लोकसभा चुनाव में विस्फोटक होगा पुरानी पेंशन मुद्दा
लोकतंत्र को जिस तरह से भारत में बदनाम किया जा रहा है उसके लिए लिए हमारे जनप्रतिनिधि काफी स्तर तक स्वंय जिम्मेदार है। भारत में इस प्रदूषित होते लोकतंत्र को चलाने के लिए लगभग बिना काम की गारंटी वालें जनप्रतिनिधियों इनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री सांसद आदि जनप्रतिनिधियों पर प्रति दिन लगभग एक हजार आठ सौ करोड़ खर्च हो रहे है। न पढ़ने लिखने की शर्त, न अनुभव न तजुर्बा उसके बावजूद राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री जैसे पदों पर आसीन जनप्रतिनिधियों को को मिलने वाले वेतन के बाद पेंशन की पूरी गारंटी ने हिन्दुस्तान में पेंशन व्यवस्था में दोहरे कानून का उदय कर दिया है। ठीक उसी तरह कि हिन्दुस्तान ही ऐसा देश है जिसमें आबकारी और मद्यनिषेध विभाग एक साथ काम कर रहा है यानि एक पिलाने का काम देख रहा है तो दूसरा रोकने का काम देख रहा है। एक प्रशन और भारत ही एक ऐसा देश है जहाॅ जनप्रतिनिधियों को अपने जीविका उर्पाजन की पूरी जिम्मेदारी जनता के टैक्स पर निर्भर है। जबकि फिलीपिन्स के राष्ट्रपति अपने जीविकापार्जन के लिए सुबह सात से दस तक खेत पर खेती और उसके उपरान्त कार्यालय इसके बाद फिर टाईम मिला तो फिर खेती लेकिन भारत में तो जनप्रतिनिधि बनने के बाद पूरे जीवन का खर्चा जनता के टैक्स के सहारे होने के साथ साथ सात पीढ़ियों के लिए धन एकत्रित कर लेने के हजारों उदाहरण है। भारत ही ऐसा देश है जहाॅ जनता और सरकारी कर्मचारी इन जनप्रतिनिधयों के रहमों करम पर है। लोकतंत्र की गलत परिभाषा तैयारी की जा रही है अब जनता भगवान नही बल्कि जनप्रतिनिधी भगवान बनते जा रहे है। विश्व का शायद ही ऐसा कोई दूसरा देश होगा जहाॅ रोड़ टैक्स के साथ टोल टैक्स भी देना पड़ता हो। इतना सब इसलिए की हम देश के लगभग 70 लाख केन्द्र और राज्य कर्मचारियों के उस मुद्दे की चर्चा कर रहे है जिससे केन्द्र और राज्य सरकारे जानबूझकर अन्जान बनी है। नई पेंशन योजना की धनराशि को लेकर उत्तर प्रदेश के पुरानी पेंशन बहाली मंच ने जो प्रकरण हाल में सार्वजनिक किया वह चैकाने वाला है। मंच के नेताओं ने कहा कि नई पेंशन में कर्मचारियों का पैसा ऐसी कम्पनी में लगाया जा रहा है जो पहले ही एक साल में सात बार डिफाल्टर घोषित हो चुकी है। यूपी से ही नई पेंशन योजना के तहत 2,47,000 प्राथमिक शिक्षक,51 हजार माध्यमिक शिक्षक, 2,77,000राज्य कर्मचारी और 16 हजार अधिकारी प्रभावित हो रहे है। आगामी लोकसभा में एक अनुमान के मुताबिक नई पेंशन व्यवस्था से नाराज कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों का आकड़ा 70लाख यानि एक परिवार में पाॅच वोटर तो 543 लोकसभा सीटों में प्रत्येक पर लगभग 50 हजार से एक लाख वोटर भाजपा सरकार के विरोध में सामने आएगे। हर राजनैतिक दल जातिगत गणना के आधार पर कुर्मी, कुशवाहा, यादव, तेली समाज की जनगणना के आधार पर सीटों का बॅटवारा किया जाता है। तो कर्मचारी और शिक्षक समाज की इस बहुतायत संख्या की उपेक्षा करके कोई दल यह कैसे दावाकर सकता है कि वह पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेगा। पुरानी पेंशन बहाली को लेकर कर्मचारी, शिक्षक और अधिकारी उग्र हो चुके है। यह आग फिलहाल यूपी में तेज से बढ़ी है। पुरानी पेंशन बहाली मंच और अटेवा के साथ शायद ही ऐसा कोेई राज्य और केन्द्र का कर्मचारी संगठन होगा जो नई पेंशन नीति का विरोध न कर रहा हों। इससे विकास कार्य प्रभावित हो रहे है। आन्दोलन और विरोध के चलते कर्मचारियों का अपने काम के प्रति रूझान बदल रहा है। यह आग धीरे धीरे देश के अन्य हिस्सों की ओर बढ़ रही है। 2019 तक यह आग राष्ट्रव्यापी हो सकती है। उत्तर प्रदेश पुरानी पेशन बहाली मंच के बैनर तले तीन दिवसीय हड़ताल की धमकी के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप के बाद बनी उच्चस्तीय समिति की पहली बैठक 12 नवम्बर को हुई जो पूरी तरह से फेल रही यानि यह माना जाए कि सरकार पुरानी पेशन बहाली पक्ष में बिलकुल नही है। नयी पेंशन योजना लागू कर कर्मचारियों को तोहफा देने की भले ही बात कर रही हो, लेकिन कर्मचारियों को जो ‘अक्स’ पुरानी पेंशन योजना में दिख रहा था, वो में नहीं दिख रहा है। कर्मचारी दोनों योजना में अन्तर निकालने के साथ नफा-नुकसान पर मंथन करते देखे जा रहे है। कर्मचारियों का कहना है कि पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए जीपीएफ सुविधा उपलब्ध है, जबकि नयी पेंशन योजना में नहीं है। इसी तरह पुरानी पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती है, जबकि नयी पेंशन योजना में प्रति माह 10ः की कटौती निर्धारित है। पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेन्ट के समय एक निश्चित पेंशन (अन्तिम वेतन का 50प्रतिशत) की गारण्टी है, लेकिन नयी योजना में पेंशन कितनी मिलेगी ? यह निश्चित नहीं है, क्योंकि यह पूरी तरह शेयर मार्केट व बीमा कम्पनी पर निर्भर है । कर्मचारियों का तर्क हैै कि पुरानी पेंशन सरकार देती है, जबकि नयी पेंशन बीमा कम्पनी देगी। यदि कोई समस्या आती है तो हमे सरकार से नहीं, बीमा कम्पनी से लडना पडेगा। पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी ( अन्तिम वेतन के अनुसार 16.5 माह का वेतन) मिलता है, जबकि नयी पेंशन वालों के लिये ग्रेच्युटी की कोई व्यवस्था नहीं है। पुरानी पेंशन वालों को सेवाकाल में मृत्यु पर डेथ ग्रेच्युटी मिलती है, जबकि नयी पेंशन वालों के लिए डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा समाप्त कर दी गयी है।पुरानी पेंशन में आने वाले लोगों को सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन मिलती है, जबकि नयी योजना में पारिवारिक पेंशन को समाप्त कर दिया गया है। पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छरू माह बाद महंगाई तथा वेतन आयोगों का लाभ भी मिलता है, जबकि नयी योजना में फिक्स पेंशन मिलेगी। महंगाई या वेतन आयोग का लाभ नहीं मिलेगा यह हमारे समझ से सबसे बडी हानि है।पुरानी पेंशन योजना वालों के लिए जीपीएफ से आसानी से लोन लेने की सुविधा है, जबकि नयी पेंशन योजना में लोन की कोई सुविधा नही है। पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ निकासी ( रिटायरमेंट के समय) पर कोई आयकर नहीं देना पडता है, जबकि नयी पेंशन योजना में जब रिटायरमेंट पर अंशदान का 60 प्रतिशत वापस मिलेगा। इसी तरह जीपीएफ पर ब्याज दर निश्चित है, जबकि एनपीएस पूरी तरह शेयर पर आधारित है। नई पेशन को लेकर जब यह मामला सामने आया तो नई पेंशन योजना से प्रभावित कर्मचारी, शिक्षक और अधिकारी और भड़क गए। आईएल एंड एफएस (इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज) का नाम बहुत लोगों ने नहीं सुना होगा। यह एक सरकारी क्षेत्र की कंपनी है जिसकी 40 सहायक कंपनियां हैं। इसे नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी की श्रेणी में रखा जाता है। जो बैंकों से लोन लेती हैं। जिसमें कंपनियां निवेश करती हैं और आम जनता जिसके शेयर खरीदती हैं।इस कंपनी को कई रेटिंग एजेंसियों से अति सुरक्षित दर्जा हासिल है। ‘एए प्लस’ की रेटिंग हासिल है। यह कंपनी बैंकों से लोन लेती है। लोन के लिए संपत्ति गिरवी नहीं रखती है। कागज पर गारंटी दी जाती है कि लोन चुका देंगे। चूंकि इसके पीछे भारत सरकार होती है इसलिए इसकी गारंटी पर बाजार को भरोसा होता है। मगर एक हफ्ते के भीतर इसकी रेटिंग को ‘एए प्लस’ से घटाकर कूड़ा करकट कर दिया गया है। अंग्रेजी में इसे जंक स्टेटस कहते हैं। अब यह कंपनी जंक यानी कबाड़ हो चुकी है। जो कंपनी 90,000 करोड़ लोन डिफाल्ट करने जा रही हो वो कबाड़ नहीं होगी तो क्या होगी। जाहिर है इसमें जिनका पैसा लगा है वो भी कबाड़ हो जाएंगे। प्रोविडेंट फंड और पेंशन फंड का पैसा लगा है। यह आम लोगों की मेहनत की कमाई का पैसा है। डूब गया तो सब डूबेंगे। आईएल एंड एफएस गैर बैंकिंग वित्तीय सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी है. इस सेक्टर पर बैंकों का लोन 496,400 करोड़ है। अगर यह सेक्टर डूबा तो बैंकों के इतने पैसे धड़ाम से डूब जाएंगे। मार्च 2017 तक लोन 3,91,000 करोड़ था. जब एक साल में लोन 27 प्रतिशत बढ़ा तो भारतीय रिजर्व बैंक ने रोक लगाई। सवाल है कि भारतीय रिजर्व बैंक इतने दिनों से क्या कर रहा था। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ही इन वित्तीय कंपनियों की निगरानी करता है। म्यूचुअल फंड का 2 लाख 65 हजार करोड़ लगा है। कर्मचारियेां के पेंशन और प्रोविडेंड फंड का पैसा भी इसमें लगा है। इतना भारी भरकम कर्जदार डूबेगा तो कघ्र्ज देने वाले, निवेश करने वाले सब के सब डूबेंगे।