लघुकथा – अम्बे माँ का जगराता
हमेशा की तरह हाथ में कपड़ो से भरा हुआ पुराना बैग लिए राजू के पड़ोस की सरोज अम्मा उसके पास से जा रही थी।सरोज रोज के मुकाबले आज बहुत ही खुश नजर आ रही थी।आमतौर पर सरोज के चेहरे पर हमेशा एक मंद मुस्कान दिखाई देती थी।लेकिन आज उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर राजू ने उनसे पूछ ही लिया – अम्मा आज तो बहुत खुश नजर आ रही हो।क्या बात है?
सरोज हापुड़ के एक सरकारी मकान में काफी समय से अकेले रहती थी।सरोज के पति का जब स्वर्गवास हुआ तब वो एक सरकारी जॉब पर थे।उनका बेटा भी मुजफ्फरनगर में एक बहुत ही अच्छे सरकारी पद पर कार्यरत है और काफी संपन्न है।लेकिन राजू ने देखा की उनका बेटा काफी समय से उनसे मिलने आया नहीं है और ना ही उसने सरोज को कभी अपने बेटे के पास जाते हुए देखा।
लेकिन सरोज को देखकर कभी भी नहीं लगता कि सरोज किसी भी वजह से परेशान है।चाहे वह आज इतनी खुश हो या ना हो लेकिन उनके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान हमेशा रहती है।अक्सर पड़ोस में चर्चाएं रहती हैं कि इतनी अच्छी सैलरी पर इनका बेटा कार्यरत है।लेकिन सरोज कुछ ना कुछ काम करते हुए अपने आपको हमेशा व्यस्त रखती है।कभी आसपास के दर्जियों के कमीशन बेस पर सूट सलवार या लेडीज कपड़े सिल देना या छोटे बच्चों को ट्यूशन दे देना।
हमेशा सरोज को यही कहते पाया है।बेटा पैसे तो बहुत भेजता रहता है।लेकिन मेरा समय ही नहीं कटता है।इसलिए कुछ ना कुछ करती रहती हूँ।जिससे समय कटता रहे।पति के देहांत के बाद लगभग 4 वर्ष से सरोज की यही दिनचर्या है।बेटा अपने सरकारी कामों में इतना व्यस्त रहता है कि कभी आ ही नहीं पाता।लेकिन सरोज के माथे पर कभी भी इस बात की शिकन नहीं आती कि उसका बेटा उससे मिलने नहीं आ पाता।
बस उसे तो इसी बात की खुशी है कि वह रोज अपने बेटे और बहु से फोन पर बात कर लेती है। लेकिन आज सरोज के चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिख रही है।राजू का सवाल सुनकर सरोज ने राजू को अपने पास बैठा लिया और बड़े ही प्यार से उसे बताया।कल रात पोती जया का फोन आया था।उसने बताया पापा आखरी नवरात्रि वाले दिन जगराता करा रहे हैं।
उसने कहाँ अम्मा अब हम आपसे काफी दिनों बाद मिल पाएंगे। जब हम लोग आपको छोड़कर मुजफ्फरनगर आए थे।तब मैं 6 साल की थी।आज पूरे 10 साल की हो गई हूँ।अक्सर आपके उसी लाड प्यार की याद आती है।आप नवरात्रि के बाद जगराते वाले दिन आओगी तो मैं आपको अपने पास से जाने नहीं दूंगी। यह बताते हुए सरोज की आंखों में आंसू आ गए।राजू बेटा, मैं बहुत भाग्यवान हूं जो मुझे ऐसे बेटा-बहू और पोता-पोती मिले हैं।जो मुझसे रोज बात करते हैं।
खैर धीरे-धीरे नवरात्रि का समय बीता और आखरी नवरात्रा आ ही गया।नवरात्रि खत्म होने के बाद भी अम्मा को घर पर ही देख कर राजू ने पूछ लिया।अम्मा क्या हुआ आप तो बेटे के पास जाने वाली थी।4 साल से अपने अंदर सारे दुखों को समेटे हुए चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए हुए सरोज से अब रहा नहीं गया और उसकी आंखें छलक आई और सरोज जोर-जोर से रोने लगी।
राजू समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या हुआ है।हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिए रहने वाली सरोज अचानक क्यों रोने लगी।उसने अम्मा को रसोई से पानी लाकर दिया और पानी पिलाने के बाद पूछा , अम्मा क्या बात हो गई? बेटा – बहू सब ठीक है ना,कुछ अपशकुन तो नहीं हुआ है। 4 साल अपने अंदर दुख समेटे सरोज ने आखिर राजू को बताना शुरू किया।
बेटा जब से मेरे बेटा-बहू और पोता-पोती मुजफ्फरनगर गए हैं।मुझे कोई भी फोन नहीं करता और मैं अपने घर का मान-सम्मान पड़ोस में बनाये रखने के लिए हमेशा झूठ बोलती रहती हूँ।कि मुझे रोज सबका फोन आता है।तब राजू ने अम्मा से पूछा अम्मा फिर आपको कहाँ से पता चला कि आपका बेटा जगराता करवाने वाला है।
सरोज ने कहाँ-बेटा मुजफ्फरनगर जहाँ मेरे बेटा रहता हैं वहीं पड़ोस में मेरे जानने वाले रहते हैं। बस वही लॉबीमुझे उनके बारे में बताते रहते हैं।बेटे ने जगराता करा लिया और अपनी माँ को बुलाया भी नही।लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे बेटा -बहु सब कुशलता से है।माँ जगदंबे से यही अरदास करती हूँ वो उन्हें हमेशा खुश रखे।
सरोज ने राजू को सब बता तो दिया लेकिन उन्होंने राजू को कसम दी।कि वह आज की सारी बातों को किसी को नहीं बतायेगा।राजू पूरा घटनाक्रम सुनकर अपने घर की तरफ चल पड़ा।इस घटना के काफी दिनों बाद सरोज पहले की तरह ही हमेशा मुस्कुराते हुए दिखती है।लेकिन अब सरोज की मुस्कुराहट के पीछे छुपे दर्द को वह साफ पहचान लेता है।
नीरज त्यागी ` राज ‘
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).