शिखर की ओर मैक्स 1200 से अधिक परिवारों को दी नई जिंदगी

देहरादून,। मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून एक बार फिर से उत्तराखण्ड के निवासियों के लिए दिल, फेफड़े और रक्त वाहिकाओं के सर्जिकल इलाज हेतू पहली पसंद के रूप में उभरा है। हाल ही में अस्पताल में ज्म्ट।त् प्रक्रिया द्वारा एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म के मरीज़ों का इलाज किया गया है। डॉ मनीष मेसवानी, सीनियर कन्सलटेन्ट- सीटीवीएस ने कहा, ‘‘हाल ही हमने मुश्किल कार्डियक सर्जरी से एक मरीज़ का इलाज किया। मरीज़ किसी अन्य बीमारी के इलाज के लिए यहां आया था लेकिन जांच करने पर हमने पाया कि वह एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म ; ऐऐऐ द्ध से पीड़ित है।आयोर्टा मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी रक्तवाहिका होती है। यह खून को दिल से लेकर सिर, भुजाओं, पेट, टांगों और शरीर के सभी अन्य अंगों तक पहुंचाती है। आयोर्टा की दीवारें अगर कमज़ोर हो जाएं तो इनमें सूजन आ सकती है या छोटे बैलून जैसे उभार आ जाते हैं। अगर आयोर्टा के उस हिस्से में ऐसा हो जो पेट में है, तो इसे एब्डॉमिनल आयोर्टिक एन्यूरिज़्म कहा जाता है।उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘मरीज़ की आयोर्टा 8 सेंटीमीटर तक फूल गई थी, जो सिर्फ 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह जानलेवा हो सकता है क्योंकि ऐसी आयोर्टा किसी भी समय फट सकती है। आमतौर पर इस तरह के मामलों में ओपन सर्जरी की जाती है, जो बेहद इन्वेसिव होती है और इसमें मरीज़ को ठीक होने में ज़्यादा समय लगता है। लेकिन हमने मरीज़ का इलाज ज्म्ट।त् दृ;ज्तंदे म्दकवटेंबनसंत त्मबवदेजतनबजपवद इल ेजमदजपदहद्धके ज़रिए किया। यह कम इन्वेसिव प्रक्रिया है, इसमें एक ग्राफ्ट की मदद से आयोर्टा की कमज़ोर हो गई दीवार को स्टैबिलाइज़ किया जाता है। सर्जरी दो घण्टे तक चली और 48 घण्टे के अंदर मरीज़ को छुट्टी दे दी गई।’’ मैक्स डिपार्टमेन्ट ऑफ कार्डियक साइन्सेज़ में ‘फ्लेयल चेस्ट’ के एक और मामले का इलाज सफलतापूर्वक किया गया। फ्लेयल चेस्ट छाती में ट्रॉमा इंजरी का एक प्रकार है। ऐसा तब होता है जब मरीज़ की तीन या अधिक पसलियां टूट जाती हैं, जिसके चलते हड्डी का कुछ हिस्सा छाती की दीवार से अलग हो जाता है।‘‘आमतौर पर पसली या छाती की हड्डी का इलाज पारम्परिक तरीके से किया जाता है; हालांकि अगर फ्लेयल चेस्ट का मरीज़ वेंटीलेटर पर है और उसे वेंटीलेटर से हटाना मुश्किल हो रहा है, तो इसका अर्थ यह होता है कि उसकी चेस्ट वॉल को रीकन्स्ट्रक्ट करने की ज़रूरत है। अब तक भारत में कुछ ही अस्पताल ऐसे हैं जो फ्लेयल चेस्ट की सर्जरी करते हैं। हरिद्वार में 44 वर्षीय महिला की दुर्घटना के बाद, उसे मैक्स अस्पताल, देहरादून लाया गया। मरीज़ को वेंटीलेटर से हटाना मुश्किल हो रहा था। हमने चेस्ट वॉल रीकन्स्ट्रक्ट का फैसला लिया। सर्जरी बेहद मुश्किल थी, सीटीवीएस, प्लास्टिक एवं रीकन्स्ट्रक्शन सर्जरी तथा आर्थोपेडिक युनिट के डॉक्टरों ने मिल कर मरीज़ का इलाज किया और उसे एक नई जिंदगी दी।उन्होंने कहा ‘‘शरीर के इस हिस्से में दिल और फेफड़ों जैसे नाजु़क अंग होते हैं। ऐसे में बोन ड्रिल एवं अन्य शार्प इन्सट्रूमेन्ट इस्तमाल करते समय हमें बहुत अधिक सावधानी बरतनी पड़ती है। इस मामले में मरीज़ 15 दिन से वेंटीलेटर पर थी, लेकिन सर्जरी के बाद उसे 2 दिन के अंदर वेंटीलेटर से हटा लिया गया और एक सप्ताह बाद छुट्टी दे दी गई।’’ इसके अलावा डॉ मनीष मेसवानी के नेतृत्व में सीटीवीएस टीम ने कोरोनरी एंडरटरेक्टोमी, एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट, गनशॉट इंजरी और ट्रिपल वॉल्व रिप्लेसमेन्ट जैसी सर्जरियांं को भी सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।डॉ संदीप सिंह तंवर, वाईस प्रेज़ीडन्ट- ऑपरेशन्स एण्ड युनिट हैड, मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून ने कहा, ‘‘मैक्स अस्पताल हमेशा से देहरादून एवं आस-पास के इलाकों के मरीज़ों को अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने में अग्रणी रहा है। हमें अपनी सीटीवीएस टीम के विशेषज्ञ डॉक्टरों पर गर्व है जिन्होंने मुश्किल कार्डियक सर्जरियों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। मुझे यह ऐलान करते हुए बेहद खुशी का अनुभव हो रहा है कि उत्तराखण्ड के निवासी अब बाय-पास सर्जरी, ट्रिपल वॉल्व रिप्लेसमेन्ट, बच्चों और व्यस्कों की हार्ट सर्जरी, सर्जरी के बाद पुनर्वास जैसी सेवाएं अपने ही शहर में पा सकते हैं, जिनके लिए उन्हें अब तक दिल्ली जाना पड़ता था।’’

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