राजा कृष्णमदेवराय, चंद्रगुप्ते मौर्यऔर भारत के पूर्व शासक, जिन्होंने कला को पोषित किया और ज्ञान को संजोया

इतिहास में कुछ महान शासकों की सफलता और वीरता का उल्ले ख किया गया है, लेकिन विजयनगर साम्राज्यन के इतिहास में कृष्ण देवराय का क्षेत्र अद्वितीय था। तेलूगु और संस्कृत के जान-माने हुए लेखक होने के कारण उन्होंहने कन्नसड़ तथा तमिल साहित्यद को संरक्षित किया। उन्होंने लेखकों को सम्मानित किया और हर वर्ष उन्हों ने विद्वानों की भव्घ्य सभा बनायी और उन्हेंत सम्मासन दिया। इसी तरह की सभा को तैयार करने के दौरान तेनाली रामा की खोज हुई। बाकी तो रोमांचक इतिहास के रूप में दर्ज है, जिन्हेंस आज भी हम कहानियों के तौर पर याद में याद करते हैं।
आइये एक नज़र डालते हैं उन महान शासकों पर जिन्हों ने अद्भुत कलाकारों और विद्वानों को संरक्षण दिया।
१. चंद्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य
गुरु-शिष्यग की इस जोड़ी की वजह से ही महान मौर्य साम्राज्यक की स्थानपना हुई थी। चाणक्यत गुरु थे और फिर मौर्य शासक, चंद्रगुप्तक मौर्य के प्रधानमंत्री तथा सलाहकार बने। चाणक्य भारत में राजनीति शार्स्त्और अर्थव्यऔवस्था के ज्ञाता माने जाते हैं। उनके प्रति चंद्रगुप्तप के समर्पण तथा चाणक्या नीति को मानने के कारण उन्हें् भारत के सबसे बड़े सामाज्यज का शासक बनने का मौका मिला।
२. कृष्णहदेव राय और तेनाली रामा
हम सभी तेनाली रामा के किस्से का आनंद लेते हुए बड़े हुए हैं। इस बारे में कम ही लोगों को पता है कि कृष्णीदेवराय के शासन में विजयनगर साम्राज्यत में कला और साहित्ये फला-फूला। साहित्यष का संरक्षक होने की वजह से और महान विद्वानों की अपनी तलाश के दौरान, उन्हेंऔ तेनाली रामा मिले। अपनी अत्याधिक बुद्धि, चतुराई और सरलता की वजह से उन्हें अष्ट दिग्गएज (आठ विद्वानों के दल) में स्था न मिला। अपने अनूठे हास्यम और विजयनगर के राजा के रोजमर्रा की परेशानियों के सरल लेकिन अनोखे समाधानों ने उन्हेंक दरबार का सबसे विश्वारसी कवि बना दिया।
३. सांभाजी महाराज तथा कवि कलश
महाराष्ट्र के जाने-माने राजा सांभाजी महाराज के सबसे बड़े बेटे सांभाजी भोंसले थे। कवि कलश उनके सबसे विश्वा्सपात्र निजी सलाहकार थे। उन्हें हमेशा ही सांभाजी के साथ बने रहने के लिये जाना जाता है, जबकि उनके अपने ही भाई ने उनके साथ छल किया था। उनकी कहानी पूरी तरह से वफादारी और दोस्तीज की मिसाल है।
४.अकबर तथा बीरबल
प्राचीन समय की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक अकबर तथा बीरबल बचपन से ही हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं। महान मुगल शासक अकबर को अपने एक शिकार के दौरान एक छोटा बालक महेश दास मिलता है,जिन्हें बाद में बीरबल के नाम से जाना जाता है। अकबर, महेश की बुद्धिमानी और हास-परिहास के हुनर से चकित रह गये थे और उन्हें बाद में च्राजाज्की उपाधि दी थी। महेश दास को अकबर के दरबार में स्था यी स्था,न मिल गया और उन्हें एक नया नाम दिया गया,च्बीरबलज्। बीरबल को नौ सलाहकारों वाली एक खास समिति में शामिल कर लिया गया, जिसे च्नवरतनज्के नाम से जाना जाता है।
५. चंद्रगुप्त द्वितीय तथा कालिदास
चंद्र गुप्तन द्वितीय को अपनी उपाधि विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है जोकि उत्तमर भारत के बेहद शक्तिशाली शासक थे। उनके क्षेत्र के अंतर्गत, देश में सुख और शांति बनी हुई थी। विक्रमादित्य शिक्षा को बहुत महत्वश देते थे। उनके दरबार में विभिन्नि विद्वानों में कालिदास भी सम्मिलित थे, जोकि भारतीय इतिहास में महान नामों में से एक है। संस्कृरत के कवि तथा नाटककार तथा हर काल के सबसे प्रसिद्ध भारतीय लेखकों में से एक थे। कालिदास को चंद्र गुप्तह द्वितीय के दरबार में काफी प्रशंसा मिलती थी।
ऐसा कहा गया है कि बुद्धिमानी किसी विद्यालय से मिलने वाली चीज नहीं है, बल्कि इसे पाने में पूरी जिंदगी लग जाती है।च्ज्इतिहास की ये घटनाएं हमें बताती हैं कि भारतीय इतिहास के कुछ महान शासकों ने विद्वानों और कलाकारों को किस तरह से संरक्षण दिया था।
राजा कृष्णोदेव राय और तेनाली रामा की कुछ ऐसी ही बेहतरीन कहानियां देखने के लिये आइये सोनी सब पर हर सोमवार से शुक्रवार, शाम ७.३० बजे और देखिये रोमांच पर से परदा उठते हुए।

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