इंडिया वार्ता का चाचा नेहरू की जयंती पर विशेष आलेख
चाचा नेहरू के नाम से देश में लोकप्रिय रहे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू
चाचा नेहरू के नाम से देश में लोकप्रिय रहे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में विवादों की कमी नहीं रही है। कुछ लोगों का कहना है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को अंधेरे में रखकर पंडित जवाहर लाल ने धारा 370 तैयार करवाई थी। यह भी कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने से पूर्व नेहरू जी से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने ही पुलिस को सूचित किया। उनकी रईशत के बारे में तो किसी को संदेह ही नहीं हो सकता और लंदन में जब वह पढ़ते थे तो कालेज के सभी गेटों पर कार खड़ी रहती थी। देश की आजादी के बाद भी उनके कपड़े धुलने के लिए लंदन भेजे जाते थे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की उन्हांने जासूसी करवाई थी। इस तरह से कितनी ही आलोचनाएं, आरोप उनके नाम पर लगे लेकिन उनका देश ही नहीं विश्व स्तर पर जो यश था, वह फीका नहीं पड़ा। भारत के महान नेताओं में उनका नाम लिया जाता है। देश की आजादी की लड़ाई में वह फूलों की सेज छोड़कर कूद पड़े थे और लालकिले पर तिरंगा फहराने वाले वह पहले भारतीय थे। गरीबों की उन्हें कितनी चिंता थी, इसका एक उदाहरण 9 फरवरी 1950 को राजस्थान के पिलानी में देखने को मिला था, जब पंडित नेहरू के स्वागत में हरी सब्जियों और गाजर-मूली से स्वागत द्वार बनाये गये थे। नेहरू जी यह देखकर बहुत नाराज हुए और उन हरी सब्जियों, गाजर-मूली आदि को फौरन निकलवाकर धुलवाया और गरीबों में उनका वितरण करा दिया। ऐसा विचार किसी महानायक का ही हो सकता है। उनके जन्मदिन 14 नवम्बर को देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। राजनीति के विद्वेष से परे हटकर हमें देश के इस सपूत का आदर के साथ स्मरण करना चाहिए। यही उनके प्रति उचित श्रद्धांजलि होगी।
देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। नेहरू जी को बच्चां से अगाध प्रेम था उनका मानना था की बच्चे ही देश के भविष्य के निर्माता है। यदि अपने देश का भविष्य सुरक्षित रखना है तो इन बच्चों का भविष्य अच्छा बनाना हम सभी भारतीयों का कर्तव्य होना चाहिये। उनके बच्चों के प्रति इसी प्रेम के कारण बच्चे उन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहकर बुलाते थे। बच्चां के प्रति उनके इसी प्रेम को देखते हुए हमारा देश उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने लगा इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य यही था की सभी भारतीय नागरिकों को बच्चों के प्रति जागरूक करना ताकि सभी नागरिक अपने बच्चों को सही दिशा में सही शिक्षा दें ताकि एक सुव्यवस्थित और सम्पन्न राष्ट्र का निर्माण हो सके जो कि बच्चों के अच्छे भविष्य पर ही निर्भर करता है।
वैसे तो किसी भी त्योहार को मनाने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य जरूर होता है ठीक उसी प्रकार ‘बाल दिवस’ भी हमारे जीवन में बच्चों के भविष्य निर्माण में सहायक होता है। नेहरू जी का मानना था की यदि बच्चों को सही शिक्षा मिले तो बच्चे पढ़ लिखकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकते है। आज के जमाने में जहां बडे़ घरों के बच्चे तो बड़े-बड़े स्कूल कॉलेज में पढ़ते हैं उनके पीछे उनके माँ बाप का सपोर्ट मिलता है लेकिन हमारे देश में एक तरफ आज भी इतनी गरीबी है कि लोग अपने बच्चों को पढ़ाने की दूर एक वक्त के खाने की रोटी का भी इंतजाम नहीं कर पाते हैं। ऐसे में पूरे विश्व में भारत को एक सम्पन्न राष्ट्र के रूप में सोचना भी बेमानी है। इन्ही सब कारणों को देखते हुए बाल दिवस मनाने के पीछे भी मूल उद्देश्य यही है। हमारे देश भारत में हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले और सभी बच्चे पढ़-लिखकर अपने बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें तो निश्चित ही बाल दिवस मनाने का उद्देश्य सभी भारतीयों के लिए सार्थक होगा।
बाल दिवस के नाम से ही पता चलता है कि बाल यानि बच्चों का त्योहार बाल दिवस एक ऐसा त्योहार होता है जिसे हर स्कूल में बढ़चढ़कर मनाया जाता है यानी बाल दिवस अधिकतर स्कूल में ही मनाया जाता है। बाल दिवस की तैयारी स्कूल में कई हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाती है। सभी लड़के लडकियां देशभक्ति के गीत, अनेक प्रकार के मनोरंजक खेल और अनेक प्रकार के नाटक मंचन की तैयारियां करते हैं और 14 नवम्बर के दिन स्कूल में बच्चे अपने स्कूल यूनिफार्म में पहुंच जाते हैं फिर स्कूलों में अनेक प्रकार के खेलां का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा अनेक प्रकार के खेलकूद की प्रतियोगितायें भी होती हैं और गीत संगीत का भी आयोजन किया जाता है और जो बच्चे इन प्रतियोगिताओं में विजयी होते हैं उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है तथा सभी बच्चों में फल और मिष्ठान का वितरण भी किया जाता है। सभी बच्चे इस दिन काफी खुश होते है। बाल दिवस केवल एक दिन स्कूलों में मना लेने से इस त्योहार का उद्देश्य खत्म नहीं हो जाता है आज भी हमारे देश में बाल मजदूरी जैसे जघन्य अपराध होते रहते है जिस उम्र में बच्चों के हाथ में किताबें होनी चाहिए, उस उम्र में इन बच्चों को आर्थिक कमजोरी के चलते इन्हें काम करने पर मजबूर कर दिया जाता है जिसके चलते इनके जीवन में पढ़ाई का कोई महत्व नहीं रह जाता है ऐसे में अगर बच्चे पढ़-लिख न सकें तो एक विकसित राष्ट्र का सपना भी देखना नहीं चाहिए। ऐसे में बस यही प्रश्न उठता है हमारे देश की सरकारों को बच्चां को बाल मजदूरी से बचाने के लिए कानून का निर्माण किया गया है, उसे पूरी सख्ती से लागू भी किया जाय और साथ में इन बच्चों की पढ़ाई के खर्चों को भारतीय सरकारों को एक सीमा तक खुद उठाना चाहिए तभी हम एक विकसित राष्ट्र का सपना देख सकते है और तभी बाल दिवस मनाने का उद्देश्य भी पूरा होगा।
भारत के आजाद होने के बाद नेहरू की सरकार के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जहां 500 देसी रियासतों को एक झंडे के नीचे लाने का कार्य किया, वहीं पंडित नेहरू जी ने देश के युवाओं के लिए रोजगार सृजन जैसे कार्य कर आधुनिक
भारत के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने आयोग का गठन करने के बाद पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया, जिससे भारत में उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति में भी प्रमुख भूमिका निभाई। आज भारत के बच्चे हर क्षेत्र में अपने देश का नाम रौशन कर रहे हैं और दुनिया के सामने उदाहरण रख रहे हैं कि कला, विज्ञान, अध्यात्म किसी
भी क्षेत्र में भारत किसी से भी कम नहीं है। भारत देश के बच्चों के लिए इसी तरह का सपना चाचा नेहरू ने देखा था।