यह शख्स हैंं लावारिस शवों के गुमनाम मुक्तिदाता, जानिए

देहरादून : लावारिस शवों का यह मुक्तिदाता अब तक 1038 लावारिस शवों का दाह संस्कार कर चुका है। दाह संस्कार के बाद अस्थियों को सुरक्षित रख हर साल श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार पहुंचकर पूरे विधिविधान सहित विसर्जन और तर्पण करता है। सिलसिला पिछले 19 सालों से यूं ही चला आ रहा है। मध्यप्रदेश के रतलाम का यह शख्स दो दशक से पूरी जिम्मेदारी के साथ यह काम करता आ रहा है। नाम कमाने के लिए नहीं, बल्कि अपने खोए हुए भाई के लिए।

सुरेश सिंह तंवर नामक इस शख्स ने इस साल सौ से अधिक लावारिस शवों को मुखाग्नि दे दाह संस्कार संपन्न किया था। जिनकी अस्थियों को विसर्जित करने वह शुक्रवार को हरिद्वार पहुंचे। विधिविधान के साथ विसर्जन कर आत्माओं की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान भी किया।

दरअसल, 24 साल पहले सुरेश के बड़े भाई सोहन सिंह लापता हो गए थे। वह बताते हैं कि काफी तलाश के बाद भी भाई का कुछ पता नहीं चला। फिर सोचा भाई न जाने किस हाल में होंगे। सुरेश कहते हैं कि बेघरबार, गरीब, लावारिस लोगों की मदद कर वह एक तरह से इसे अपने खोए हुए भाई के प्रति दायित्वों का परोक्ष निवर्हन मानते हैं। सुरेश ने बताया कि वह अब तक वह 1038 लावारिस शवों का दाह संस्कार कर चुके हैं। हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार आकर ही विसर्जन और तर्पण करते हैं। विसर्जन हरकी पैड़ी में करते हैं और तर्पण व पिंडदान करने शांतिकुंज आते हैं। वह कहते हैं कि मोक्षदायिनी गंगा से मृतकों की आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना कर खुद को भी सुकून मिलता है।

वहीं शनिवार सुबह शांतिकुंज में पंडित उदय किशोर मिश्र ने कर्मकाण्ड संपन्न कराया। मिश्र ने बताया कि आज एकादशी है और इस दिन ऐसी व्यक्तियों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती। उन्होंने कहा कि सुरेश 19 वर्षों से ऐसा कर महान कार्य कर रहे हैं।

54 वर्षीय सुरेश पेशे से एक सामान्य भवन निर्माण ठेकेदार हैं। वह बताते हैं कि यह सारा काम वह अपनी बचत की राशि से ही करते आ रहे हैं। न तो किसी से चंदा लेते हैं और न ही इसके लिए कोई संस्था बनाई है। वह कहते हैं कि कुछ परिजन व मित्र जरूर हाथ बंटा देते हैं। वह बताते हैं कि पिछले साल उन्होंने 162 मृतकों का तर्पण किया था और इस साल 101 का। मृतकों की आत्मा की शांति के लिए वह तीन दिवसीय श्रीमदभागवत, गीता पाठ और श्रद्धांजलि कार्यक्रम भी रखते हैं।

पुलिस और मुक्तिधाम समिति से मिलती है जानकारी 

सुरेश ने बताया कि उन्हें अस्पताल की पुलिस चौकी और मुक्तिधाम समिति से लावारिस शवों की सूचना प्राप्त होती है। अस्पताल में जब भी कोई लावारिस शव आता है तो पुलिस चौकी से उन्हें सूचना मिल जाती है। ये लोग अंतिम संस्कार कराने में मदद करते हैं। पहले मुक्तिधाम पर अंतिम संस्कार के लिए 1500 रुपए की रसीद काटी जाती थी, मगर अब एक हजार रुपए ही लिए जाते हैं।

वहीं रतलाम के जिला अस्पताल के पुलिस चौकी प्रभारी अशोक शर्मा बताते हैं कि तंवर कई साल से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार अपने खर्च से कर रहे हैं। जब भी कोई लावारिस शव आता है, उन्हें सूचना दी जाती है। वे कुछ ही देर में अस्पताल पहुंचकर प्रक्रिया पूरी कर शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं।

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