लघुकथा – बनवारी सब्जी वाला
एक बड़े शहर की पॉश कॉलोनी में बनवारी नाम का सब्जी वाला लगातार सब्जियां भेजने के लिए एक आता था। यह सब्जी वाला काफी समय से यहां पर सब्जियां दे रहा है और उसका संबंध वहां पर सभी लोगों से बहुत अच्छा है यूं तो बनवारी जो सब्जियां लाता है वह काफी अच्छी होती है और उसी हिसाब से उसके रेट भी हमेशा बाकी सब्जी वालों से ज्यादा ही होते हैं,लेकिन लोगों को उसकी कुछ ऐसी आदत है कि लोग इसके अलावा किसी से सब्जी लेना पसंद नहीं करते धीरे धीरे बनवारी से लोगों का मेलजोल इस कदर बढ़ गया कि बनवारी की आदत कुछ लोगों से उधार लेने की हो गई।500 – 1000 कुछ ऐसी छोटी-छोटी रकम उसने कई लोगों से उधार ले रखी थी।अचानक पता नहीं क्या हुआ बनवारी ने कॉलोनी में आना जाना बंद कर दिया लगभग 2 सप्ताह हुए थे लोग परेशान होने लगे अब उन्हें सब्जी खरीदने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है यदि अपने पास ही कोई चीज आसानी से मिल जाती है तो लोग थोड़े पैसों के फर्क की परवाह नहीं करते। बाजार हालांकि ज्यादा दूर नहीं है लेकिन जाना आना में जो समय समाप्त होता है, बनवारी के आने से लोगों को काफी समय बच जाता है अब लोगों को बनवारी की चिंता होने लगी चिंता के भाव अलग-अलग थे,कुछ लोग उसकी चिंता कर रहे थे कि उसने उधार लिया हुआ था।अब बड़े घरों वाले छोटे लोगों की सोच देखिए जनाब जिन लोगों ने बनवारी को ₹500 उधार दिया हुआ था,वो 5000 बताने लगे, और जिन्होंने 1000 उधार दिया हुआ था वह 10000 बताने लगा और अपने अपने कयास सभी लगाने लगे कि बनवारी शायद इसलिए नहीं आ रहा कि वह लोगों के पैसे खा गया है और अब वापस नहीं आएगा धीरे-धीरे समय बीतने लगा और लगभग 6 माह बाद बनवारी एक मिठाई का डब्बा लिए हुए उस कॉलोनी में आया मिठाई के डिब्बे से सभी को मिठाई खिलाने के साथ उसने लोगों से जितने पैसे लिए हुए थे,वो उनको वापस लौटा रहा था और सभी से अपने ना आने की माफी मांग रहा था खैर माफी मांगते हुए बनवारी अपनी एक छोटी सी खुशी सब के साथ शेयर कर रहा था और साथ-साथ यह भी कह रहा था कि मेरा आप लोगों के अलावा है कौन है। आज उसका बेटा पढ़ लिख कर एक सरकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त हो चुका है और लगभग 4 माह से उसी लड़के को उसकी पोस्ट पर स्थापित करने की वजह से वह कॉलोनी में समय पर सब्जी बेचने नहीं आ पा रहा था। अब उसका बेटा काफी पैसा कमाने लेगा है, लेकिन उसने ये तय किया कि वह सब्जी बेचना बंद नही करेगा ताकि लोग परेशान ना हों।आखिर इन्ही लोगो ने बुरे वक्त में उसे उधार देकर उसके लड़के को पढ़ने का सहारा दिया था। यहां मैं इस बात को लोगों के सामने इसलिए लाया हूँ कि बड़े बड़े मकानों में रहने वाले छोटी मानसिकता के लोग कई बार छोटे छोटे मकानों में रहने वाले लोगों से कितने नीचे स्तर की सोच रखते हैं।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).