मोदी का नहीं विपक्ष का हो गया टेस्ट

मोदी की सरकार के खिलाफ आंध्र प्रदेश की तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) के अविश्वास प्रस्ताव पर 20 जुलाई को चर्चा हुई और मतदान भी हो गया। लोकसभा की अपनी व्यवस्था के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव पर जिस राजनीतिक पार्टी के सांसद को बोलने का जितना समय मिलना चाहिए था, मिला। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को यह दर्जा लोकसभा में नहीं मिला लेकिन सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते राहुल गांधी को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया और राहुल गांधी ने भी प्रधानमंत्री श्री मोदी को प्यार की झप्पी देकर मीडिया में कुछ ज्यादा ही जगह प्राप्त की। टीडीपी के नेता ने भी अपनी बात रखी और भाजपा के सहयोगी लोकजन शक्ति पार्टी के रामविलास पासवान भी बोले। मतदान का फैसला तो लोगों को पहले से पता था। नतीजा अनुमान के अनुसार ही रहा। अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा के लिए जब स्वीकार किया गया था, तभी यह पता चल गया था कि सरकार को कोई नुकसान नहीं होने वाला है लेकिन विपक्ष को अगर समर्थन नहीं मिला तो उनकी ताकत का टेस्ट हो जाएगा। अविश्वास प्रस्ताव पर 10 घंटे तक चली चर्चा के बाद उसे खारिज कर दिया गया क्योंकि सरकार के पक्ष मेंं 325 सांसद थे जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का विरोध किया और समर्थन करने वाले सिर्फ 126 सांसद थे। विपक्षी दलों का यह आंकड़ा बढ़ सकता था अगर बीजू जनता दल और अन्नाद्रमुक के सांसदों ने मतदान में भाग लिया होता। आंध्र प्रदेश की ही वाइएसआर कांग्रेस के 4 सांसद भी मतदान से बाहर हो गये। इस प्रकार यह मोदी का नहीं विपक्ष का टेस्ट साबित हुआ है और 2019 में विपक्षी दल जो सपना देख रहे हैं, वह हकीकत में बदलता नहीं दिख रहा है।
मोदी सरकार के विरोध में अविश्वास का प्रस्ताव कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्रसमिति और तेलुगुदेशम पार्टी ने पेश किया था। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के प्रस्ताव को चर्चा और मतदान के लिए स्वीकार न कर टीडीपी के प्रस्ताव को सूचीबद्ध कर लिया। लोकसभा स्पीकर ने कांग्रेस की जगह भाजपा की पूर्व सहयोगी टीडीपी को महत्व दिया। इस प्रकार दोनों तरफ से कूटनीतिक मोहरे बिछाये जा रहे थे। सत्ता पक्ष नहीं चाहता है कि विपक्ष एक हो जाए, इसलिए ऐसे हालात लाए जाते हैं लेकिन विपक्ष की तरफ से यह एक प्रयोग हो रहा था कि अगर कांग्रेस को किनारे कर दें तो कितने विपक्षी दल एक साथ खड़े हो सकते हैं। विपक्ष की गणित सफल नहीं हो पायी है। ओडिशा में नवीन पटनायक अभी तय नहीं कर पाये हैं कि वे किधर जाएं। यही कारण रहा कि बीजू जनता दल ने अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से अपने को अलग रखा। नवीन पटनायक की पार्टी के 19 सांसद हैं और मतदान करके वे विपक्ष की ताकत बढ़ा सकते थे। इसी प्रकार
आंध्र प्रदेश में तेजी से उभरे जगन मोहन रेड्डी ने भी विपक्ष का साथ नहीं दिया और उनके 4 सांसद भी मतदान से बाहर रहे। हालांकि विपक्ष के लोग कह सकते हैं कि शिवसेना ने भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया। उसके 18 सांसद हैं और शिवसेना अगर सरकार के साथ खुलकर खड़ी होती तो अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करने वाले 325 की जगह 343 होते। लोकसभा में अभी 11 सीटें खाली हैं और 493 मौजूदा सदस्यों में मतदान होना था।
विपक्ष की गणित चर्चा के दौरान ही पता चल गयी थी और प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह संकेत भी दे दिया कि कांग्रेस के साथ जो खड़ा होगा, उसका डूबना तय है। श्री मोदी ने राहुल गांधी की झप्पी को तो इस तरह धो दिया कि उन्हें सचमुच अब आंख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ेगी। राहुल गांधी ने
प्रधानमंत्री को चैलेंज किया था कि वे आंख नहीं मिला सकते। इसी पर श्री मोदी ने कहा कि आप नामदार हैं और हम कामदार आपसे आंख में आंख कैसे मिला सकते हैं। सुभाष चन्द्र बोस, मोरारजी देसाई, जय प्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह, सरदार बल्लभ भाई पटेल, चन्द्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा, प्रणव मुखर्जी और शरद पवार ने आंख से आंख मिलाई तो कांग्रेस ने उनके साथ क्या किया। इस प्रकार श्री मोदी ने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को भी बता दिया कि अभी वे भाजपा का मुकाबला करने का सपना न देखें क्योंक
उनके पास कोई एक नेतृत्व नहीं है। कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि अविश्वास ही कांग्रेस की कार्यशैली है।
इस प्रकार विपक्षी दलों को एक बार फिर चिंतन करना होगा। ओडिशा और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ दल अगर यह सोच रहे हों कि उनका भाजपा के साथ रहने में ज्यादा हित है, तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। उनकी इस सोच से उन्हें कम से कम अपने राज्य में सरकार बनाने का अवसर तो मिल ही जाएगा। विपक्षी दलों के महागठबंधन में उन्हें उस कांग्रेस से अथवा तमिलनाडु में द्रमुक से दोस्ती करने से क्या मिलेगा? ये पार्टियां तो उनकी विरोधी हैं। अन्नाद्रमुक के सांसद इसीलिए विपक्षी एकता के साथ खुलकर नहीं खड़े हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा को चुनौती देने की बात तो हो रही है लेकिन सुश्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी क्या एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी? ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस का समझौता हो सकता है लेकिन भाजपा का मुकाबला करने के लिए वहां सिर्फ कांग्रेस नहीं बल्कि वाममोर्चा के सभी घटक एक साथ होने चाहिए। विपक्षी दल इस बात को अब समझ ही गये होंगे कि कांग्रेस के अलावा चन्द्रबाबू नायडू के नेतृत्व में भी विपक्षी दल एक साथ नहीं खड़े हो सकते। अविश्वास प्रस्ताव पर बीजद और वाईएसआर कांग्रेस का अनुपस्थित रहना यही संकेत देता है।

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