उत्तराखंड में वायु गुणवत्ता के कारणों की भी समीक्षा होगी

श्रीनगर ।उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन और एरोसॉल पर मंथन के लिए देशभर के एक हजार से अधिक लब्ध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक श्रीनगर गढ़वाल में जुटेंगे। इस दौरान उत्तराखंड में वायु की गुणवत्ता के कारणों की भी समीक्षा होगी। लोगों के स्वास्थ्य और कृषि के साथ ही हिमालयी क्षेत्र की जलवायु पर एरोसॉल (वातावरण में मौजूद धूल के ऐसे कण जिन्हें खुली आंख से नहीं देखा जा सकता) के प्रभावों का अध्ययन भी वैज्ञानिक अपने इस मंथन में करेंगे। मौका होगा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग की ओर से आगामी 21 से 23 अक्टूबर तक आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला का। इसके लिए एक अक्टूबर तक वैज्ञानिकों के पेपर स्वीकार किए जाएंगे और 15 अक्टूबर तक पंजीकरण होगा।विवि के चौरास परिसर स्थित ऑडिटोरियम में होने वाली इस कार्यशाला में देशभर के आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) व विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक और उद्योग जगत से जुड़े विषय विशेषज्ञ भाग लेंगे। कार्यशाला में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) कानपुर व दिल्ली, आइआइएससी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस) बंगलौर, वीएसएससी (विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर) तिरुवनंतपुरम, एसआइएनपी (साहा नाभिकीय भौतिक संस्थान) कोलकाता, पीआरएल (फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी) अहमदाबाद व आइआइटीएम (भारतीय उष्ण देशीय मौसम विज्ञान संस्थान) नई दिल्ली के साथ ही देश के कई विश्वविद्यालयों और उच्च वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिक उत्तराखंड में वायु की गुणवत्ता में आ रहे बदलावों के बारे में भी जानकारी देंगे। इस दौरान प्रख्यात वैज्ञानिक अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत करेंगे।
भारत के पूर्व विदेश सचिव डॉ. शैलेश नायक, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. एलएस राठौर, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डॉ. सुरेश बाबू, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी के डॉ. नीरज रस्तोगी, आइआइटी दिल्ली के डॉ. एस.डे, आइआइटी कानपुर की प्रो. इंदिरा सेन, भारतीय उष्ण देशीय मौसम विज्ञान संस्थान के डॉ. एस.तिवारी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के डॉ. के.कृष्णामूर्ति व प्रो. एसके सतीश, पंडित रविशंकर शुक्ला विवि रायुपर के प्रो.शम्स परवेज, जेएनयू दिल्ली के प्रो. एएल रामनाथन, जम्मू विवि के प्रो. आरके गंजू, इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रो. मानवेंद्र मुखर्जी और नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी दिल्ली के प्रो. एसएन सिंह।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *