अवेधनाथ की राजनीतिक विरासत के वे सहज ही अधिकारी बन गये। महंत अवेद्य नाथ की जगह योगी आदित्यनाथ संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने लगे। सबसे पहले 1998 में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और विजय श्री हासिल की। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 26 साल की हुआ करती थी। इस प्रकार योगी आदित्यनाथ 12वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद थे। यह लोकसभा ज्यादा दिन नहीं चल पायी थी और 1999 में संसद के फिर से चुनाव हुए। इस बार भी योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद चुने गये। सांसद योगी आदित्यनाथ ने युवाओं से अपनी विशेष पहचान बना ली थी जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थे। योगी आदित्यनाथ ने 2002 में हिन्दू युवा वाहिनी के नाम से हिन्दुओं का एक ऐसा दल बनाया जो पूर्वांचल में अपना दबदबा रखता था। योगी आदित्यनाथ ने 2004 में तीसरी बार लोकसभा का चुनाव जीता।
इस प्रकार गोरखपुर और पूर्वांचल को एक ऐसा नेता मिल गया था जो हिमालय की तरह अचल खड़ा हो गया। योगी आदित्यनाथ 2009 में 2 लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद तो 2014 में नरेन्द्र मोदी की आंधी ही चलने लगी। श्री मोदी जब चुनाव प्रचार के दौरान पूर्वांचल में पहुंचे तो उन्हें योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता साफ-साफ दिखाई पड़ी। इस प्रकार योगी आदित्यनाथ 2014 में पांचवी बार सांसद चुने गये। इसी वर्ष एक दुखद घटना हुई। महंत अवेध नाथ का 12 सितम्बर 2014 को निधन हो गया। योगी आदित्यनाथ के गुरू नहीं रहे इससे उन्हें काफी सदमा लगा। उन्होंने इस महान पीठ को संभाला। नाथ पंथ के पारंपरिक अनुष्ठान के साथ 14 सितम्बर 2014 को योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ पीठ के पीठाधीश्वर बनाए गये। गोरक्षनाथ पीठ और राजनीति दोनों जगह योगी आदित्यनाथ को अपनी गुरुवर भूमिका निभानी थी। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसमें सहयोगी दलों को पूर्ण बहुमत मिला। इसके बाद 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ भाजपा विधायक दल के नेता चुने गये और प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
इस प्रकार योगी आदित्यनाथ भाजपा से रिश्ता लगभग एक दशक पुराना ही है लेकिन उनका कद काफी बड़ा माना जाता है। योगी आदित्यनाथ ने 1998 में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर संसद का चुनाव लड़ा था और बहुत ही कम अंतर से जीत दर्ज की लेकिन उसके बाद हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ता गया। इस बीच उनके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ती गयी।
सात सितम्बर 2008 को योगी आदित्यनाथ पर आजमगढ़ में जान लेवा हमला हुआ था। यह हमला इतना बढ़ा था कि सौ से भी अधिक वाहनों को हमलावरों ने घेर लिया था लेकिन योगी जी पूरी तरह सुरक्षित रहे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर दंगों के दौरान तब गिरफ्तार किया गया था जब मोहर्रम के दौरान फायरिंग में एक हिंदू युवा की जान चली गयी थी। डीएम ने बताया था कि वह बुरी तरह जख्मी है लेकिन आदित्यनाथ उस जगह जाने पर अड़ गये। उन्हांंने शहर में लगे कर्फ्यू का हटाने की मांग की। अगले दिन शहर के मध्य श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करने की घोषणा कर दी। प्रशासनन ने अनुमति नहीं दी फिर भी योगी आदित्यनाथ ने इनकी चिंता न करते हुए गिरफ्तारी दी थी। योगी के खिलाफ कार्रवाई पर प्रदेश के छह जिलों और तीन मंडलों में दंगे फैल गये थे। योगी की लोकप्रियता की यह भी एक बानगी है।

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