चुनाव में रजनी रावत का आप से उतरना मेयर पद के चुनाव को त्रिकोणीय बना रहा

देहरादून । दून घाटी के देहरादून, हरबर्टपुर, विकासनगर के मतदाताओं की खामोशी दिवाली के बाद टूटने लगी है। खामोश मतदाता 18 नवम्बर को इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ई. बी. एम में बटन दबाकर अपनी खामोशी तोड़ेगा, इनके चुनाव परिणाम बतायेगें, 2019 में उत्तराखण्ड के लिए लोक सभा चुनावों की डगर क्या होगी ? निकाय चुनावो में किसी भी दल लहर नहीं है। दून घाटी के देहरादून, हरबर्टपुर, विकासनगर के मतदाताओं की खामोशी दिवाली के बाद टूटने लगी है। खामोश मतदाता 18 नवम्बर को इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ई. बी. एम में बटन दबाकर अपनी खामोशी तोड़ेगा, इनके चुनाव परिणाम बतायेगें, 2019 में उत्तराखण्ड के लिए लोक सभा चुनावों की डगर क्या होगी ? निकाय चुनावो में किसी भी दल लहर नहीं है। लगता है, इन निकाय चुनावों में वो चाहे महापौर का पद हो या पार्षद, मतदाता बेदाग छवि के प्रत्याशियों को अपना मत देने जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में इस बार भाजपा- कांग्रेस के मुकाबले, निर्दलीय प्रत्याशी काफी मात्रा में बाजी मारेंगे, राजनैतिक गलियारों में ऐसी चर्चा हो रही है। नगर निगम दून की अलग ही अपनी रंगत है, जहां से दून नगर निगम के मेयर पद के लिए भाजपा ने सुनिल उनियाल गामा को अपना प्रत्याशी बनाया है। सुनिल उनियाल गामा गांव के एक गरीब घर में जन्में भाजपा के कर्मठ, बेदाग, जमीनी नेता और दून शहर में मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के ‘‘हनुमान‘‘ कहे जाते हैं, सुनील उनियाल गामा की व्यक्तिगत पकड़ दून के सभी वर्गो पिछड़े लोगों के मध्य है उन्हें देहरादून में बसे प्रदेशों के कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के मतदाताओं का भी सहयोग मिलता दिखाई दे रहा है। अपने सरल और समाज के लिए समर्पित व्यक्तित्व के कारण भाजपा उनकी सफलता के बारे में सुनिश्चित है। दूसरी ओर, राज्य की राजनीति में कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल की भी शहर के सभी वर्गो में अपनी अलग ही विश्ष्टि पहचान है। इसीलिए कांग्रेस ने उन्हें सुनील उनियाल गामा जो पिछले कई महिनों से दून के मेयर पद के दृष्टिगत दून के मतदाताओं विभिन्न कर्मचारी, सहकारी, सामाजिक संगठनों सम्पर्क में थे उनके इस सर्म्पक को देखकर कांग्रेस ने मेयर पद के लिए दिनेश अग्रवाल को अपना प्रत्याशी बनाकर, भाजपा को कड़ी चुनौती दे दी है। इस चुनाव में रजनी रावत का आप से उतरना मेयर पद के चुनाव को त्रिकोणीय बना रहा है। भाजपा क्षेत्रों का मानना है, चुनाव त्रिकोणीय नहीं, आखिर में उनका मुकाबला कांग्रेस के साथ होना है। भाजपा नेतृत्व यह कहने से नहीं चूकता कि कांग्रेस को दून के मतदाता ही नहीं, उत्तराखण्ड और देश के मतदाता पहिले ही नकार चुके हैं, इसलिए निकाय चुनावों में सभी जगह भाजपा प्रत्याशियों को राज्य के मतदाताओं का आर्शीवाद मिलेगा और दून के मेयर पद पर दून के मतदाता समझते है कि अगर देहरादून को जाम से मुक्ति, स्वच्छ, निर्मल और केन्द्र की मद्द से स्मार्ट सिटी बनाना है तो भाजपा के प्रत्याशी सुनील उनियाल गामा की जीत को सुनिश्चित बनाना दून के मतदाताओं का भी अपना एक कर्तव्य है। देहरादून की जहां प्रधानमन्त्री मोदी का आर्शीवाद प्राप्त है, वहीं प्रदेश के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में जो जीरो टोलरेन्स प्रशासनिक व्यवस्था और देहरादून के सभी विधानसभा क्षेत्रों में समान विकास के जो कार्य हो रहे हैं, उनके दृष्टिगत दून के निकाय चुनाव में मेयर और पार्षदों को भारी समर्थन मिलने जा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस और कांग्रेस के कार्यकर्ता मतदाताओं के मध्य खामोशी को देखकर यह कह रहे है- ‘‘ये मतदाता भी बड़ी चीज है‘‘ उनकी यह खामोशी बता रही है कि इस बार मतदाता बदलाव के मूड में है, कांग्रेस अल्पसंख्यकों के मतो पर अपना भरोसा समझते हुए अपनी जीत के लिए पूरे शहर में जन सर्म्पक कर रही है। दीपावली पर्व तक मतदाताओं के रूझान का पता नहीं चला अब उनकी खामोशी टूट रही है। इस खामोशी के टूटने से लगता है, यह संघर्ष भाजपा- कांग्रेस के बीच ही होने जा रहा है। आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी रजनी रावत अपने सर्म्पक के वोटों के साथ, भाजपा- कांग्रेस के कितने वोटां तोड़ती है, उस पर भी दून के मेयर पद की हार- जीत का फैसला हो सकता है। दून में वो चाहे मेयर पद के प्रत्याशी हो या विभिन्न वार्डो के प्रत्याशी जो प्रत्याशी अपने क्षेत्र के मतदाताओं से ‘‘मैन टू मैन‘‘ जन सर्म्पक साधेगें और मतदाता को वे अपनी बेदाग छवि से यह आश्वस्त करेगें, उनकी मूलभूत सुविधाएं प्रदान कराने वाले व्यक्ति की छवि है और मतदाता आश्वस्त हो, उसी प्रत्याशी के गले में जीत की माला पड़ सकती है। राज्य के राजनैतिक दल इन निकाय चुनाव में भले ही अपने प्रत्याशियों को अपने दल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वा रहे है लेकिन मतदाता राजनैतिक दलो से हटकर वह चाहे निर्दलीय हो या दल के प्रत्याशी, उसकी व्यक्तिगत छवि पर ही अपना वोट देने जा रहा है। इन चुनावों में भाजपा प्रत्याशी मोदी के लहर पर ही अपनी वैतरणी पार कर रहे हैं लेकिन राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में वही मेयर, पालिका, पंचायत और पार्षद प्रत्याशी सफल होगा, जिनकी बेदाग छवि, योग्यता और निष्काम भाव से अपने शहर और वार्ड की प्रदूषण, सीवरेज, यातायात, पेयजल, विद्युत और नगरीय सुविधाओं को हल करने, शहर, गलियों और सड़कों को स्वच्छ और अवैध रूप से कब्जा करने वाले दंबगों से जूझने और बहुजन हिताय कार्य करने की क्षमता से मतदाता वाकिफ हो।

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