अब राजा भैया की राजनीति
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबलियों के वर्चस्व को नजरंदाज करने की जुर्रत किसी भी पार्टी में नहीं है। पहले इसके लिए बिहार बदनाम था लेकिन अब यूपी में उससे ज्यादा बाहुबली हैं और अर्से तक देश व प्रदेश में राज करने वाली कांग्रेस भी हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबली को गोद में बैठाने को मजबूर हो गयी थी। प्रतापगढ़ के कुंडा में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने इस मामले में एक नया अध्याय लिखा था। उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल की गोद में बैठना स्वीकार नहीं किया और निर्दलीय रहकर सत्ता का सुख भी भोगा, विपक्ष में रहे और राजनीतिक प्रतिशोध में जेल की यात्रा भी की। इस तरह उनकी राजनीति के 25 वर्ष पूरे हो गये तब उनके मन में एक पार्टी बनाने का ख्याल आया है। इसका खुलासा काफी पहले राजा भैया ने स्वयं कर दिया था और 30 नवम्बर को उन्होंने लखनऊ में अपने समर्थकों को एकत्रित करके यह साबित कर दिया कि जन समर्थन उनके साथ है। उन्होंने एक पार्टी का यूपी की राजनीति में इजाफा भी किया है जिसका नाम संभवतः जनसत्ता पार्टी रखा जाएगा।उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने गत 30 नवम्बर को रैली की और अपनी सियासी ताकत का अहसास कराया। रैली में चार लाख के करीब लोग पहुंचे। इस रैली में लोगों को आने के लिये राजा ने पूरी एक ट्रेन बुक करायी थी। इसमें राजा भैया के गृह जनपद के अलावा देश भर से लोगों ने शिरकत की। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने 26 साल की उम्र में 1993 में पहली बार कुंडा विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। इस प्रकार राजा भैया के राजनीतिक सफर को 25 वर्ष पूरे हुए हैं और राजनीति के रजत जयंती वर्ष को राजा भैया के समर्थक धूमधाम से मनाना चाहते थे, इसलिए 30 नवम्बर को लखनऊ में जन समूह उमड़ पड़ा। उत्तर प्रदेश में एक और बड़े राजनीतिक दल का उदय हुआ है जो 2019 के चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।राजा भैया ने अपने राजनीतिक दल का अभी ऐलान नहीं किया क्योंकि चुनाव आयोग के पास तीन नाम भेजे गये हैं। इन तीन नामां में जनसत्ता पार्टी, जन सत्ता दल और प्रगतिवादी जनसत्ता पार्टी भेजे गये हैं। आयोग से जो भी नाम फाइनल होगा उसी के नाम पर पार्टी बनायी जायेगी। यह पार्टी बनाने की राजा भैया को जरूरत क्यों पड़ी इसकी कहानी तो बहुत गहराई तक जाती दिखती है लेकिन रमाबाई रैली स्थल पर राजा भैया ने स्वयं जो कुछ बताया वह इस प्रकार है। उन्होंने कहा कि राजनीति के 25 वर्ष पूरे होने के बाद हमारे मित्रों, शुभचिंतकों के बीच बैठकर यह सोचा गया कि जिस तरह हमारे भारतीय जीवन दर्शन में चार आश्रम बताये गये हैं-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास उसी तरह राजनीति में भी 25 वर्ष पूरे करने के बाद नये आश्रम में प्रवेश करना है। ये आश्रम कौन होना चाहिए तो तीन विकल्प पाये गये। पहला यह कि निर्दलीय रूप में ही जनसेवा की जाए, दूसरा विकल्प यह था कि ऐसे राजनीतिक दल में शामिल हो जाएं जिसकी विचारधारा, नीतियां हमसे मिलती हों और तीसरा विकल्प यह था कि एक नयी पार्टी बनायी जाए। राजा भैया ने लगभग 20 लाख लोगों के बीच इन तीनों विकल्पों पर सर्वे कराया तो बहुमत में यही कहा गया कि नयी पार्टी बनायी जाए। इसलिए राजा भैया नई पार्टी बना रहे हैं।रमाबाई रैली स्थल पर राजा भैया केसरिया साफा बांधे हुए थे। राजपूतों का यह बाना है लेकिन भाजपा के भगवा रंग से नजदीकी भी प्रकट करता है। उत्तर प्रदेश की सियासत को समझना बहुत आसान भी नहीं है। यहां पर पिछले लगभग 6 महीने के अंदर एक बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि दो प्रमुख दल सपा और बसपा एक हो गये। एक होकर उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट फूलपुर छीन ली। इसके बाद तो विपक्षी दलों का महागठबंधन ही बन गया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाले चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और कांग्रेस भी साथ आ गये। भाजपा ने पूरी ताकत लगाकर कैराना लोकसभा सीट को बचाना चाहा क्योंकि वहां के सांसद हुकुम सिंह ने हिन्दुओं के पलायन का गंभीर मुद्दा उठाकर भाजपा का प्रभाव वहां बढ़ाया था लेकिन विपक्षी दलों की एकजुटता ने कैराना में भी भाजपा को पराजित होने पर मजबूर कर दिया था।