इंडिया वार्ता की खास पेशकश: मडुवा पौष्टिकता का खजाना,रोजगार के साथ किसानों को भी लाभ

चम्पावत । उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में उगाया जाने वाला मडुवा पौष्टिकता का खजाना है। व्यापक पैमाने पर पैदा होने के बाद भी भोजन में मडुवे का उपयोग काफी कम होता है। खपत कम होने के कारण मडुवा उत्पादक काश्तकारों को भी बाजार नहीं मिल पाता है। लेकिन अब कृषि विज्ञान केंद्र ग्रामीण महिलाओं को मडुवे का केक तैयार करने का प्रशिक्षण देगा। इससे मडुवे की खपत होने के साथ केंद्र सरकार के पोषण अभियान को भी बल मिलेगा।केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि चम्पावत जिले में 250 हेक्टेयर क्षेत्र में परंपरागत रूप से मडुवे की खेती की जा रही है। धीरे-धीरे इसका क्षेत्रफल बढ़ रहा है लेकिन मडुवे का बाजार कम होने से काश्तकारों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र ग्रामीण इलाकों में मडुवे की पौष्टिकता एवं उसके आटे से बननेे वाले भोज्य पदार्थों की जानकारी देने के साथ मडुवे का केक बनाने का प्रशिक्षण देगा। बताया कि मडुवा काफी पौष्टिक है लिहाजा भोजन में जितना अधिक इसका प्रयोग होगा लोगों को उतना ही अधिक पोषण मिलेगा। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र का गृह विज्ञान की ओर से विभाग नवंबर माह से ग्रामीण इलाकों में बने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को केक बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। पहले चरण में केंद्र के लगे गांव सुईं, कोलीढेक, कर्णकरायत, कोलीढेक, फोर्ती, रायनगर चैड़ी, कलीगांव और राईकोट कुंवर के 20 समूहों की महिलाओं को यह प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि मडुवे का केक बनाकर महिलाएं उसे बाजार में बेच सकती हैं। इससे उनकी आजीविका के साधन मजबूत होंगे। व्यापक पैमाने पर उत्पादन और विपणन होने से मडुवे की खपत बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि मडुवा का वैज्ञानिक नाम एलुसिन इंडिका है। प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण यह बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए गुणकारी है। इसका नियमित सेवन आंखों के रतौंधी रोग के निवारण में भी सहायक होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *